आपातकाल - एक संस्मरण




25 जून को इंदिरा जी ने आपातकाल लगाया | पूरे देश के समान शिवपुरी में भी संघ और जनसंघ के नेता व कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए | शिवपुरी महाविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष व विद्यार्थी परिषद् के प्रांतीय महामंत्री श्री गोपाल डंडोतिया जी के पिताजी तृतीय श्रेणी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष थे, अतः पूर्व सूचना मिल जाने के कारण गोपाल जी भूमिगत हो गए | एक माह तक वे पुलिस के हाथ नहीं आये | प्रशासन ने दबाब बनाया कि यदि वे हाजिर नहीं होंगे तो पिताजी श्री रामचरण लाल जी डंडोतिया को मीसा में बंद कर दिया जाएगा | नौकरी जायेगी सो अलग | विवश होकर तह किया गया कि गोपाल जी गिरफ्तारी दें | किन्तु गोपाल जी ने तय किया कि सीधे सादे ढंग से गिरफ्तारी नहीं देंगे, गिरफ्तार भी होंगे तो शान से, सम्मान से | सत्याग्रह करके गिरफ्तारी देने का तय किया |

लम्बे समय बाद गोपाल जी शिवपुरी आये तथा मीसावंदी परिवारों में मिलने जुलने पहुंचे | पुलिस को भनक लग गई कि वे शिवपुरी में आ चुके हैं | किसी ने सूचना दी कि वे हरिहर के घर महादेव मंदिर पर रुके हैं | तत्कालीन स्टेशन ऑफीसर श्री त्यागी ने एक कांस्टेबल को भेजकर मुझे बुलवाया | परिवार में सबको लगा कि आज हरिहर भी गया मीसा में | मैंने भी पिताजी माताजी के चरण स्पर्श किये और कांस्टेबल के साथ हो लिया | घर से कुछ दूर पर ही धर्मशाला के सामने त्यागी जी खड़े थे | उन्होंने पूछा क्यों गोपाल आया था क्या ? मैंने मुस्कुराकर कहा “क्यों परेशान हो रहे हो त्यागी जी, वे तो आये ही गिरफ्तारी के लिए हैं | बस उसके पहले सबसे मिलजुल रहे हैं |” त्यागी जी को मेरी बात पर पूरा भरोसा था | फिर भी सुनिश्चित करने के लिए दुबारा पूछा “सच में गिरफ्तारी देने ही आया है न ?” मेरे हाँ कहने पर वे निश्चिन्त होकर चले गए |

एक अन्य मित्र श्री दिनेश गौतम (अब स्वर्गीय) का भी वारंट था | जब उनके परिवार को पता चला कि गोपाल जी गिरफ्तारी दे रहे हैं, तो उन्होंने आग्रह किया कि दिनेश भी साथ में ही गिरफ्तारी दे दें | दूसरे दिन गोपाल जी और दिनेश जी मेरे घर से ही सर पर काला कपड़ा बाँध कर सत्याग्रह के लिए शहर की सडकों पर निकले | महादेव मंदिर के बगीचे में ही पूरे परिवार ने उन्हें विदाई दी | (उसी अवसर का चित्र)

25 जुलाई 1975 प्रातः दस बजे दोनों महादेव गली से सदर बाजार, माधव चौक, कमलागंज आदि में घूमते हुए नारे लगा रहे थे – इंदिरा तेरी तानाशाही नहीं चलेगी, ओ हिटलर की चाल चलेगा वो कुत्ते कि मौत मरेगा, नरक से नेहरू करे पुकार मत कर बेटी अत्याचार | उनके पीछे सेंकडों की संख्या में हुजूम हो गया | उस समय के माहौल में जब यह पता न हो कि गिरफ्तारी के बाद कब छूटेंगे, छूटेंगे भी या नहीं, इस प्रकार स्वयं को गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत करना, निश्चय ही बड़े जीवट का काम था | कई दूकानदार व नगरवासी उस समय आंसू पोंछते दिखाई दिए | ये लोग पूरे शहर में घूमते रहे, किन्तु कोई गिरफ्तार करने ही नहीं आया | कुछ तो उमड़ा हुआ अन सैलाब, और कुछ पुलिस की भी उनके प्रति आतंरिक सहानुभूति | अंततः बहुत देर बाद उन्हें गिरफ्तार करने पुलिस अधिकारी पहुंचे |

गिरफ्तारी के बाद इन लोगों को शिवपुरी जेल में रखा गया | तीन लोगों के लिए उपयुक्त कमरे में 18 मीसाबंदी ठूंसे गए | रात को सोते समय यदि किसी को करबट लेना हो तो बगल वाले को कहना पड़ता था कि भैया जरा तू भी करबट ले ले | कुछ बुजुर्ग मीसाबंदियों के आग्रह के कारण जेल की मेस में बने भोजन के स्थान पर स्वयं भोजन बनाकर करने का तय हुआ | मेनुअल के अनुसार जो भोजन सामग्री मिलती थी, वह कितनी अपर्याप्त होती थी, इसका एक रोचक उदाहरण है | सबके हिस्से में चार रोटी और दाल आती थी | एक मीसाबंदी की खुराक कुछ अधिक जानकर सर्व श्री मुन्नालाल गुप्ता, गोपाल डंडोतिया व अशोक पांडे ने अपने हिस्से की एक एक रोटी उनको देना तय किया | कुछ समय पश्चात जब उक्त मीसाबंदी से पूछा कि भैया अब तो पेट भर जाता होगा न ? तो उन्होंने रूहांसे स्वर में जबाब दिया, भाई साहब इनसे क्या होता है, मैं तो इतनी ही और खा सकता हूँ | स्मरणीय है कि उस समय गोपाल जी की आयु भी मात्र 24 वर्ष ही थी |

जेल में समय बिताने के लिए नियमित दिनचर्या बनाई गई | सुबह नित्यकर्म उपरांत व्यायाम स्वाध्याय, गीता पाठ फिर भोजन बनाने की सामूहिक तैयारी | दोपहर में कुछ बौद्धिक कार्यक्रम, चर्चा, प्रतियोगिता आदि | यही क्रम मार्च 1976 तक चला | तब तक कई लोग माफी मांगकर छूट छाट गए और शेष लोग ग्वालियर सेन्ट्रल जेल शिफ्ट कर दिए गए, जहां का जीवन अपेक्षाकृत बेहतर था | मैं भी 14 नवम्बर 75 से प्रारम्भ संघ प्रेरित सत्याग्रह आन्दोलन के संयोजक रूप में 6 जनवरी 76 को गिरफ्तार होकर पहले से ही ग्वालियर सेन्ट्रल जेल में उन लोगों की अगवानी के लिए उपस्थित था |

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