हे नाथ नारायण वासुदेवाय - संजय तिवारी

युगप्रवर्तक योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण सभी को बहुत प्यारे हैं। उनके जन्मदिन का महोत्सव भारत के हर घर ,हर मंदिर और हर कही मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को प्रायः बच्चे भी व्रत रख लिया करते हैं। अत्यंत उत्साहपूर्वक यह पर्व मनाया जाता है। मथुरा और वृन्दावन के मंदिरो की झाकिया तो प्रसिद्ध हैं ही , इस अवसर पर लोग अपने अपने घरो में भी श्रीकृष्ण के जन्म की झांकी सजाते हैं और उत्सव मनाते हैं। देवताओं में भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं। उनका बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है। एक राजा और मित्र के रूप में वे भगवद् भक्त और गरीबों के दुखहर्ता बनते हैं तो युद्ध में कुशल नितिज्ञ। महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ भगवान श्री कृष्ण ने पढ़ाया है आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल कर सामने आते हैं। भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक रोमांचक कहानियां है। इन्ही श्री कृष्ण के जन्मदिन को जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिये भक्तजन उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं।

श्रीकृष्ण अवतार 

जब भी असुरों के अत्याचार बढ़े हैं और धर्म का पतन हुआ है तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। इसी कड़ी में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि केअवजित मुहूर्त में अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया। एक ऐसा अवतार जिसके दर्शन मात्र से प्राणियो के, घट घट के संताप, दुःख, पाप मिट जाते है | जिन्होंने इस श्रृष्टि को गीता का उपदेश दे कर उसका कल्याण किया, जिसने अर्जुन को कर्म का सिद्धांत पढाया, यह उनका जन्मोत्सव है |

कालरात्रि , शिवरात्रि , मोहरात्रि ,अहोरात्रि 

वेदों में चार रात्रियों का विशेष महातव्य बताया गया है दीपावली जिसे कालरात्रि कहते है,शिवरात्रि महारात्रि है,श्री कृष्ण जन्माष्टमी मोहरात्रि और होली अहोरात्रि है| जिनके जन्म के सैंयोग मात्र से बंदी गृह के सभी बंधन स्वत: ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए, माँ यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठी, उस भगवान श्री कृष्ण को सम्पूर्ण श्रृष्टि को मोह लेने वाला अवतार माना गया है | इसी कारण वश जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। | इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी का व्रत "व्रतराज" कहा गया है। इसके सविधि पालन से प्राणी अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्य राशि प्राप्त कर सकते है |

जनमानस के लिए जीवन दर्शन 

योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। ब्रजमंडल में श्री कृष्णाष्टमी "नंद-महोत्सव" अर्थात् "दधिकांदौ श्रीकृष्ण" के जन्म उत्सव का दृश्य बड़ा ही दुर्लभ होता है | भगवान के श्रीविग्रह पर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढा ब्रजवासी उसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं तथा छप्पन भोग का महाभोग लगते है। वाद्ययंत्रों से मंगल ध्वनि बजाई जाती है। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है। सम्पूर्ण ब्रजमंडल "नन्द के आनंद भयो - जय कन्हैय्या लाल की" जैसे जयघोषो व बधाइयो से गुंजायमान होता है| 

व्रतमहात्म्य : भविष्य पुराण 

भविष्य पुराण के जन्माष्टमी व्रत-माहात्म्य में यह कहा गया है कि जिस राष्ट्र या प्रदेश में यह व्रतोत्सव किया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस व्रतराज के अनुष्ठान से सभी को परम श्रेय की प्राप्ति होती है। व्रतकर्ता भगवत्कृपा का भागी बनकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अन्त में वैकुंठ जाता है। कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं।दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है। गृहस्थों को पूर्वोक्त द्वादशाक्षर मंत्र से दूसरे दिन प्रात:हवन करके व्रत का पारण करना चाहिए। जिन भी लोगो को संतान न हो, वंश वृद्धि न हो, पितृ दोष से पीड़ित हो, जन्मकुंडली में कई सारे दुर्गुण, दुर्योग हो, शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाले को एक सुयोग्य,संस्कारी,दिव्य संतान की प्राप्ति होती है, कुंडली के सारे दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाते है और उनके पितरो को नारायण स्वयं अपने हाथो से जल दे के मुक्तिधाम प्रदान करते है | 

व्रत महात्म्य : स्कन्द पुराण 

स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें। भविष्य पुराण का वचन है- श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास करना कहा गया है।

