दाऊद के इशारे पर दक्षिण भारत के हिंदू नेता प्रमोद मुथालिक और वरुण गांधी को खत्म करने की योजना बनाने वाले एक हत्यारे की रोमांचक कहानी !



शार्प शूटर रसीद मालबारी ने स्वीकारा कि कैसे दाऊद और छोटा शकील के नेटवर्क ने दक्षिण भारत के हिन्दू नेताओं को ठिकाने लगाने की योजना बनाई | 

साभार अनुवाद - विकी नानजप्पा | वन इंडिया ऑनलाइन | बेंगलुरु | 4 जुलाई, 2018 :: 

अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक आतंकवादी दाऊद इब्राहिम का करीबी सहयोगी रशीद मालबारी, पिछले दिनों कर्नाटक पुलिस की गिरफ्त में आ गया | वह चार साल पहले जमानत के दौरान नाटकीय ढंग में देश से भागने में कामयाब हो गया था । 

काफी दिनों तक उसका पीछा करने के बाद उसे छोटा शकील के लिए काम करते हुए अबू धाबी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया । कर्नाटक पुलिस उसके प्रत्यर्पण की मांग करेगी क्योंकि वह कई मामलों में वांछित अपराधी है, जिसमें कई हिंदू नेताओं की ह्त्या भी शामिल है। 

कर्नाटक पुलिस द्वारा की गई जांच से पता चला कि मलाबरी ने दुबई स्थित एक व्यवसायी को अपहरण कर पांच करोड़ की फिरौती माँगने की योजना बनाई थी, जो मंगलौर लौट रहा था । 

इस पैसे का उपयोग हिंदू नेताओं को मारने के लिए किया जाना था और उसके लिए उसने अपने तेज-निशानेबाजों को चुनना शुरू भी कर दिया था। 

कार्य योजना 

जब वह कर्नाटक में था, उस समय पुलिस द्वारा उसके जो बयान दर्ज किये गए, उनमें उसने स्वीकार किया था कि जब वह दुबई में था, तब उसके पास छोटा शकील का फोन आया था, जिसमें उसने मलाबरी को भारत जाने का निर्देश दिया था । संयोग से मलाबरी उन निशानेबाजों में से एक है जिन्होंने बैंकॉक में छोटा राजन पर भी गोली चलाई थी । 

"मुझे शकील ने मैंगलोर जाने और इस्माइल नामक एक व्यक्ति से मिलने के लिए कहा था। मैं दुबई गया और फिर गोरखपुर होता हुआ मुंबई पहुंचा। " 

" असाइनमेंट को अंतिम रूप देने से पहले, इस्माइल ने मुझे कुछ समय के लिए कैप में एक किराए के मकान में रहने के लिए कहा था। वहां रहने के दौरान मुझे सयाफ, मोहम्मद हाशिम और इब्राहिम से मिलवाया गया । जल्द ही हम अच्छे दोस्त बन गए और मुझे जाने आने के लिए अल्टो कार दी गई। इब्राहिम ने मुझे मुंबई जाने के लिए 25,000 रुपये दिए। " 

प्रोमोद मुथलिक और वरुण गांधी को मारने की योजना - 

"जब मैं मुंबई पहुंचा तो मैंने आगे के निर्देश प्राप्त करने के लिए शकील को फोन किया । उसने उस समय मुझे कुछ भी नहीं बताया, लेकिन कुछ दिनों बाद उसने मुझे दो एसएमएस भेजे, एक में मुझे प्रमोद मुथलिक को मारने का तथा दूसरे में इंदिरा गांधी के पोते वरुण गांधी को मारने का निर्देश दिया गया था । मैंने उस संदेश की पुष्टि करने के लिए दोबारा उसे फोन किया, तो उसने मुझसे कहा कि अपने समुदाय के हितों की रक्षा के लिए मुझे सोंपे गए काम को पूरा करना चाहिए। " 

"शकील ने मुझसे पूछा कि मुझे काम को जल्दी निबटाने के लिए, और क्या चाहिए ? मैंने उनसे कहा कि मैं पहले मुथलिक को मार दूंगा, बस मुझे तीन पिस्तौल चाहिए। इसके बाद शकील ने मुझे तीन पिस्तौल भेजे। मैं मंगलौर लौट आया और सयाफ, इब्राहिम और हाशिम को मुथलिक पर निगाह रखने की जिम्मेदारी सोंपी । " 

