नई राजनीति के लिए नए राजनैतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता - श्री विनय सहस्त्रबुद्धे

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मुख्यधारा की मीडिया के दृष्टिपथ से इतर, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने संगठन में होने वाले औपचारिक सदस्यता अभियान को कुशलतापूर्वक पुनर्परिभाषित कर भाजपा के पुनर्निर्माण का एक शक्तिशाली उपकरण बना दिया है। और यह नीचे से ऊपर तक बेहतर ढंग से हो भी रहा है | भाजपा के लिए लोगों तक पहुँचने और उनकी सद्भावना अर्जित कर जनाधार बढ़ाने का इससे बेहतर समय हो ही नहीं सकता, क्योंकि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने वह वातावरण बना दिया है | मोदी जी ने सफलतापूर्वक हताशा और आलोचना की धारा का प्रवाह मोड़ने में सफलता पाई है । जिसके कारण लोकतांत्रिक शासन में हमें लोकप्रियता और जनविश्वास प्राप्त हुआ है।

अभी कुछ समय पहले तक बहुदलीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की केन्द्रीय भूमिका के कारण राजनीतिक पंडित लोकतंत्र को पार्टीतंत्र (democracy as “partycracy”) कहा करते थे । दुनियाभर के  राजनैतिक दल स्वयं को अपरिहार्य मानने लगे । वे जानते थे कि वे जन विश्वास खोते जा रहे हैं । लेकिन इसके बाबजूद उनका मानना था कि जनता के पास कोई विकल्प ही नहीं है, अतः वह विवश होकर हममें से ही किसी को चुनेगी | अतः यह मानकर दलों ने अपने संगठनात्मक सुधार पर ध्यान नहीं दिया।

अपना घर सुधारने की बहुत थोड़ी कबायत हुई, विशेषकर भारत जैसे देश में जहाँ 1300 से अधिक पंजीकृत राजनीतिक दल हैं | जब चुनाव नजदीक नहीं होते, उनमें से कई शायद ही कभी अपनी उपस्थिति का अहसास करा पाते हों | अधिकांश दलों ने स्वयं को केवल चुनावी प्रतियोगिता तक ही सीमित कर लिया है । परिणाम स्वरुप उनके कभी कभी उठने वाले स्वर केवल न्यूसेंस वेल्यू भर माने जाते हैं । वंशवाद को बढ़ावा मिलने से उद्देश्य हीन राजनीति की प्रवृत्ति को बल मिला है तथा राजनीति केवल मशीनी बन कर रह गई है ।

वर्षों से ऐसा ही चलते रहने के कारण पार्टियों के अधः पतन का यही क्रम भी जारी है । कई लोगों के लिए राजनीति एक पूर्णकालिक व्यवसाय है तथा चुनाव जीतना एक तकनीक । धनबल, मसल पॉवर, जाति आधारित राजनीति, मनमाने और गैर-पारदर्शी ढंग से उम्मीदवारों का चयन, इन सब बातों ने मिलकर चुनाव जीतना एक तकनीक है, इस धारणा को बल दिया है | कई मामलों में तो चुनावी जीत पार्टी की लोकप्रियता की तुलना में इस तकनीक की महारत पर अधिक आश्रित होती है | नतीजतन मजबूत पार्टी संगठन निर्माण प्राथमिकता नहीं रहा, और पार्टियां अर्थशास्त्रियों की भाषा में "खाली बर्तन” बनकर रह गईं । सत्ता पाना और सत्ता पर बने रहना भर राजनीतिक दलों का केंद्रीय एजेंडा बन गया, जिसके चलते सिद्धांत हीन समझौते समय की मांग बन गए |

राजनैतिक विशारद जिसकी व्याख्या लोकतंत्र की तीसरी लहर के रूप में करते हैं, "विचारधारा का अंत" होने से राजनैतिक दलों में भिन्नता समाप्त हो गई, सब एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं यह जन धारणा बन गई | क्या यह आश्चर्य की बात नहीं कि वैचारिक रूप से प्रेरित पार्टी कार्यकर्ता एक लुप्त प्रजाति बन गये है, और सब पार्टियों में मौसमी मौकापरस्तों की बाढ़ आ गई है | संगठन के प्रति निष्ठा गौण और नेता के प्रति वफादारी मुख्य हो गई है । इन्हीं सब कारणों से दुनिया भर के लोकतंत्र में राजनीतिक दलों का संस्थागत अध: पतन दिखाई देता है, और भारत भी इसका अपवाद नहीं है।

भाजपा द्वारा बड़े पैमाने पर किये जा रहे सदस्यता अभियान का यही महत्व है, और उसे इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए |

इस अभियान में कई उल्लेखनीय बातें हैं, जैसे कि पहली बार यह सेलफोन के माध्यम से संचालित हो रहा है । प्रौद्योगिकी के समावेश से यह प्रक्रिया अत्यधिक लोकतांत्रिक और बेहद आसान हो गई है और ढूँढने में आसान हो गई है । भाजपा ने पार्टी का सदस्य बनने की प्रक्रिया स्पष्ट दर्शाई है, अब यह सदस्य बनाने वाले के विवेक पर निर्भर नहीं है । परिणाम स्वरुप पार्टी की सदस्यता आधुनिक युग के अनुकूल हो गई है | भाजपा ने इस अभियान के माध्यम से सशक्त भाजपा-सशक्त भारत (मजबूत भारत के लिए सशक्त भाजपा) का आह्वान किया है। इसके अलावा, अभियान का नारा है, “साथ आयें, देश बनाएं” जिसका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक दल में शामिल होने के कार्य को गौरव पूर्ण बनाना है, क्योंकि कुछ लोग इसमें असहज महसूस करते रहे हैं। भाजपा की महत्वाकांक्षी योजना है कि 31 मार्च तक करोड़ों देशवासियों को सदस्य बनाने के बाद देश भर में बड़े पैमाने पर क्षमता निर्माण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए ।
यद्यपि उभरती हुई जन आकांक्षाओं का उपयोग उत्पादक तरीके से करते हुए तथा उनकी भागीदारी से विकास तथा सामुदायिक गतिविधियों का संचालन किसी चुनौती से कम नहीं है, कितु भाजपा जैसी कार्यकर्ता आधारित पार्टी के लिए यह बहुत मुश्किल भी नहीं है । भाजपा का लक्ष्य अपने संगठनात्मक नवीकरण द्वारा पार्टी कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भरना है । यदि सब कुछ योजना के अनुरूप हुआ तो इसके द्वारा लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की संस्थागत प्रधानता बहाल होगी । यदि लोकतंत्र का उद्देश्य सुशासन देना है, तो उसके लिए संगठनात्मक रूप से सक्षम राजनीतिक दलों के रूप में स्मार्ट ड्राइवरों की आवश्यकता है | राजनीतिक दलों के बिना लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती । इसलिए, अधिक से अधिक संस्थागत रूप देकर उन्हें सशक्त बनाना ही एकमात्र समाधान है। और जाहिर है, वह कार्य नए सदस्यों की भर्ती, नए रक्त संचार, और नवीन विचारों को बढ़ावा देने से ही संभव है । स्पष्ट ही नई राजनीति के लिए नए राजनैतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

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