जप के मंत्र 

जिन परिवारों में कलह-क्लेश के कारण अशांति का वातावरण हो, वहां घर के लोग जन्माष्टमी का व्रत करने के साथ निम्न किसी भी मंत्र का अधिकाधिक जप करें-

"ॐ नमो नारायणाय"

अथवा 

" सिद्धार्थ: सिद्ध संकल्प: सिद्धिद सिद्धि: साधन:"

अथवा

"ॐ नमों भगवते वासुदेवाय"

या

"श्री कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।प्रणत: क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नम:"॥

या 

"श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवाय" ||

इन मंत्रो में से किसी का भी का जाप करते हुए सच्चिदानंदघन श्रीकृष्ण की आराधना करें। इससे परिवार में व कुटुंब में व्याप्त तनाव, समस्त प्रकार की समस्या, विषाद, विवाद और विघटन दूर होगा खुशियां घर में वापस लौट आएंगी।

गौतमी तंत्र में यह निर्देश है- 

प्रकर्तव्योन भोक्तव्यं कदाचन।
कृष्ण जन्मदिने यस्तु भुड्क्ते सतुनराधम:।
निवसेन्नर केघोरे यावदाभूत सम्प्लवम्॥

अर्थात- अमीर-गरीब सभी लोग यथाशक्ति-यथासंभव उपचारों से योगेश्वर कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करें। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है, वह निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक में रहना पडता है। 

दो प्रकार की अष्टमी 

अष्टमी दो प्रकार की होती है। पहली जन्माष्टमी और दूसरी जयंती। इसमें केवल पहली अष्टमी है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो 'जयंती' नाम से संबोधित की जाएगी। वह्निपुराण का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाएगा। अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए। विष्णुरहस्यादि वचन से- कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद मास में हो तो वह जयंती नाम वाली ही कही जाएगी। वसिष्ठ संहिता का मत है- यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में असम्पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में उपवास करना चाहिए। मदन रत्न में स्कन्द पुराण का वचन है कि जो उत्तम पुरुष है वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक में करते हैं। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। विष्णु धर्म के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। भृगु ने कहा है- जन्माष्टमी, रोहिणी और शिवरात्रि ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए तथा तिथि एवं नक्षत्र के अन्त में पारणा करें। इसमें केवल रोहिणी उपवास भी सिद्ध है।

स्मार्त मत: - अष्टमी तिथि मध्यरात्रि में होने से उत्सव मनाया जाता है। 

वैष्णव मत: - उदयकालीन तिथि अष्टमी होने पर जन्माष्टमी मनाई जाती है। शहर में ज्यादातर वैष्णव मतावलंबी हैं। 

दो दिनों का व्रत 

अतः अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के अन्त समय के आधार पर कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत दो सम्पूर्ण दिनों तक प्रचलित हो सकता है। हिन्दु ग्रन्थ धर्मसिन्धु के अनुसार, जो श्रद्धालु-जन लगातार दो दिनों तक व्रत करने में समर्थ नहीं है, वो जन्माष्टमी के अगले दिन ही सूर्योदय के पश्चात व्रत को तोड़ सकते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत 

कृष्ण जन्माष्टमी को कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयन्ती और श्री जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है। भक्त लोग, जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, जन्माष्टमी के एक दिन पूर्व केवल एक ही समय भोजन करते हैं। व्रत वाले दिन, स्नान आदि से निवृत्त होने के पश्चात, भक्त लोग पूरे दिन उपवास रखकर, अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के समाप्त होने के पश्चात व्रत कर पारण का संकल्प लेते हैं। कुछ कृष्ण-भक्त मात्र रोहिणी नक्षत्र अथवा मात्र अष्टमी तिथि के पश्चात व्रत का पारण कर लेते हैं। संकल्प प्रातःकाल के समय लिया जाता है और संकल्प के साथ ही अहोरात्र का व्रत प्रारम्भ हो जाता है।

निशीथ समय पर पूजा 

जन्माष्टमी के दिन, श्री कृष्ण पूजा निशीथ समय पर की जाती है। वैदिक समय गणना के अनुसार निशीथ मध्यरात्रि का समय होता है। निशीथ समय पर भक्त लोग श्री बालकृष्ण की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। विस्तृत विधि-विधान पूजा में षोडशोपचार पूजा के सभी सोलह (१६) चरण सम्मिलित होते हैं। 

व्रत के नियम

एकादशी उपवास के दौरान पालन किये जाने वाले सभी नियम जन्माष्टमी उपवास के दौरान भी पालन किये जाने चाहिये। अतः जन्माष्टमी के व्रत के दौरान किसी भी प्रकार के अन्न का ग्रहण नहीं करना चाहिये। जन्माष्टमी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद एक निश्चित समय पर तोड़ा जाता है जिसे जन्माष्टमी के पारण समय से जाना जाता है।

