न्यायपालिका में भ्रष्टाचार – करोड़ों रुपये फीस बसूलने वाले वकील बड़ी समस्या - आर बी जगन्नाथन



इस वर्ष जनवरी में न्यायमूर्ति जस्ती चेलेश्वर जब तीन अन्य न्यायाधीशों के साथ मीडिया के सम्मुख आये तो भारी हंगामा हुआ | उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है | लेकिन उनके द्वारा उठाये गए कुछ प्रमुख मुद्दों पर जानबूझकर मीडिया ने ज्यादा चर्चा नहीं की, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए | 

सेवानिवृत्ति के बाद दिए गए अपने साक्षात्कार में भी उन्होंने स्पष्ट किया कि वे अपने पहले दिए गए वक्तव्यों पर अडिग हैं और चाहते हैं कि न्यायालय में केस आबंटन की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए | उन्होंने यह भी दोहराया कि वे उत्तराखंड के केएम जोसेफ को सर्वोच्च न्यायालय का और न्यायमूर्ति कृष्ण भट्ट को कर्नाटक उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाये जाने के पक्ष में हैं । ये दोनों ही प्रकरण सरकार द्वारा रोक दिये गये है। 

लेकिन जिन दो अन्य बिंदुओं का उन्होंने अप्रत्यक्ष उल्लेख किया, उन्हें मीडिया द्वारा पूरी तरह अनदेखा कर दिया गया । 

एक बिंदु उनके उस विचार से संबंधित है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) ही वरिष्ठ न्यायिक नियुक्तियों के मुद्दे को हल करने का एक वैध तरीका होना चाहिए | किन्तु 2015 में उक्त कानून का समर्थन करने वाले वे एकमात्र जज थे, जबकि पांच सदस्यीय संविधान खंडपीठ ने उसे 4-1 के बहुमत से असंवैधानिक घोषित कर दिया था। 

दूसरा बिंदु ज्यादा महत्वपूर्ण था, किन्तु मीडिया ने उसे रत्ती भर भी महत्व नहीं दिया | न्यायमूर्ति चेलेश्वर के अनुसार न्यायिक भ्रष्टाचार से निपटने में सबसे बड़ी बाधा ऊंची फीस बसूलने वाले वकील हैं । परोक्ष रूप से आया यह बिंदु निश्चय ही उन बड़े वकीलों के लिए अपमानजनक था । 

भारत में एक कानून से सम्बंधित वेबसाइट है, जिसमें वरिष्ठ वकील अदालत में पैरवी करने के लिए कितना चार्ज कर सकते हैं, इस बारे में विवरण दिया हुआ है | और ये रकम लाखों में हैं, जबकि कुछ वकील तो इससे भी भारी फीस बसूलते हैं । 

वेबसाइट के अनुसार राम जेठमलानी शीर्ष पर थे, जो एक उपस्थिति के लिए 25 लाख रुपये तक चार्ज कर रहे थे, सहयोगियों के साथ तो यह राशि 1 करोड़ रुपये तक पहुँच जाती है, कॉन्फ्रेंसिंग शुल्क की बात न करना ही बेहतर है, जो सुनवाई शुल्क के समान ही होती है । इसी प्रकार फली नरीमन प्रति सुनवाई 11-15 लाख रुपये, पी चिदंबरम 6-7 लाख रुपये, कपिल सिब्बल 8-15 लाख रुपये, गोपाल सुब्रमण्यम 5.5-15 लाख रुपये , हरीश साल्व 6-15 लाख रुपये, एएम सिंघवी 6-11 लाख रुपये, सी सुंदरम 5.5-16.5 लाख रुपये लेते हैं, और ऐसे अनेक हैं । 

फिर से दोहराते हैं कि यह फीस सर्वोच्च न्यायालय में सिर्फ एक बार पेश होने के लिए है । दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली उच्च न्यायालय में पैरवी की दरें कभी-कभी इससे भी अधिक होती हैं। उदाहरण के लिए, के के वेणुगोपाल, जो सुप्रीम कोर्ट में 5-7.5 लाख रुपये बसूलते हैं, दिल्ली उच्च न्यायालय में उपस्थित होने के लिए 7-15 लाख रुपये तक फीस लेते हैं। " 

हुआ कुछ यूं कि न्यायमूर्ति चेलेश्वर से न्यायिक भ्रष्टाचार की स्थिति के बारे में पूछा गया था। उनका जवाब था : "न्यायमूर्ति (जेएस) वर्मा ने एक बयान दिया, न्यायमूर्ति (पीएस) भरूचा ने एक बयान दिया(दोनों पूर्व सीजेआई), लेकिन इस देश में कुछ भी हुआ क्या ? 1 करोड़ रुपये प्रति दिन वाले किसी वकील ने इस पर बात नहीं की। वे उन सभी न्यायाधीशों के सामने उपस्थित हुए, जिनकी वे लगातार आलोचना करते रहे । तो, इसके बारे में बात करने से क्या मतलब है। " 

न्यायमूर्ति चेलेश्वर ने संकेत में कहा कि भ्रष्टाचार इन करोड़ रुपये वाले वकीलों के लिए मुफीद है? स्मरणीय है कि न्यायिक भ्रष्टाचार के बारे में बार-बार बोलने वाले वकीलों में शांति भूषण और प्रशांत भूषण मुख्य हैं | 2010 में इन्होने खुले आम कहा था कि पूर्ववर्ती सोलह मुख्य न्यायाधीशों में से आठ भ्रष्ट थे। 

जब उनसे पूछा गया कि क्या न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए चयन-सह-साक्षात्कार प्रक्रिया होनी चाहिए, तो उन्होंने कहा: "पूरा तंत्र ऐसा होना चाहिए, जिसमें संवैधानिक अदालतों के न्यायाधीश, सार्वजनिक निकाय द्वारा जांच के अधीन हों । लेकिन इसके लिए कितने लोग सहमत होंगे? आप इन करोड़ रुपये के वकीलों से पूछें कि क्या वे इसके लिए सहमत होंगे। " 

1 करोड़ रुपये के वकीलों का यह दूसरा संदर्भ हमें बताता है कि न्यायाधीश ऊंची फीस वाले उन वरिष्ठ वकीलों के बारे में क्या राय रखते हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय के गलियारों में अपना शक्ति प्रदर्शन करते नहीं थकते । 

सौ टके का सवाल यह कि क्या ऊंची फीस लेने वाले वरिष्ठ वकीलों के न्यायपालिका के साथ ऐसे समीकरण हैं, जो निर्णय को प्रभावित करने की ताकत रखते है। 

न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने संकेत दिया है कि ऊंची फीस वाले वकीलों के साथ समस्या हो सकती है। समय की मांग है कि इस गठजोड़ की जांच की जाए । लेकिन अगर न्यायाधीश ही खुद ऐसा करने को तैयार नहीं हैं तो बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा ? 

जगन्नाथन, स्वराज के संपादकीय निदेशक हैं। उनका ट्विटर हेंडल है - @TheJaggi
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