दृष्टि पथ विहीन राष्ट्र की मृत्यु निश्चित – पूर्व राष्ट्रपति श्री ए पी जे अब्दुल कलाम



बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जिनका जाना आपको सच में अखरता है, ऐसा लगता है कि कहीं कोई अपना ही चला गया। ऐसे लोग हमेशा आपके जेहन में ज़िंदा रहते हैं । मिसाइलमैन के नाम से जाने गए भारत के ग्याहरवें राष्ट्रपति रहे भारत रत्न ए पी जे अब्दुल कलाम इन्हीं कुछ विरले लोगों में से एक थे | कलाम साहब एक उदाहरण हैं कि कैसे कोई व्यक्ति अपने शुभ कार्यों से जन जन के दिलों तक पहुँच सकता है, सब बंधनों बाधाओं को तोड़कर। 

इस देश का मुसलमान सिर्फ और सिर्फ अगर ये समझ ले कि क्यों अपने को कट्टर हिंदूवादी कहने वाले लोग भी कलाम साहब के निधन से मर्माहत हुए, सिसके, रोये और आज तक उनकी यादों को दिल से लगाए बैठे है, तो यक़ीन जानिये कि इस देश से हिन्दू-मुस्लिम समस्या ख़त्म हो जाएगी। 

क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि उस युवक के मन पर क्या बीती होगी, जो वायुसेना में विमान चालक बनने की न जाने कितनी सुखद आशाएं लेकर देहरादून गया था; पर परिणामों की सूची में उसका नाम नवें क्रमांक पर था, जबकि चयन केवल आठ का ही होना था। कल्पना करने से पूर्व हिसाब किताब में यह भी जोड़ लें कि मछुआरे परिवार के उस युवक ने नौका चलाकर और समाचारपत्र बांटकर जैसे-तैसे अपनी शिक्षा पूरी की थी।

देहरादून आते समय केवल अपनी ही नहीं, अपने माता-पिता और बड़े भाई की आकांक्षाओं का मानसिक बोझ भी उस पर था, जिन्होंने अपनी अनेक आवश्यकताएं ताक पर रखकर उसे पढ़ाया था। पर उसके सपने धूल में मिल गये। निराशा के इन क्षणों में वह जा पहुंचा ऋषिकेश, जहां जगतकल्याणी मां गंगा की पवित्रता, पूज्य स्वामी शिवानन्द के सान्निध्य और श्रीमद्भगवद्गीता के सन्देश ने उसे नए सिरे से कर्मपथ पर अग्रसर किया। उस समय किसे मालूम था कि नियति ने उसके साथ मजाक नहीं किया, अपितु उसके भाग्योदय के द्वार स्वयं अपने हाथों से खोल दिये हैं।

15 अक्तूबर, 1931 को धनुष्कोटि (रामेश्वरम्, तमिलनाडु) में जन्मा अबुल पाकिर जैनुल आबदीन अब्दुल कलाम नामक वह युवक भविष्य में ‘मिसाइल मैन’ के नाम से प्रख्यात हुआ। उनकी उपलब्धियों को देखकर अनेक विकसित और सम्पन्न देशों ने उन्हें मनचाहे वेतन पर अपने यहां बुलाना चाहा, पर उन्होंने देश में रहकर ही काम करने का व्रत लिया था। चार दशक तक उन्होंने ‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन’ तथा ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ में विभिन्न पदों पर काम किया। यही डॉ. कलाम 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति बने और अपनी सादगी के कारण ‘जनता के राष्ट्रपति’ कहलाए।

डॉ. कलाम की सबसे बड़ी विशेषता थी कि वे राष्ट्रपति बनने के बाद भी आडम्बरों से दूर रहे। वे जहां भी जाते, वहां छात्रों से अवश्य मिलते थे। वे उन्हें कुछ निरक्षरों को पढ़ाने तथा देशभक्त नागरिक बनने की शपथ दिलाते थे। उनकी आंखों में अपने घर, परिवार, जाति या प्रान्त की नहीं, अपितु सम्पूर्ण देश की उन्नति का सपना पलता था। वे 2020 ई. तक भारत को दुनिया के अग्रणी देशों की सूची में स्थान दिलाना चाहते थे। साहसी डॉ. कलाम ने युद्धक विमानों से लेकर खतरनाक पनडुब्बी तक में सैनिकों के साथ यात्रा की।

मुसलमान होते हुए भी वे सब धर्मों का आदर करते थे। वे अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर गये, तो श्रवण बेलगोला में भगवान बाहुबलि के महामस्तकाभिषेक समारोह में भी शामिल हुए। उनकी आस्था कुरान के साथ गीता पर भी थी तथा वे प्रतिदिन उसका पाठ करते थे। उनके राष्ट्रपति काल में जब भी उनके परिजन दिल्ली आये, तब उनके भोजन, आवास, भ्रमण आदि का व्यय उन्होंने अपनी जेब से किया। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में होने वाली ‘इफ्तार पार्टी’ को बंदकर उस पैसे से भोजन सामग्री अनाथालयों में भिजवाई। उनके नेतृत्व में भारत ने पृथ्वी, अग्नि, आकाश जैसे प्रक्षेपास्त्रों का सफल परीक्षण किया, जिससे सेना की मारक क्षमता बढ़ी। भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बनाने का श्रेय भी डॉ. कलाम को ही है। शासन ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।

