ऐसे मुसलमान जिनके पूर्वज हिन्दू थे – समझें वैदिक इस्लाम – दिवाकर शर्मा



आजकल ये अजीब बात देखने में आ रही है कि जो मुसलमान अपने धर्म में आ गई ख़ामियों पर उंगली उठाने की जुर्रत करता है, उसे इस्लाम की निंदा करने का दोषी करार दे दिया जाता है | क्या इस्लामी जगत में रहस्यवाद, सौंदर्यबोध और ईश्वरीय अवधारणा से जुड़े प्रश्नों के उत्तर खोजना पाप है ? जो कोई खुद से, अपने देश और अपनी सभ्यता-संस्कृति से प्रेम करता है, उसे आत्मालोचना से भी प्रेम होना चाहिये | आत्ममुग्ध होना अपने आप से प्रेम करना नहीं है | जो कोई मुसलमान होने के नाते इस्लाम से मुठभेड़ नहीं करता, आलोचनात्मक प्रश्न नहीं पूछता, सच कहा जाये तो वह इस्लाम से भी सच्चा प्यार नहीं करता | 

जिन सवालों के जबाब मुल्ला मौलवियों के पास नहीं है, उन्हें वेदों में ढूँढना चाहिए ? 

इस्लाम में अल्लाताला रहमान ओ रहीम हैं, न्याय करने वाले हैं ऐसा मुल्ला बताते हैं। फिर क्या कारण है कि इस दुनिया में कोई गरीब, कोई मालदार, कोई इंसान, कोई जानवर होता है। अगर अल्लाह का न्याय सबके लिए समान है, जैसा कुरान में लिखा है तो सबको एक जैसा होना चाहिए। कोई व्यक्ति जन्म से ही कष्ट भोग रहा है तो कोई आनंद उठा रहा है। अगर संसार में यही सब है तो फिर अल्लाह न्यायकारी कैसे हुआ? यही सवाल यदि इस्लाम के ठेकेदारों, मुल्ला मौलवियों से पूछा जाए तो उनका जवाब होता है कि “तुम अल्लाताला के मामले में अक्ल क्यों लगाते हो? मौज करो, इस्लाम पर सवाल करना पाप है |” 

जबकि इस महत्वपूर्ण सवाल का जवाब वेदों में प्रमाण के साथ मौजूद है | वेदों में व्यक्ति के अनेक और इस इस जन्म में किये गये सुकर्म या दुष्कर्मों को अगले जन्म में भोग का वर्णन किया है। यह तर्क संगत भी है क्योंकि हम बैंक में जब खाता खोलते हैं, तो हमें बचत खाते पर नियमित छह माह में ब्याज मिलता है। मूलधन सुरक्षित रहता है। तथा स्थिर रकम पर एक साथ ब्याज मिलता है। उसी प्रकार जीवात्मा, सृष्टि की उत्पत्ति के बाद अनेक शरीरों, योनियों में प्रवेश करता है और अपने सुकर्मों और दुष्कर्मों का फल भोगता है। पुनर्जन्म के बिना यह संभव नहीं हो सकता। पुनर्जन्म को मानना आवश्यक है, लेकिन मुस्लिम समाज पुनर्जन्म को नहीं मानता। 

वो तो यह मानते हैं कि चौहदवी शताब्दी में संसार मिट जाएगा। कयामत आएगी और फिर मैदाने-हश्र में सभी का इंसाफ होगा। लेकिन उस मैदाने-हश्र में जो भी हजरत मुहम्मद के झंडे के नीचे आ जाएगा, मुहम्मद को अपना रसूल मान लेगा उसे बख्श दिया जाएगा। मतलब ये कि उसे अपने कर्मों के फल भुगतने का झंझट नहीं होगा और वो सीधा जन्नत में जाएगा। यह बात कहीं से भी तर्कसंगत नहीं लगती। मुस्लिम समाज में सृष्टि का अंत चौहदवी सदी में माना जाता है जबकि चौहदवी शताब्दी तो कब की खत्म भी हो गई। फिर यह संसार समाप्त क्यों नहीं हुआ? कयामत क्यों नहीं आई? क्या मुहम्मद साहब और इस्लाम से पूर्व यह संसार नहीं था? क्योंकि इस्लाम के उदय को लगभग 1500 साल हुए हैं संसार तो इससे पूर्व भी था और रहेगा। 

मुस्लिम समाज को खुद से एक बड़ा सवाल यह पूछना चाहिए कि जब एक मुस्लिम पति एक समय में चार बीवियां रख सकता है तो एक मुस्लिम औरत एक समय में चार पति क्यों नही रख सकती? इस्लाम में औरतों के साथ ये कैसी नाइंसाफी है? एक पुरुष के मुकाबले दो स्त्रियों की गवाही ही पूर्ण मानी जाती है। ऐसा क्यों? आखिर औरत भी तो इंसानी जात का हिस्सा है। फिर उसे आधा मानना उस पर अत्याचार करना कहाँ की अक्लमंदी है और कहाँ तक इसे अल्लाताला का इंसाफ माना जा सकता है? 