"मैंने इब्राहिम और सुहेल को बताया कि हमें मुस्लिम विरोधी मुथलिक को मारना है । मैंने उन्हें पूरी योजना समझाई थी कि कैसे हमें इसाओबू का अपहरण कर फिरौती बसूलनी है, और उस पैसे का उपयोग वरुण गांधी को मारने की योजना में करना है । इस दौरान शकील ने मुझे 1 लाख रुपये भी भेजे थे। " 

"हमने उडुपी रेलवे स्टेशन के पास से इसाबू को अपहरण करने की योजना बनाई थी। लड़कों को काम समझाने के बाद, मैं स्वयं कासरगोड में एक किराए के मकान में रहा । " 

मैंने इस काम के लिए उन्हें 20,000 रुपये दिए और इब्राहिम और हाशिम से क्षेत्र का एक विस्तृत स्केच बनाकर मुझे भेजने के लिए कहा, लेकिन वे कुछ करते, इसके पहले ही उन्हें पकड़ लिया गया। 

रसीद के अंडरवर्ल्ड प्रवेश की कहानी 

"मैं महाराष्ट्र के ठाणे जिले का रहने वाला हूँ, जहाँ मैं कुलसुम अपार्टमेंट के कमरा न. 202 में अपनी पत्नी जोहरा और बेटे अज़हर के साथ रहता था । मैंने मुंबई के गोवांदिया शिवाजी स्कूल में कक्षा 5 वीं तक पढाई की और उसके बाद पढाई छोड़ दी । मैं 14 साल की उम्र में इस्माइल के साथ, काम करने के लिए दुबई गया, जो मेरी बहन हाजीरा के पति हैं। " 

"मेरे माता-पिता उडुपी से हैं, मेरे पिता जीवन यापन के लिए मुंबई के होटलों में काम करते थे। मेरी मां जैनबी मेरे पिता की तीसरी पत्नी थीं। मेरे पिता के 8 बच्चे हैं। हम मुंबई के डोंगरी नामक जगह पर रहते थे। 1975 में मेरे पिता की मृत्यु के बाद, हम घाटकोपर चले गए। " 

"शुरूआत में, मैं बस स्टैंड पर कुली के रूप में काम करता था, बाद में मैंने चाय की दुकानों पर काम करना शुरू किया, इसके बाद और अधिक पैसा कमाने के लिए, मैंने घर घर जाकर दूध बेचना शुरू कर दिया। जब मैं 13 वर्ष का था, मैंने अपनी चाय की दुकान शुरू की। बाद में जब मेरी बहन हाजीरा का इस्माइल से विवाह हुआ, तो उसने मेरा भी पासपोर्ट बनवाया और मुझे अपनी शादी के 6 महीने के भीतर दुबई ले गया। " 

" दुबई में मैंने एक आइसक्रीम कंपनी “उम-अल-क्वीन” में एक सेल्समेन के रूप में काम किया। मेरा भाई, इस्माइल अक्सर झगड़े झंझट में पकड़ा जाता था और जेल की हवा खाता था । मैं इस तथ्य से अवगत था। दुबई के एक गेराज में मैकेनिक के रूप में काम करने वाले मेरे एक दोस्त सीके सरहिफ ने मुझसे 15,000 रुपये उधार लिये और कहा कि वह भारत से वापस आने के बाद पैसे वापस कर देगा, लेकिन उसने रुपये वापस नहीं किये। हमारा झगडा हुआ और मुझे 25 दिनों के लिए दुबई की जेल में रहना पड़ा । बाद में 10,000 रुपये जुर्माना भरकर मैं जेल से बाहर आया। 

जेल से आने के बाद आइसक्रीम कंपनी के प्रबंधक ने मुझे बर्खास्त करने की चेतावनी दी, मैंने 25 दिनों के लिए छुट्टी ली और 1990 में मुंबई वापस आया। " 

