लगभग साथ साथ स्वतंत्र होने के बाद भी भारत अगर चीन से पीछे है, तो उसके लिए जिम्मेदार कौन ? - चिंतन भाग 1 - सचिन खरे



हम भारतीयों को चीन से बड़ा द्वेषभाव है, स्वाभाविक भी है, आखिर उसने सदैव भारत के साथ शत्रुता ही तो निभाई है | किन्तु हम भारतीय कब तक एक जलने वाले पड़ौसी के समान अपने देश की अर्थव्यवस्था की तुलना चीन की अर्थव्यवस्था से करते रहेंगे, चीन की तरक्की से हम अपने पिछड़ेपन की तुलना करते रहेंगे .. 

आईये चीन के विकास और अपने पिछड़ेपन का कारण तो जानें -

यदि आज हम चीन से पीछे बहुत पीछे हैं तो कोई तो इसके लिए जिम्मेदार होगा और जब इस जिम्मेदारी को आप ढूंढने निकलेंगे तो समझ में आएगा कि अगर अर्थव्यवस्था ठीक हो, तो ही देश उन्नति कर सकता है और इसकी जिम्मेदारी आम जनता की नही हो सकती | आम जनमानस को तो अर्थव्यवस्था जैसी शब्दावली की परिभाषा तक नही पता होती, यह तो अब दिन बराए मेहरबानी सोशल मीडिया और रात -दिन चीखने वाले मीडिया चैनलों के कारण लोगो ने इस ओर ध्यान देना आरम्भ किया है अन्यथा मुझे स्मरण है कि जब मैं स्कूल में था तब घर में केवल बजट के दिन पिताजी यह सुनते थे कि क्या महंगा हुआ, क्या सस्ता हुआ, कितना टैक्स बचेगा, आयकर का नया स्लैब क्या है.... बस... 

कमोबेश यही स्थिति सभी के घरों में होती थी.. 

तो बात का लब्बोलुआब यह है कि अर्थव्यवस्था की उन्नति की जिम्मेदारी सरकार की ही होती है.. 

कांग्रेस के समय सरकारों के कामकाज का आंकलन समाचार पत्रों के सम्पादकीय तक सीमित रहता था, सम्पादक ने जो लिख दिया बस वही जनता की समझ होती थी, तब समाचार पत्रों की साख के बारे में क्या कहे, पत्थर की लकीर के समान समाचार पत्र के लिखे हुए को माना जाता था... सूचना क्रांति और सोशल मीडिया के विस्तार के बाद सभी लोगों तक सभी लोगों की बातें पहुंचने लगी हैं, लोग चाहे न चाहे जानने लगे हैं कि क्या चल रहा है, कौन क्या कह रहा है, कौन क्या कर रहा है... 

आजकल मोदी जी के कारण सभी लोग तुलनात्मक चर्चा करने लगे हैं, पिछली सरकार ने क्या किया था, उसके पहले की सरकारों ने क्या किया था और फिर वर्तमान सरकार क्या कर रही है.. होना भी ऐसा ही चाहिए, तभी तो वर्तमान सरकार के कार्यो की समीक्षा की जा सकेगी.. 

तो कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था की जिम्मेदारी सरकार की होती है.. 

तो जब चीन की अर्थव्यवस्था दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रही थी तब भारत की अर्थव्यवस्था क्या कर रही थी,, मतलब भारत की सरकारें तब क्या कर रही थीं..!!

अब आप संलग्न चित्र देखिये ,, इसलिए देखिये क्योंकि आपको पता चलेगा कि चीन की अर्थव्यवस्था कब चढ़ाई पर थी, भारत के तब क्या हाल थे और उस समय भारत में किस की सरकार थी.. 

स्वतंत्रता के पश्चात जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने, फिर उन्होंने उपलब्ध साधनों से आगे बढ़ना प्रारम्भ किया,, नेहरू जी के कार्यों की मैं विवेचना नही करना चाहूंगा क्योंकि उस समय नयी व अत्यंत कठिन परिस्थितियां रही होंगी, मैं ऐसा मानना चाहता हूँ..

नेहरू जी के बाद सर्वाधिक कार्यकाल तक यदि कोई प्रधानमंत्री रहा तो वह थीं इंदिरा गांधी जी और फिर उनके सुपुत्र राजीव गांधी.. (यहाँ फिर से एक बार चित्र देखिये और वर्ष पर ध्यान दीजिए)

यहां एक बात कहना चाहूंगा कि किसी भी नेता में सभी गुण मिल जाएं यह सम्भव नही, प्रत्येक मनुष्य की चिंतन शक्ति उसे विषय या विषयों पर प्रवीण तो बना सकती है किंतु सभी विषयों पर व्यक्ति दक्ष हो यह असम्भव के बिल्कुल पहले की बात होगी और इसी लिए नेता वही अच्छा है अपना दृष्टकोण स्पष्ट रखे और देश को आगे ले जाने के लिए विषय के जानकार लोगो को दायित्व तो दे पर साथ ही उन पर नियंत्रण भी रखे.. 

किन्तु यहां व्यक्ति का चरित्र अत्यंत महत्वपूर्ण कारक होता है, इंदिरा जी बाल्यकाल से सत्ता की शक्ति के साथ पली बढ़ी, उन्हें लगभग राजकुमारियों वाला व्यवहार मिला और उनके लिए सत्ता केवल दासी के समान रही और जनता उनके लिए वोट बैंक से अधिक कभी कुछ रही हो इस बात को न मानने के उदाहरण बहुत ही कम मिलते है.. 