इसके विपरीत वेदों में इस बात को प्रमाणिकता के आधार पर सिद्ध किया गया है कि स्त्री और पुरुष दोनों समान हैं। एक पत्नी से अधिक तब ही हो सकती है जब कोई विशेष कारण हो, जैसे कि पत्नी संतान पैदा नहीं कर सकती हो। ऐसा भी पहली पत्नी की इजाज़त के बिना नहीं हो सकता। एक पत्नीव्रत को स्वाभाविक गुण माना गया है। मनु ने कहा है – यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः अर्थात जहाँ नारियों का सम्मान होता है वहां देवता वास करते हैं। 

एक और गंभीर सवाल है स्वर्ग और नर्क का | वर्तमान में इस्लाम की पैरवी करने वाले मानते है कि कयामत के बाद फैसला होगा। अच्छे कर्म वालों को जन्नत और बुरे कर्म वालों को दोजख मिलेगा। जन्नत का जो वर्णन है वह इस प्रकार है कि वहां सेब, संतरे, शराब, एक व्यक्ति को 72 हूरें और चिकने-चुपड़े युवक मिलेंगे | अब यह सवाल मुल्ला-मौलवियों से पूछा जाना चाहिए कि जब एक पुरुष को जन्नत में 72 औरतें मिलेंगी तो मुस्लिम महिलाओं को क्या मिलेगा? निश्चित रूप से इस सवाल पर उनकी त्योरियां चढ़ जाएंगी और वह कहेंगे कि कि अल्लाह की इबादत करो और मौज उड़ाओ | परन्तु क्या उनके इस जवाब से इस्लाम के प्रति जागरूक मुसलमान की शंकाओं का समाधान होगा ? 

इतिहास साक्षी है कि इस्लाम कभी भी वैचारिकता या अपनी मर्जी के कारण नहीं फैला है। इस्लाम शुरुआती समय से अब तक तलवार, डर, एक से ज्यादा बीवियों के लालच, जन्नत का लोभ और धन के मोह के कारण ही अपनाया गया। हजरत मुहम्मद साहब को कई युद्ध करने पड़े थे, खुद उनके चाचा अबू लहब ने आखिरी वक्त तक इस्लाम को नहीं कबूला, क्योंकि वो वैज्ञानिक और तर्कवादी थे। हजरत मुहम्मद को मक्का से निष्कासित भी होना पड़ा, क्योंकि वो अरब की सभ्यता में पूरी तरह से बदलाव की कल्पना करते थे और अरब के लोग कई कबीलों में बंटे हुए थे। अबराह का लश्कर तो एक बार मक्का में स्थापित भगवान शंकर के विशाल शिवलिंग (संगे असवाद) को मक्का से ले जाने के लिए आया था लेकिन भीषण युद्ध में कई लोगों ने जान गंवा दी। 

मुस्लिम इतिहास में एक भी प्रमाण त्याग, समर्पण या सेवा का नहीं मिलता। वैदिक इतिहास के झरोखे से देखे तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वन को प्रस्थान करते हैं, दूसरी तरफ औरंगजेब अपने पिता को जेल में कैद कर बूंद-बूंद पानी के लिए तरसाता है। यह त्याग, समर्पण और सेवा का ही नतीजा है कि हजारों साल से वैदिक संस्कृति बनी हुई है और उसे कोई मिटा नहीं पाया। भारत में रह रहे कई मुसलमानों के परिवारों के पूर्वजों को लालच में आकर अपना मूल धर्म त्याग कर इस्लाम में जाना पड़ा। ऐसे में इन जैसे मुसलमानों को इस बात का ज्ञान होना आवश्यक है कि आपकी पूजा पद्धति कुछ भी हो सकतीहै, आप किसी भी समुदाय के हो सकते हैं लेकिन जिस देश में पले-बढ़े हैं उस देश को तो अपनी माँ ही मानना चाहिए। राष्ट्रभक्ति किसी व्यक्ति का पहला कर्तव्य होना चाहिए। 