"जब मैं मुंबई वापस आया तो मेरे बड़े भाई इस्माइल बाबासाहेब जाधव की हत्या के आरोप में जेल में थे । मुझे अपने भाई को जेल से छुडाने के लिए धन की जरूरत थी । एक दिन किसी ने मुझे फोन कर अंधेरी के एक रेस्टोरेंट में मिलने के लिए बुलाया। वह जावेद उर्फ ​​लंबू था। ये लोग मेरे भाई दुश्मन थे और उसका बदला मुझसे लेना चाहते थे, किन्तु मैं उनसे बचकर भागने में कामयाब रहां। " 

"1992 में मैंने जोहरा से विवाह किया | उसके माता-पिता उडुपी जिले में काप नामक जगह के रहने वाले थे। इसी दौरान मेरे भाई जेल से बाहर आये, किन्तु उन्हें फिर से 1994 में मीसा के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया । 

उन्हें बाहर निकालने के लिए हमें पैसे चाहिए थे। मैं अपने भाइयों के आपराधिक रिकॉर्ड से थक गया था। मेरे पास पैसा नहीं था। इसके कारण मेरी पत्नी के साथ मेरा विवाहित जीवन भी प्रभावित हो रहा था। अंत में अपने भाई के साथ मतभेद के चलते मैंने अपनी पत्नी के साथ घर छोड़ दिया और कुछ समय के लिए केरल में जाकर रहा। लेकिन छह महीने के बाद मेरी मां ने मुझे फिर से मुम्बई बुला लिया और कहा कि मुझे उसके साथ रहना चाहिए । " 

"मुझे अपने भाई को बाहर निकालना था, लेकिन पास में पैसा नहीं था | उसे आर्थर जेल में रखा गया था। एक दिन जब मैं जेल में उससे मिलने गया तो उसने मुझे दाऊद के सहायक छोटा शकील का संपर्क नंबर दिया और कहा कि छोटा शकील मेरी मदद करेगा और उसकी रिहाई की व्यवस्था करेगा। मैंने छोटा शकील से संपर्क किया, वह दुबई में था। उसने फोन पर मुझसे बात की और मेरे भाई की जमानत की व्यवस्था करने पर सहमत हो गया, और हमें कुछ पैसे भी दिए। " 

शकील के साथ बैठक 

"मेरे पास कोई नौकरी नहीं थी, मेरे परिवार को पैसे की जरूरत थी। मैं काम करना चाहता था। मैंने छोटा शकील के गिरोह में शामिल होने का फैसला किया। इस्माइल ने मुझे उनके साथ काम नहीं करने के लिए कहा लेकिन मैंने उनकी बात सुनी नहीं। शुरुआत में मुझे मुंबई में कुछ लोगों को हवाला का धन सौंपने का काम दिया गया था, और मुझे गिरोह के सदस्यों के बीच मुंबई में भी हथियारों का परिवहन करना पड़ा। मुझे अपनी सुरक्षा के लिए 9 मिमी चीनी पिस्तौल भी दिया गया था। तब से मैं इस पिस्तौल को अपने साथ रखता हूं। " 

"1997 में, छोटा शकील ने मुझे फोन किया और मुझे नवी मुंबई के एक बिल्डर को धमकी देने के लिए कहा। यह मेरा पहला बड़ा काम था। मैंने तीन दिन तक उसके घर के पास इंतजार किया, फिर मैंने उस पर हमला किया और 4 गोलियां दागीं, उनमें से एक गोली उसे लग गई, मैं डरकर वहां से भाग गया। " 

"उस समय तक कोई भी यह नहीं जानता था कि मैं छोटा शकील के साथ काम कर रहा था, लेकिन अब यह सबको पता चल गया, क्योंकि उस घटना के बाद पुलिस मुझे खोज रही थी। सितंबर 1997 में, मेरे भाई साजिद जो मेरी बहन के साथ दुबई में रहते थे, छुट्टी के लिए मुंबई आए | जब वह मुंबई सेंट्रल में बीडीडी चाल में गए, तो छोटा राजन गिरोह के कुछ लोगों ने मेरे भाई को मार डाला और उसका सिर काट दिया। मैं उसके शरीर पर दावा भी नहीं कर सका क्योंकि बिल्डर वाली घटना के बाद से मुझे गिरफ्तारी का डर था। यह मेरे जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। मैंने मुंबई छोड़ दी और एक वर्ष तक केरल में रहा। " 

