वीरगति पाकर भी गुमनाम रहे महान क्रन्तिकारी अनाथ बन्धु एवं मृगेन्द्र दत्त, जिन्होंने चरखे की बजाय अस्त्रों को बनाया था अपना हथियार

अनाथ बन्धु एवं मृगेन्द्र दत्त यह ऐसे दो नाम है जो आज बहुत खोजने के बाद भी नहीं मिलते | योद्धाओं जैसी वीरगति पाने वाले अनाथ बंधू एवं मृगेंद्र दत्त के नाम को चाटुकार इतिहासकारों ने इतिहास से मिटाने की हर संभव कोशिश की, क्योँकि इन्होने चरखे को छोड़ अस्त्रों को अपना हथियार बना कर अंग्रेजों की जड़ों को हिला कर रख दिया था | यह कितनी शर्म की बात है कि बेहद ही कम उम्र में बड़े अंग्रेज अधिकारीयों को मौत के घाट उतारने वाले जिन वीरों का इतिहास स्वर्णाक्षरों में लिखा जाना चाहिए थे, जन जन तक पहुँचाया जाना चाहिए था, जिनका समाज में पूज्यनीय स्थान होना चाहिए था, भारत की तथाकथित सेकुलर नीति और खुद से खुद के लिए गढ़ी गई सत्ता नीति के चलते इतिहासकारों की लिखी लाइनों में इन्हें जगह देने लायक भी नहीं समझा गया |

दरअसल ऐसे वीर योद्धाओं का इतिहास यदि समाज जान जाएगा तो स्वयं को सम्पूर्ण आजादी का श्रेय देने वाले परिवार की पूछ परख ही समाप्त हो जाएगी | यदि स्वतंत्र भारत के लोग अनाथ बंधू एवं मृगेंद्र दत्त समेत उन गुमनाम क्रांतिकारियों का गौरवशाली इतिहास जान जायेंगे, जो अपनी जान हथेली पर लेकर घूमते थे एवं आजादी हेतु अपना सर्वस्व भारत माता के चरणों में न्योछावर करने को तत्पर रहते थे तो स्वाभाविक ही भारतीयों में उनके प्रति आदर की भावना जागृत होगी, फिर चरखे वाले नेताओं को कौन पूछेगा | बस यही एक कारण है कि अनाथ बन्धु एवं मृगेन्द्र दत्त जैसे वीर क्रन्तिकारी, आज इतिहास में स्थान नहीं पा सके है | आइये जानते है अनाथ बंधू एवं मृगेंद्र दत्त जैसे भारत माता के वीर सपूतों के बारे में | 

बंगाल की धरती पर जन्मे दो मित्र थे अनाथ बन्धु तथा मृगेन्द्र कुमार दत्त, जिनके बलिदान से शासकों को अपना निर्णय बदलने को विवश होना पड़ा | उन दिनों बंगाल के मिदनापुर जिले में क्रान्तिकारी गतिविधियां जोरों पर थीं | इससे परेशान होकर अंग्रेजों ने वहां जेम्स पेड्डी को जिलाधिकारी बनाकर भेजा | वह बहुत क्रूर अधिकारी था | छोटी सी बात पर 10-12 साल की सजा दे देता था | क्रान्तिकारियों ने शासन को चेतावनी दी कि वे इसके बदले किसी भारतीय को यहां भेजें, पर शासन तो बहरा था सो बात नहीं सुनी गई | अतः एक दिन जेम्स पेड्डी को गोली से उड़ा दिया गया | अंग्रेज इससे बौखला गये | अब उन्होंने पेड्डी से भी अधिक कठोर राबर्ट डगलस को भेजा | एक दिन जब वह अपने कार्यालय में बैठा फाइलें देख रहा था, तो अचानक दो युवक उसके सामने आये और उसे गोली मार दी | डगलस वहीं ढेर हो गया | दोनों में से एक युवक तो भाग गया, पर दूसरा प्रद्योत कुमार पकड़ा गया | शासन ने उसे फांसी की सजा दी |

दो जिलाधिकारियों की हत्या के बाद भी अंग्रेजों की आंख नहीं खुली अबकी बार उन्होंने बीईजे बर्ग को भेजा | बर्ग सदा दो अंगरक्षकों के साथ चलता था | इधर क्रान्तिवीरों ने भी ठान लिया था कि इस जिले में किसी अंग्रेज जिलाधिकारी को नहीं रहने देंगे | बर्ग फुटबाल का शौकीन था और टाउन क्लब की ओर से खेलता था | 02 सितम्बर, 1933 को टाउन क्लब और मौहम्मदन स्पोर्टिंग के बीच मुकाबला था | खेल शुरू होने से कुछ देर पहले बर्ग आया और अभ्यास में शामिल हो गया | अभी बर्ग ने शरीर गरम करने के लिए फुटबाल में दो-चार किक ही मारी थी कि उसके सामने दो खिलाड़ी, अनाथ बन्धु और मृगेन्द्र कुमार दत्त आकर खड़े हो गये | दोनों ने जेब में से पिस्तौल निकालकर बर्ग पर खाली कर दी | वह हाय कहकर धरती पर गिर पड़ा और वहीं मर गया |

यह देखकर बर्ग के अंगरक्षक दोनों पर गोलियाँ बरसाने लगे | इनकी पिस्तौल तो खाली हो चुकी थी, अतः जान बचाने के लिए दोनों दौड़ने लगे, पर अंगरक्षकों के पास अच्छे शस्त्र थे | दोनों मित्र गोली खाकर गिर पड़े | अनाथ बन्धु ने तो वहीं प्राण त्याग दिये. मृगेन्द्र को पकड़ कर अस्पताल ले जाया गया | अत्यधिक खून बह जाने के कारण अगले दिन वह भी चल बसे | घटना के बाद पुलिस ने मैदान को घेर लिया | हर खिलाड़ी की तलाशी ली गयी | निर्मल जीवन घोष, ब्रजकिशोर चक्रवर्ती और रामकृष्ण राय के पास भी भरी हुई पिस्तौलें मिलीं | ये तीनों भी क्रान्तिकारी दल के सदस्य थे | यदि किसी कारण से अनाथ बन्धु और मृगेन्द्र को सफलता न मिलती, तो इन्हें बर्ग का वध करना था | पुलिस ने इन तीनों को पकड़ लिया और मुकदमा चलाकर मिदनापुर के केन्द्रीय कारागार में फांसी पर चढ़ा दिया |

तीन जिलाधिकारियों की हत्या के बाद अंग्रेजों ने निर्णय किया कि अब कोई भारतीय अधिकारी ही मिदनापुर भेजा जाये | अंग्रेज अधिकारियों के मन में भी भय समा गया था | कोई वहां जाने को तैयार नहीं हो रहा था | इस प्रकार क्रान्तिकारी युवकों ने अपने बलिदान से अंग्रेज शासन को झुका दिया। आज उन वीरों के बलिदान दिवस पर देश की जनता से एक प्रश्न पूछा जाना आवश्यक है कि क्या आज़ादी के स्वर्ण ग्रन्थ में इनका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाना नहीं चाहिए ? क्या अनाथ बन्धु एवं मृगेन्द्र दत्त सहित निर्मल जीवन घोष, ब्रजकिशोर चक्रवर्ती और रामकृष्ण राय जैसे वीर योद्धाओं की जीवनियां विद्यालयों में नहीं पढाई जानी चाहिए ?

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