जैसे प्रत्येक बिटिया के लिए उसके पिता से बढ़कर कोई आदर्श नही होता उसी प्रकार इंदिरा जी के लिए उनके पिता ही आदर्श रहे और न केवल उन्होंने अपने पिताजी की बुरी आदतों को ग्रहण किया वरन अपने पिता की कार्यशैली को भी यथावत रखा..

यहां से देश के लिए भी समस्या आरम्भ हो गयी, इंदिरा जी के समय तक, स्वतन्त्रता के बाद की कठिन परिस्थितियां नही रही थीं किन्तु कार्यशैली वही नेहरू जी वाली बनी रही, परिणामस्वरूप भारत की उन्नति व अर्थव्यवस्था उसी लचर गति से आगे बढ़ती रही जैसे कि नेहरूजी के समय बढ़ रही थी..

फिर आये राजीव गांधी जी, हवाई जहाज उड़ाने के अपने अत्यंत लघु अनुभव के साथ राजनीति में आये और सीधे प्रधानमंत्री बना दिये गए.. 

देश को भी हवाई जहाज के समान उड़ना चाहिए था किंतु ऐसा न हो सकता था और ना ही ऐसा हुआ.. चूंकि अनुभव शून्य थे अतः जो भी उनकी माताजी करती रहीं ये भी आंख भींच कर उसी लकीर पर चलते रहे, परिणाम स्वरुप देश की उन्नति और अर्थव्यवस्था वही नेहरू जी वाली गति से आगे बढ़ती रही..

भारत और चीन में बहुत अंतर रहा हो ऐसा नही है, जैसे मजदूर वहां थे वैसे ही मजदूर यहां भी थे, विदेशियों को जिस सस्ते भाव पर चीन में मजदूरी मिलती थी भारत मे भी कमोबेश वही स्थिति थी किन्तु भारत की भौगोलिक परिस्थिति चीन से सदैव बेहतर रही है, हमारे पर जितनी बड़ी समुद्री सीमा है वह चीन के पास नही है और हिन्द महासागर से जितने देश जुड़ते हैं निश्चित ही चीन के पास यह सुविधा कभी नही रही,, चीन की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार तो उसे भारत के पीछे होना चाहिए था किंतु चीन में एक परिवार देश को नियंत्रित नही कर रहा था..

1980 के दशक में चीन भारत से आगे बढ़ने लगा था किंतु भारत..... खालिस्तान, लिट्टे, बोफोर्स, सिख्खो की हत्या, नेल्ली नरसंहार, कश्मीर, अयोध्या में मन्दिर, भागलपुर, मेरठ और न जाने क्या क्या झेलने में व्यस्त था.. 

चीन स्वयं को विश्व के लिए एक फैक्ट्री के रूप में तैयार कर रहा था और भारत अपनी आंतरिक समस्याओं से जूझ रहा था, ऐसा नही था कि चीन में आंतरिक समस्याएं नही थीं, जनता के बड़े विद्रोह व हत्याकांड भी हुए किन्तु वहां की सरकार ने अर्थव्यवस्था की उन्नति के मार्ग को कभी छोड़ा नही.. वामपंथी विचारधारा की अपनी पहचान को साधते हुए चीन ने पूंजीवाद को भी बखूबी पोसा जिसका परिणाम विश्व की बड़ी कम्पनियों ने चीन को अपना उत्पादन देश तय कर दिया..

इधर भारत नेहरू जी के समाजवाद को ढो रहा था तो उधर चीन लगातार उन्नति की राह पर चल रहा था,, फिर आये पी वी नरसिम्हाराव जिन्होंने वास्तव में नेहरू जी के समाजवाद को फेंकते हुए भारत की अर्थव्यवस्था को विश्व के लिए खोल दिया (जिसे मनमोहनसिंह जी की पहचान बताई जाती है जबकि मनमोहन सिंह जी तब भी एक बहुत अच्छे रोबोट हुआ करते थे और UPA१ और २ में भी वे बहुत अच्छे रोबोट ही बने रहे)

किन्तु तबतक चीन बहुत आगे निकल चुका था और लाख प्रयासों के बाद भी जो वैश्विक कम्पनियां चीन को चुन चुकीं थीं उन्हें भारत उतना आकर्षक नही लगा.. 

यहीं तक जो चीन और भारत मे 15 वर्ष की दूरी बन चुकी थी वह आज भी यथावत दिखाई देती है..

भारत के अजीम प्रेमजी (जिनकी कम्प्यूटर कम्पनी में मैं 6 वर्ष तक व्यवसायिक साझेदार के रूप में कार्यरत था), नारायण मूर्ति, शिव नाडार जैसे सॉफ्टवेयर दिग्गजों ने भारत को ऐसे क्षेत्र में आगे बढ़ाया जहां चीन पीछे था और यहीं से भारतीय अर्थव्यवस्था में भी अच्छे दिन की शुरुआत कहा जा सकता है किंतु अर्थव्यवस्था के बाकी के आधारभूत सेक्टर फिर भी चीन से बहुत पीछे थे, देश मे टैक्स एकत्र करने की व्यवस्था, टैक्स देने वाले सक्षम लोग, बैंकिंग रिफार्म, टैक्स रिफार्म, आदि आदि आदि, और ऊपर से भ्रष्टाचार भारत को जकड़े हुए था..
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