इस्लाम के बिगड़ते स्वरुप के कारण आज सीरिया और इराक जैसे इस्लामिक देशों से वीभत्स तस्वीरें सामने आ रही है | जिनमें हर नीचतापूर्ण कृत्य के साथ कुरान को ऊपर उठा कर लहराया जाता है और हर सिर कलम करने के साथ अल्लाहो-अकबर चिल्लाया जाता है | आज इस्लामी दुनिया के ज्यादातर देशों की सरकारें, धर्म की शिक्षा देने वाले संस्थान या विद्रोही संगठन भी उस समय इस्लाम को ही साक्षी बनाते हैं, जब वे अपनी ही जनता को पैरों तले कुचलते हैं | तब भी जब वे महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं, अलग धर्म और जीवन शैली वालों पर अत्याचार करते हैं | उन्हें विस्थापित करते हैं या उनका क़त्ले-आम करते हैं | इस्लाम को ही साक्षी बना कर अफ़ग़ानिस्तान में औरतों को पत्थर से मारा जाता है | पाकिस्तान में स्कूली बच्चों की पूरी की पूरी कक्षाओं को मौत के घाट उतार दिया जाता है | नाइजीरिया में सैकड़ों लड़कियों को गुलाम बना दिया जाता है | लीबिया में ईसाइयों का सिर कलम कर दिया जाता है | बांग्लादेश में ब्लॉगरों को गोली मार दी जाती है | माली में सूफियों और संगीतकारों का सफ़ाया कर दिया जाता है | सऊदी अरब में सरकार के आलोचकों को सूली पर चढ़ा दिया जाता है | ईरान में महत्वपूर्ण समकालीन साहित्य पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है | बहरीन में शियाओं का दमन होता है तो यमन में शिया-सुन्नियों को आपस में लड़ा दिया जाता है | मुस्लिम देशों के निवासी भाग कर यूरोप के ग़ैर-मुस्लिम देशों में शरण ले रहे हैं, क्योंकि इस्लाम पश्चिम से नहीं बल्कि अपने आप से ही लड़ रहा है | 

आज के इस्लामी जगत में जो चौतरफा उथल-पुथल मची हुई है, उसकी जड़ सउदी अरब द्वारा प्रचारित और प्रसारित की जा रही इस्लाम की वहाबी व्याख्या है | उनके मुताबिक आईएस की आतंकशाही में ही नहीं, इस्लामी दुनिया के कोने-कोने में यह विचारधारा घर कर चुकी है | सलाफ़ीवाद के नाम से यह यूरोप के युवाओं को भी मोहने लगी है | आईएस की स्कूली पुस्तकों और पाठ्यक्रमों की सामग्री 95 प्रतिशत वही की वही है, जैसी सऊदी अरब के स्कूलों में सिखाई-पढ़ाई जाती है | सारी मानवता को वही अल्लाह के बंदों और काफ़िरों में बांटती है | 

हम हैरान होते हैं कि इस्लामी स्टेट में मूर्तियों और सदियों पुरानी इमारतों को ध्वस्त किया जा रहा है, क्योंकि हम नहीं जानते कि सऊदी अरब में लगभग कोई पुरातात्विक वस्तु नहीं बची है | वहाबियों ने मक्का में पैगंबर मुहम्मद के निकटतम संबंधियों की कब्रों और मस्जिदों, यहां तक कि पैगंबर जिस घर में पैदा हुए थे, उसे भी गिरा कर नष्ट कर दिया है | मदीना में पैगंबर वाली ऐतिहासिक मस्जिद को गिरा कर एक नई विशालकाय मस्जिद बना दी गई है | जहां कुछ ही साल पहले तक वह घर हुआ करता था, जिसमें अपने समय में हजरत मुहम्मद अपनी पत्नी खदीजा के साथ रहा करते थे, वहां आज एक सार्वजनिक शौचालय है | कुल मिलकर आज का इस्लाम ‘धार्मिक फ़ासीवाद बनता जा रहा है | 

इस बात को आज उन मुसलमानों को समझना बेहद आवश्यक है, जिनके पूर्वज हिन्दू ही थे | उन्हें समझना होगा कि यदि वे मुस्लमान रहकर, वैदिक इस्लाम को धारण करेंगे तभी उनका, उनके देश का एवं सम्पूर्ण मानव जाति का कल्याण संभव है |
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