आजीवन अविवाहित रहे डॉ. कलाम अत्यधिक परिश्रमी और अनुशासन प्रेमी थे। वे कुछ वर्ष रक्षामंत्री के सुरक्षा सलाहकार भी रहे। राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद भी वे विश्वविद्यालयों में जाकर छात्रों से बात करते रहते थे। वे चाहते थे कि लोग उन्हें एक अध्यापक के रूप में याद रखें। 27 जुलाई, 2015 को शिलांग में छात्रों के बीच बोलते समय अचानक हुए भीषण हृदयाघात से उनका निधन हुआ। 30 जुलाई को उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ रामेश्वर में ही दफनाया गया। उन्नत भारत के स्वप्नद्रष्टा, ऋषि वैज्ञानिक डॉ. कलाम द्वारा लिखित पुस्तकें युवकों को सदा प्रेरणा देती रहेंगी।

विश्व पटल पर भारत को एक पहचान दिलाने और इसे विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होते देखने की कलाम साहब की अभिलाषा उनके प्रत्येक कृत्य, प्रत्येक वाक्य से परिलक्षित होती थी। श्री ए पी जे अब्दुल कलाम ने अनेकों पुस्तकें लिखी हैं | उनमें से एक My Journey: Transforming Dreams into Action और दूसरी “हमारी प्रजातांत्रिक प्रणाली हमारी जिम्मेदारी क्यों है”, पूर्णतः देश के युवाओं को लक्ष्य कर लिखी गई है | उन्हीं पुस्तकों के सन्दर्भ में उनके दिए गए एक इंटरव्यू के कुछ अंश –

प्रश्न - आज बड़प्पन अधिकांशतः भौतिक संपत्ति से नापा जाता है | और प्रकारांतर से यह समाज में असंतोष पैदा करता है | क्या आपको लगता है कि इस भौतिकवाद को दूर करना आज समय की मांग है ?
उत्तर - मेरा हाई स्कूल तक का अध्ययन ब्रिटिश भारत में हुआ | 1947 में हमने स्वतंत्रता प्राप्त की और भारतीयों के भारत में रहना शुरू किया | मैंने समाज में हो रहे विभिन्न परिवर्तनों को देखा है, यह चाहे अर्थव्यवस्था हो या हमारा वेल्यू सिस्टम | यद्यपि हमारी अर्थव्यवस्था विकसित हो रही है , किन्तु हमें नैतिक और मूल्य परक नागरिकों की आवश्यकता है | पिछले 10 वर्षों से मैं एक विचार को बढ़ावा दे रहा हूँ, वह है “प्रबुद्ध नागरिकों का विकास” | इसके तीन आयाम हैं|

पहला है मूल्य आधारित शिक्षा प्रणाली | यह या तो परिवार से संभव है अथवा प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक द्वारा | मेरा अंतिम निष्कर्ष है कि प्रबुद्ध नागरिकों का विकास न केवल भारत के लिए वरन सम्पूर्ण विश्व के लिए आवश्यक है |

दूसरा आयाम है आर्थिक समृद्धि और तीसरा धर्म द्वारा हमारा आध्यात्मिक शक्ति में रूपांतरण | मैं इन तीन आयामों का पक्षधर हूँ | ( www.abdulkalam.com ) 

मैंने हमारी संसद में व्याख्यान दिया, 23 राष्ट्रों की यूरोपीय संसद तथा 53 देशों की पैन अफ्रीकी संसद और कोरियाई संसद को भी संबोधित किया है | मैं यह नहीं कहता कि भारतीय मूल्य परंपरा अन्य देश भी स्वीकार लें | उनकी अपनी मूल्य प्रणाली के आधार पर विकसित महान नेता और परंपरायें हैं | मैं समझता हूँ कि जीवन मूल्य, संयुक्त परिवार प्रणाली , आर्थिक विकास और धर्म का एक आध्यात्मिक शक्ति में रूपांतरण सभी के लिए महत्वपूर्ण है | यही कारण है कि इस विचार को मैंने विभिन्न इंटरैक्टिव मंचों पर साझा किया है |

प्रश्न – आपका काम युवाओं की विचार पद्धति को बदलने व श्रेष्ठता प्रदान करने में प्रेरणादायक है | आज जब हम भूख , बीमारी , बिगड़ते पर्यावरण और जीर्णशीर्ण रहन सहन आदि समस्याओं का सामना कर रहे है, आपको क्या लगता है “देश की दशा कब तक सुधरेगी, कभी सुधरेगी भी या नहीं” ?

