भारत बंगलादेश के बीच नए समीकरण – कितने उपयोगी कितने व्यर्थ ?


आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा को लेकर कुछ महत्वपूर्ण समाचार सामने आये हैं | पहला तो सर्वविदित और पूर्वनिर्धारित समाचार ही है कि आज से भारत और बंगलादेश का मानचित्र परिवर्तित हो गया | भारत की सीमा दस हजार कि.मी. कम तो बांगलादेश की उतनी ही बढ़ गई है | इसका महत्व इसलिए कम है, क्योंकि लगभग सर्वसम्मति से भारत की संसद ने इसे स्वीकार किया है | अतः इसमें मीनमेख निकालना संभवतः समय व्यर्थ करना ही है |

किन्तु दूसरा समाचार कुछ चोंकाने वाला है | 2010 में बांग्लादेश को भारत द्वारा दिए गए 1 अरब डॉलर के ऋण का उपयोग पूरी तरह हो पाता इसके पूर्व ही प्रधान मंत्री ने उसे 2 अरब डॉलर का नया ऋण देने की घोषणा कर दी | जानकार लोग मान रहे हैं कि इस उदारता के प्रदर्शन से मालदीव जैसे भारत के अन्य पडौसी देशों को यह सन्देश गया है कि भारत वस्तुतः अब इस उपमहाद्वीप में बड़े भाई की भूमिका में अवतरित हुआ है, जो छोटे भाईयों के दुःख दर्द में सहयोग करने को तत्पर है | इस उदारता के फलस्वरूप जो छोटे देश चीन के हस्तक बनने की दिशा में बढ़ते जा रहे थे, उस प्रवृत्ति पर ब्रेक लगने की संभावना है | 

हालांकि मोदी जी की इस दानवीरता के लिए विपक्ष और शिवसेना जैसे सहयोगियों द्वारा उनकी आलोचना भी की जा सकती है । लेकिन भारत की प्राथमिकता चीन जैसे अविश्वसनीय पडौसी के साथ शह और मात के खेल में जिस सतर्कता और सामरिक सूझ बूझ की होनी चाहिए, वह इस निर्णय में स्पष्ट दिखाई दे रही है | मालदीव से म्यांमार तक और अफगानिस्तान से नेपाल तक के पड़ोसियों का दिल जीतने का प्रयत्न भारत को एक अतिरिक्त सम्मान दिलाने वाला सिद्ध होगा | साथ ही वियतनाम जैसे देशों को भी भारत की सक्रिय कूटनीति प्रभावित करेगी ।

प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक सहायता कूटनीति इस दृष्टि से देखी जानी चाहिए कि चीन अपनी सुपर महत्वाकांक्षी सिल्क रूट योजना पर विगत वर्षों से 50 देशों में काम कर रहा है | चीन अब तक 50 अरब डॉलर की आर्थिक मदद इन देशों को दे चुका है | 

1971 में बांग्लादेश के जन्म के बाद से पहली बार भारत और बंगलादेश के साथ भूमि और समुद्री सीमा विवाद पूरी तरह समाप्त हुआ है | इससे अब दोनों देशो के आपसी द्विपक्षीय संबंधों में सुधार पर ध्यान केंद्रित हो सकेगा । भारत और बांग्लादेश के बीच नई बस और रेल सेवाओं के खोलने पर समझौते से द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने में भी मदद मिलेगी । हालांकि इसमें भी विरोधियों को आरोप लगाने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होंगे | अंबानी के रिलायंस पावर और अदानी समूह जैसे प्रमुख भारतीय कॉर्पोरेट संस्थाओं ने जिन समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, उनमें बांग्लादेश के बिजली क्षेत्र में 5 अरब डॉलर (32,000 रुपये करोड़ रुपये) का निवेश प्रस्तावित है । इस भारतीय निवेश से बांग्लादेश को निकट भविष्य में 4600 मेगावाट बिजली पैदा करने में मदद मिलेगी ।

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तीसरा समाचार यह है कि प्रधान मंत्री की इस यात्रा से अतिवादी संगठन चोंकन्ने हो गए हैं | बांगलादेश के हिज्ब-उल-तहरीर ने तो प्रधान मंत्री शेख हसीना को भारत की कठपुतली ही घोषित कर दिया है | मोदी को इजराईल का मित्र और मुसलमानों का शत्रु घोषित करते हुए विश्व विद्यालय में पोस्टर लगाते तीन छात्र गिरफ्तार भी किये गए है | इनके नाम हैं – चिटगांव यूनिवर्सिटी ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलोजी के इश्तियाक हुसैन, गवर्नमेंट कोमर्स कॉलेज के अहसान अली मिया और हायर सेकेंडरी के छात्र अब्दुल जावेद | अतः यह नहीं कहा जा सकता कि सब कुछ ठीकठाक चल रहा है | सुरक्षा और आतंकवाद का मुकाबला करने के मोर्चे पर बांग्लादेशी सरकार शून्य सहिष्णुता का का कितना ही दम भरे, बांगलादेश के पाकिस्तान परस्त और उग्रवादी तत्व उनके मंसूबों पर पानी फेरने को हमेशा प्रयत्नशील रहेंगे | आखिर पाकिस्तान द्वारा चलाया जा रहा नकली भारतीय करेंसी नोट का रैकेट बांग्लादेश की धरती से ही तो संचालित हो रहा है | 

और सबसे अंत में चर्चा सबसे महत्वपूर्ण विन्दु की | और वह है आशा निराशा के झूले में झूलते बंगलादेश के हिन्दुओं की | पडौसी देश भारत को बड़ा भाई मानेंगे, नहीं मानेंगे, यह तो समय के गर्भ में है, किन्तु विश्व भर के हिन्दू तो भारत को अपना अभिभावक मानते ही हैं | उन्हें कितनी शर्मिंदगी होती होगी, जब बांगलादेश में उनके ऊपर होने वाले अत्याचारों को लेकर अमरीका तो आवाज उठाता दिखे और भारत की ओर से कोई आवाज ही न उठे | यही कारण है कि बंगलादेश हिन्दू बुद्धिष्ट, क्रिश्चियन यूनिटी कौंसिल के महासचिव राना दास गुप्ता ने प्रधान मंत्री से अपेक्षा की है कि वह बांगलादेश के नेताओं के समक्ष अल्पसंख्यक हित से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा करें | उनका कहना है कि बांग्लादेश का अतिवादी तबका चाहता है कि हिन्दू बांगलादेश छोड़कर चले जाएँ |

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