व्रत-पूजन का विधान 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सनातन-धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना गया है। साधारणतया इस व्रतके विषय में दो मत हैं । स्मार्त लोग अर्धरात्रि स्पर्श होनेपर या रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी सहित अष्टमी में भी उपवास करते हैं , किन्तु वैष्णव लोग सप्तमी का किन्चिन मात्र स्पर्श होनेपर द्वितीय दिवस ही उपवास करते हैं । वैष्णवों में उदयाव्यपिनी अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र को ही मान्यता एवं प्रधानता दी जाती हैं | उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएँ। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें। इसके बाद जल, फल, कुश, द्रव्य दक्षिणा और गंध लेकर संकल्प करें-

ॐविष्णुíवष्णुíवष्णु:अद्य शर्वरी नाम संवत्सरे सूर्ये दक्षिणायने वर्षतरै भाद्रपद मासे कृष्णपक्षे श्रीकृष्ण जन्माष्टम्यां तिथौ भौम वासरे अमुकनामाहं(अमुक की जगह अपना नाम बोलें) मम चतुर्वर्ग सिद्धि द्वारा श्रीकृष्ण देवप्रीतये जन्माष्टमी व्रताङ्गत्वेन श्रीकृष्ण देवस्य यथामिलितोपचारै:पूजनं करिष्ये।

यदि उक्त मंत्र का प्रयोग व उच्चारण कठिन प्रतीत हो तो निम्न मंत्र का प्रयोग भी कर सकते है 

ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धयेश्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥ 

स्तुति:- 

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम ।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम ।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुरलितम, कंठे च मुक्तावलि ।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी ॥

यदि संभव हो तो मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें।

तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मी जी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए। अर्धरात्रि के समय शंख तथा घंटों के निनाद से श्रीकृष्ण जन्मोत्सव सम्पादित करे तदोपरांत श्रीविग्रह का षोडशोपचार विधि से पूजन करे |

निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें-

'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तु ते।' 

उसके पश्चात सभी परिजनों में प्रसाद वितरण कर सपरिवार अन्न भोजन ग्रहण करे और यदि संभव हो तो रात्रि जागरण करना विशेष लाभ प्रद सिद्ध होता है जो किसी भी जीव की सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ति करता है |इसके आलावा कृष्ण जन्म के समय "राम चरित मानस" के "बालकांड" में "रामजन्म प्रसंग" का पाठ आथवा "विष्णु सहस्त्रनाम" , "पुरुष सूक्त" का पाठ भी सर्वस्य सिद्धि व सभी मनोरथ पूर्ण करने वाला है। 

सूर्योदय के पश्चात अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के बाद ही पारण 

जन्माष्टमी का पारण सूर्योदय के पश्चात अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के बाद किया जाना चाहिये। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होते तो पारण किसी एक के समाप्त होने के पश्चात किया जा सकता है। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से कोई भी सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होता तब जन्माष्टमी का व्रत दिन के समय नहीं तोड़ा जा सकता। ऐसी स्थिति में व्रती को किसी एक के समाप्त होने के बाद ही व्रत तोड़ना चाहिये।

श्रीकृष्ण के प्रभावी मंत्र 

भगवन श्रीकृष्ण के अनेक मन्त्र ऐसे हैं जिनके द्वारा वैभव-समृद्धि प्राप्त की जा सकती हैं। इन मंत्रों के जाप से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। शुभ प्रभाव बढ़ाने व सुख प्रदान करने में ये मंत्र अत्यन्त प्रभावी माने जाते हैं। आपकी सुविधा के लिए हमने मंत्र से संबंधित जानकारी भी यहां दी है।

मूलमंत्र :‘कृं कृष्णाय नमः’

यह श्रीकृष्ण का मूलमंत्र है। इस मूलमंत्र का जाप अपना सुख चाहने वाले प्रत्येक मनुष्य को प्रातःकाल नित्यक्रिया व स्नानादि के पश्चात एक सौ आठ बार करना चाहिए। ऐसा करने वाले मनुष्य सभी बाधाओं एवं कष्टों से सदैव मुक्त रहते हैं।

सप्तदशाक्षर श्रीकृष्णमहामंत्र :

‘ऊ श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा’

यह श्रीकृष्ण का सप्तदशाक्षर महामंत्र है। इस मंत्र का पांच लाख जाप करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। जप के समय हवन का दशांश अभिषेक का दशांश तर्पण तथा तर्पण का दशांश मार्जन करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है। जिस व्यक्ति को यह मंत्र सिद्ध हो जाता है उसे सबकुछ प्राप्त हो जाता है।

