गुना शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में कमल खिलाने का अचूक फॉर्मूला - हरिहर शर्मा

वर्षों से हर भाजपा समर्थक का सपना है कि गुना शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में भी कमल खिले ! लेकिन हर चुनाव में कार्यकर्ताओं का यह स्वप्न, दिवास्वप्न बनकर रह जाता है ! मैं कारणों की चर्चा नहीं करूंगा, क्योंकि उससे किसी न किसी की आलोचना ध्वनित होगी, अतः केवल कुछ बिन्दुओं पर भाजपा के प्रदेश नेतृत्व का ध्यान आकृष्ट करने की चेष्टा कर रहा हूँ !

1952 से ही यहाँ हिंदुत्वनिष्ठ विचार का प्रभाव रहा | पहली बार 1962 में जनसंघ प्रत्यासी श्री प्रसन्न कुमार जी रावत व हिन्दू महासभा के स्व. बृजनारायण बृजेश के बीच वोट बंट जाने के कारण कांग्रेस के वैदेही चरण पाराशर को सफलता मिली ! 67 में तो बड़ा विचित्र मामला हुआ व राजमाता साहब के समर्थन से वे आचार्य कृपलानी जीत गए, जिन्होंने संसद में स्वयं स्वीकार किया कि उन्हें नहीं मालूम कि वे किस सीट से विजयी हुए हैं |

71 में जनसंघ टिकिट पर स्व. माधव राव जी जीते और बाद में 77 में निर्दलीय तो 80 में कांग्रेस टिकिट पर भी वे ही सफल रहे | किन्तु यह जीत कांग्रेस की नहीं, सिंधिया राजपरिवार की थी | जो तबसे आज तक लगातार जारी है |

1989 से 1999 तक भाजपा टिकिट पर राजमाता साहब व फिर 99 से आज तक पहले स्व.माधव राव जी व उनके बाद उनके सुपुत्र श्री ज्योतिरादित्य जी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे |

राजमाता साहब से सबसे कम अंतर अर्थात पचपन हजार वावन मतों से 1991 में स्व. शशिभूषण वाजपेई पराजित हुए ! इसी प्रकार वर्तमान सांसद श्री ज्योतिरादित्य जी सिंधिया को सबसे कड़ी टक्कर श्री हरिवल्लभ शुक्ला ने दी | उक्त दोनों अवसरों को छोड़कर सिंधिया परिवार हमेशा लाखों मतों से ही विजई हुआ | इतिहास बताने के पीछे मेरा उद्देश्य इतना भर है कि प्रत्यासी चयन के समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि सिंधिया राजपरिवार को सबसे कड़ी चुनौती किसने दी ?

इस बार का चुनाव नरेंद्र मोदी विरुद्ध राहुल गांधी है, और ज्योतिरादित्य जी एक प्रकार से राहुल जी की छाया बनकर उभरे हैं | अतः यह चुनाव भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए विशेष महत्व का है | नेतृत्व यदि स्थानीय सक्षम उम्मीदवार को सामने लाये तो ज्योतिरादित्य जी को भी कठिनाई हो सकती है |
राज परिवार के ग्लेमर को स्थानीय जन सहानुभूति ही पराजित कर सकती है | कोई बड़ा नामदार नहीं, आमजन के सदैव सुख दुःख में साथ रहने वाला स्थानीय कामदार ही उन्हें आईना दिखा सकता है |

ज्योतिरादित्य जी आज दिल्ली में रणनीति बनाने जा रहे हैं, अपने संसदीय क्षेत्र के सभी प्रभारियों को बुलाया है | तो उन्हें पराजित करने की उत्कट अभिलाषा रखने वाला एक सामान्य भाजपा शुभचिंतक कैसे चुप बैठ सकता है ? यह चुनाव है परिवार त्यागी मोदी विरुद्ध घोषित अर्थ लोलुप गांधी परिवार ! राहुल के सर्वाधिक समर्थक ज्योतिरादित्य -

अतः मोदी विरुद्ध ज्योतिरादित्य !

माना जाता है कि गुना संसदीय क्षेत्र से अगर भाजपा स्थानीय प्रत्यासी को लड़ाये तो सिंधिया जी का जीत का अंतर घट सकता है, किन्तु फिर भी जीतेंगे सिंधिया जी ही | यह एक अभिमत नहीं है, उनकी जीत का एक प्रमुख कारण भी यह आम धारणा ही है | मैं इसके प्रति उत्तर में कुछ बिंदु ध्यान में लाना चाहता हूँ -

कोई भी व्यक्ति अजेय नहीं होता | समय सबसे बलवान होता है | अर्जुन भी पराजित हुए, तो कृष्ण भी रण छोड़ कर भागने को विवश हुए ! कौन मानता था कि राज नारायण जैसे विदूषक के सामने "आयरन लेडी" श्रीमती इंदिरा गांधी चुनाव हार सकती हैं ? मैं फिर कहता हूँ कि पराजित मानसिकता से चुनाव नहीं जीते जाते | यदि संकल्प लेकर भाजपा कार्यकर्ता ठान लें, तो मुद्दों पर आधारित इस बार का चुनाव जीता जा सकता है |

अब दूसरी बात -

आखिर ज्योतिरादित्य जी में पूर्वजों की पुण्याई के अलावा ऐसा क्या ख़ास है जो उन्हें अजेय माना जाए ? उनकी योग्यता का सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि वे पिछलग्गू एक ऐसे व्यक्ति के हैं, जिनकी विद्वत्ता और बौद्धिक क्षमता के किस्से कहानियों और व्यंग चित्रों से समूचा सोशल मीडिया भरा पड़ा है और स्वयं ज्योतिरादित्य जी ने संसद में फरमाया कि कश्मीर में रायशुमारी होनी चाहिए | इस पर जब ज्यादा बबाल मचा तो लिखित खेद प्रगट किया कि मैं रायशुमारी शब्द का अर्थ नहीं जानता था, अतः भूल हो गई | तो उनकी योग्यता भी सबके सामने आ गई !बस जरूरत है इन बिन्दुओं की चर्चा के द्वारा इन्हें अजेय समझने की मानसिकता से छुटकारा पाने की |

एक दूसरे मित्र का ध्यान भी भाजपा के नेतृत्व के ही समान प्रत्यासी के रूप में केवल कांग्रेस की झूठन पर ही गया | वे यह भूल जाते हैं कि कालेज टाईम में श्री हरिवल्लभ शुक्ला छात्र संघ के महासचिव थे, तो अध्यक्ष श्री गोपाल कृष्ण डंडोतिया थे | यह संयोग है कि हरिवल्लभ जी को अवसर मिलते गए और वे सफलता की सीढियां चढ़ गए | वे कभी महल विरोधी तो कभी महल समर्थक भूमिका में दिखाई देते रहे | जबकि तत्वनिष्ठ गोपाल जी ने समझौते की डगर पर कभी पाँव भी नहीं रखा |

सत्तर के दशक को छोड़ भी दें तो नई पीढी में भी भाजपा के पास शिवपुरी गुना में कई सुयोग्य प्रत्यासी मिल जायेंगे | जरूरत है उन्हें अवसर देने की यही अपेक्षा नेतृत्व से है | हालांकि जानता हूँ कि मेरी यह आवाज सुनी जाना तो दूर, शायद उन तक पहुँच भी न पाए | फिर भी विचार का यह बीज तो मित्रों के दिलोदिमाग तक पहुँच ही गया है | शायद उनमें से कोई इसे खाद पानी देकर पल्लवित कर दे ?

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