उत्तर – विचार कृति का बीज है | विचार जैसा कि पुरातन सुकरात का था | 2200 साल पहले तिरुवल्लुवर ने भी कहा था – और इसी कारण मैंने भी संसद में प्रस्तावित किया था कि हमें “भारत विजन 2020” की आवश्यकता है | 2020 तक भारत को आर्थिक रूप से विकसित हो जाना चाहिए | अब भी बहुत देर नहीं हुई है | संसद को विचार करना चाहिए कि कैसे समृद्धि के उद्देश्य से इस राष्ट्र दृष्टि को विकसित किया जा सकता है | हमारी प्राथमिकता होना चाहिए 'ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाएं उपलब्ध कराना ' | हमारे किसान 250 लाख टन खाद्य सामग्री का उत्पादन कर रहे हैं | लेकिन हम मूल्य संवर्धन नहीं करते, जिसका अर्थ है अधिक निर्यात की संभावना | हम फलों और सब्जियों के अग्रणी उत्पादक हैं, किन्तु हम इनका जूस या डिब्बाबंद खाद्य के रूप में प्रोसेस नहीं करते | और तीसरा, स्पष्ट ही लघु उद्योग जो देश भर में फैले हुए हैं |

प्रश्न - आप पुरा परियोजनाओं के साथ संपर्क में हैं , जो इन परिणामों को दिखा रहे हैं ?

उत्तर - मैंने मध्यप्रदेश में देखा है , चित्रकूट प्रकल्प नानाजी देशमुख द्वारा स्थापित किया गया है | वह एक अग्रणी प्रकल्प है जो बहुत अच्छी तरह से काम कर रहा है, 500 से अधिक गांव उससे जुड़े हुए हैं , और समृद्ध है | मैंने महाराष्ट्र में वारना प्रकल्प को देखा | वह सहकारी आंदोलन को बहुत अच्छी तरह से गति दे रहा है और गरीबी उन्मूलन कर रहा है और तीसरा मैंने वल्लम , तंजावुर तमिलनाडु में देखा है |

मैं इन तीनों के साथ संपर्क में हूँ , और अक्सर वहां की यात्रा करता हूँ | इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने सार्वजनिक निजी भागीदारी के साथ कुछ प्रकल्प शुरू किये हैं | प्रकल्पों की संख्या बढ़ती जा रही है | किन्तु यह अधिक तेजी से होना चाहिए | कुल मिलाकर लगभग 600,000 (छःलाख) गांव हैं, तो हमें अगले 10-15 साल के समय में कमसेकम 7000 प्रकल्प स्थापित करना है | जबकि अभी इनकी संख्या 100 से भी कम है |

प्रश्न – यदि माता पिता भ्रष्टाचार में लिप्त है तो उन्हें भी समझाने के लिए युवाओं प्रेरित करने वाली युवा वाहिनी की क्या संभावना है ? और “हम क्या दे सकते है” मिशन की क्या स्थिति है ? 

उत्तर - मिशन ' मैं क्या दे सकता हूँ ' कई स्कूलों और कॉलेजों में शुरू हुआ है | यह एक संरचित कार्यक्रम नहीं है , हम एक सा करना भी नहीं चाहते , इससे यह विचार विकसित नहीं होगा | यह प्रत्येक संस्था की जिम्मेदारी है कि वह अपने यहाँ ऐसा कोई कार्यक्रम शुरू करें और सुधार को बढ़ावा दें | तभी हम खुशहाल घर की कल्पना साकार कर पायेंगे | खुशहाल घर के चार लक्षण हैं | पहला आध्यात्मिकता , दूसरा मां की खुशी, तीसरा पारदर्शिता , और चौथा एक हराभरा और स्वच्छ वातावरण | युवा शपथ लेते हैं कि वे भ्रष्टाचार से मुक्त घर में रहते हैं |

प्रश्न - आपका लेखन महान संतोष को दर्शाता है , यह आपको क्रियाशील रहने से कभी नहीं रोकता ?

उत्तर – ईश्वर केवल उन्हीकी मदद करता है जो कठिन परिश्रम करते हैं | संतोष जैसा कुछ भी नहीं है | सफलता ही अंतिम लक्ष्य नहीं होता |

अपनी समस्याओं को यह अनुमति नही देना चाहिए कि वे तुम्हें डूबा ही दें | मुझे लगता है मैं एक महीने में 80,000 से 1,00,000 युवाओं से मिलता हूँ, इसलिए स्वयं को संतुष्ट नहीं कह सकता | मैं उनके सपनों और उनके दर्द को जानता हूँ | वह राष्ट्र मर जाता है जिसका कोई दृष्टि पथ नहीं होता | संसद को चाहिए कि वह दृष्टि पथ दे |
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