छोटा राजन पर हमला 

"छोटा राजन गिरोह के 10 सदस्यों ने मेरे भाई इस्माइल पर उस समय हमला किया, जब उसे अदालत में ले जाया जा रहा था। मुझे ज्ञात हुआ कि उन हत्यारों में से एक “जॉन “ को मैं जानता था। जब मैं केरल में था, तब छोटा राजन ने मुझे और मेरे दोस्त मस्तान को मारने के लिए जॉन को भेजा था। हमें इस योजना के बारे में पता चला और केरल से भाग गये। मैंने अपने भाई की हत्या के बारे में छोटा शकील को बताया । छोटा शकील ने मुझे जॉन और उसके सहयोगी प्रशांत को शूट करने के लिए कहा। " 

" हमने मंगलौर में उन्हें मारने की योजना बनाई, हम उनका पीछा करते हुए मंगलौर रेलवे स्टेशन पर गए। आखिरकार हमने उन्हें मंगलौर में मार डाला, मस्तान और मैंने जॉन और प्रशांत को गोली मार दी और एक ऑटो में बैठकर भाग गए। हमने छोटा शकील को फोन पर इस सफलता के बारे में सूचित किया। यह मेरी सबसे बड़ी सफलता थी। मुझे संतोष था कि मैंने अपने भाई की ह्त्या का बदला ले लिया था। " 

"वहां से हम तमिलनाडु चले गए और फिर कुछ समय बाद बैंगलोर लौट आए। छोटा शकील ने हमें सालाउद्दीन के साथ बैंगलोर में रहने के लिए कहा। बाद में छोटा शकील ने मुझे छोटा राजन के गिरोह के सदस्यों को मारने के लिए एक संकेत दिया। मैंने छोटा राजन गिरोह के सदस्य हुसैन वस्त्रा को मार डाला, फिर छोटा शकील ने मुझे दुबई आने के लिए कहा। " 

"1999 में, मैं अब्दुल लतीफ़ के नकली नाम से दुबई पहुंचा और कुछ समय विश्राम किया। शकील ने मुझे खर्च करने के लिए पैसे दिए और मैं अपनी बहन के साथ रहा। सन 2000 में छोटा शकील के निर्देशों पर मैं छोटा राजन को मारने के लिए तैयार हुआ। मुझे बैंकॉक में यूसुफ के साथ समन्वय करने के लिए कहा गया। मुझे तीन पिस्तौल दिए गए जिनका मैंने अच्छी तरह परीक्षण कर लिया कि वे ठीक तरह से काम कर रही थीं । " 

"मैं कुछ समय के लिए बैंकॉक में पेचपुरी नामक एक फार्म हाउस में रहा। शकील ने हमें छोटा राजन का पीछा करने के लिए कहा और बताया कि राजन पांच सितारा होटल जाएगा, जहाँ हम उसे मार सकते हैं। छोटा राजन गिरोह का सदस्य रोहित वर्मा भी उसके साथ था। हम होटल में इंतजार कर रहे थे लेकिन वे नहीं आये। हमने 6 दिनों तक इन्तजार किया। " 

"एक दिन हमने छोटा राजन और उसके सहयोगी झिंडा को देखा, लेकिन हमारे हाथ में कोई पिस्तौल नहीं था। हमने छोटा शकील से कहा कि हमने उसे देखा था। सौभाग्य से छोटा राजन उसी जगह के आस पास था । " 

"हम में से नौ लोगों ने छोटा राजन की हत्या की योजना बनाई। मुन्ना झिंगदा के साथ चार लोग प्लाट तक गए। जब उन्होंने दरवाजे की घंटी बजाई, तो रोहित वर्मा ने दरवाजा खोला। झिंगदा ने उसे तत्काल मार डाला। हम सभी ने फायरिंग शुरू कर दी, लेकिन छोटा राजन अपने शयनकक्ष में था, वह एक खिड़की से निकल भागा, जब तक हमने बेडरूम का दरवाजा खोला, वह बच निकला था । हम अगले छह महीनों तक चुप रहे। " 

"2005 में, छोटा शकील ने मुझे कुआलालंपुर जाने और छोटा राजन गिरोह के सदस्य बालू डोंगरे को मारने के लिए कहा। बालू डोंगरे छोटा राजन का करीबी सहयोगी था। मैंने डोंग्रे को मारा, और दुबई लौट आया। "
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