सात अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :

‘गोवल्लभाय स्वाहा’

इस सात (7) अक्षरों वाले श्रीकृष्ण मंत्र का जाप जो भी साधक करता है उसे संपूर्ण सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

आठ अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :

‘गोकुल नाथाय नमः’

इस आठ (8) अक्षरों वाले श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक जाप करता है उसकी सभी इच्छाएं व अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं।

दशाक्षर श्रीकृष्ण मंत्र :

‘क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलांगाय नमः’

यह दशाक्षर (10) मंत्र श्रीकृष्ण का है। इसका जो भी साधक जाप करता है उसे संपूर्ण सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

द्वादशाक्षर श्रीकृष्ण मंत्र :

‘ॐ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय’

इस कृष्ण द्वादशाक्षर (12) मंत्र का जो भी साधक जाप करता है, उसे सबकुछ प्राप्त हो जाता है।

बाईस अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :

‘ऐं क्लीं कृष्णाय ह्रीं गोविंदाय श्रीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा ह्‌सों।’

यह बाईस (22) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण का मंत्र है। जो भी साधक इस मंत्र का जाप करता है उसे वागीशत्व की प्राप्ति होती है।

तेईस अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :

‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री’

यह तेईस (23) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण का मंत्र है। जो भी साधक इस मंत्र का जाप करता है उसकी सभी बाधाएं स्वतः समाप्त हो जाती हैं।

अट्ठाईस अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :

‘ॐ नमो भगवते नन्दपुत्राय आनन्दवपुषे गोपीजनवल्लभाय स्वाहा’

यह अट्ठाईस (28) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र है। जो भी साधक इस मंत्र का जाप करता है उसको समस्त अभिष्ट वस्तुएं प्राप्त होती हैं।

उन्तीस अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :

‘लीलादंड गोपीजनसंसक्तदोर्दण्ड बालरूप मेघश्याम भगवन विष्णो स्वाहा।’

यह उन्तीस (29) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र है। इस श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक एक लाख जप और घी, शकर तथा शहद में तिल व अक्षत को मिलाकर होम करते हैं, उन्हें स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

बत्तीस अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :

‘नन्दपुत्राय श्यामलांगाय बालवपुषे कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।’

यह बत्तीस (32) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र है। इस श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक एक लाख बार जाप करता है तथा पायस, दुग्ध व शक्कर से निर्मित खीर द्वारा दशांश हवन करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

तैंतीस अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र :

‘ॐ कृष्ण कृष्ण महाकृष्ण सर्वज्ञ त्वं प्रसीद मे। रमारमण विद्येश विद्यामाशु प्रयच्छ मे॥’

यह तैंतीस (33) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र है। इस श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक जाप करता है उसे समस्त प्रकार की विद्याएं निःसंदेह प्राप्त होती हैं।

इन मंत्रो का भी करें पाठ 

जन्माष्टमी के दिन "संतान गोपाल मंत्र", के जाप व "हरिवंश पुराण", "गीता" के पाठ का भी बड़ा ही महत्व्य है |यह तिथि तंत्र साधको के लिए भी बहु प्रतीक्षित होती है, इस तिथि में "सम्मोहन" के प्रयोग सबसे ज्यादा सिद्ध किये जाते है | यदि कोई सगा सम्बन्धी रूठ जाये, नाराज़ हो जाये, सम्बन्ध विच्छेद हो जाये,घर से भाग जाये, खो जाये तो इस दिन उन्हें वापिस बुलाने का प्रयोग अथवा बिगड़े संबंधो को मधुर करने का प्रयोग भी खूब किया जाता है | 

- श्री कृष्ण शरणं मम -

श्री कृष्ण जन्माष्टमी 
2 सितंबर 2018
कृष्ण जन्माष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त
जन्माष्टमी के दिन निशिता पूजा का समय = 23:57 से 24:43+ तक।
जन्माष्टमी में मध्यरात्रि का क्षण = 24:20+
3 सितंबर को, पारण का समय = 20:05 के बाद
पारण के दिन अष्टमी तिथि के समाप्त होने का समय = 19:19
पारण के दिन रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने का समय = 20:05
वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी
वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी, 3 सितंबर 2018
वैष्णव जन्माष्टमी के लिये अगले दिन का पारण समय = 06:04 (सूर्योदय के बाद)
पारण के दिन अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएंगे।
संजय तिवारी
संस्थापक - भारत संस्कृति न्यास (नयी दिल्ली)
वरिष्ठ पत्रकार 

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