खजुराहो जैसा किन्तु श्रापित मंदिर, जहाँ नहीं रुकता कोई रात में !



सम्पूर्ण भारतवर्ष में ऐसे कई रहस्यमयी मंदिर हैं जिनके अद्भुत रहस्य आज भी लोगों में जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं ! आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे ही रहस्यमयी मंदिर की जो बाड़मेर(राजस्थान) जिले के किराडू में है। यह मंदिर राजस्थान में खजुराहो मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है ! यह मंदिर प्रेमियों को विशेष आकर्षित करता हैं, लेकिन यहां की ऐसी भयानक सच्चाई है जिसे जानने के बाद कोई भी यहां शाम के बाद ठहरने की हिम्मत नहीं कर सकता ! इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां पर रात में रुकनेवाला वाला व्यक्ति या तो हमेशा के लिए गहरी निंद्रा में लीं हो जाता है या फिर वह पत्थर में परिवर्तित हो जाता है ! किराडू में मुख्य रूप से पाच मंदिर है, जो कि लगभग 900 साल पुराने माने जाते हैं !

क्या है इस मान्यता के पीछे का कारण ?

बाड़मेर के किराडू मंदिर की हकीकत इसके इतिहास में छिपी है ! कोई कहता है कि मुगलों के कई आक्रमण झेलने की वजह से आज यह जगह बदहाल है ! लेकिन यहां के स्थानीय लोगों की माने तो एक साधू के शाप ने इस मंदिर को पत्थरों की नगरी में बदल दिया ! कहा जाता है कि कभी किराडू के आसपास लोग रहा करते थे ! यहां कभी इंसानी बस्ती थी ! वर्षों पूर्व किराडू में एक तपस्वी पधारे ! उनके साथ शिष्यों की एक टोली थी ! किसी कारणवश तपस्वी कुछ दिनों के लिए अपने शिष्यों को गांव में छोड़कर देश भ्रमण पर चले गए ! तपस्वी की अनुपस्थिति में उनके शिष्यों का स्वास्थ्य खराब हो गया ! गांव वालों ने उनकी कोई मदद नहीं की !

तपस्वी जब वापस लोटे और उन्होंने अपने शिष्यों को बीमार देखा तो वह क्रोधित हो गये एवं उन्होंने गांव वालों को श्राप दिया कि जहां के लोगों में दया की भावना न हो वहां जीवन का क्या अर्थ, इसलिए यहां के सभी लोग पत्थर के हो जाएं और पूरा शहर बर्बाद हो जाए ! 

तपस्वी के श्राप के परिणाम स्वरुप देखते ही देखते सम्पूर्ण ग्रामवासी पत्थर के हो गए ! गांव में सिर्फ एक औरत थी, जिसने उनके शिष्यों की सहायता की थी ! तपस्वी ने उस पर दया करते हुए कहा तुम गांव से चली जाओ वरना तुम भी पत्थर की बन जाओगी, लेकिन याद रखना जाते समय पीछे मुड़कर मत देखना ! वह औरत गांव से चली गई, लेकिन उसके मन में यह संदेह होने लगा कि तपस्वी की बात सच भी है या नहीं वह पीछे मुड़कर देखने लगी और वह भी पत्थर की बन गई ! सिहाणी गांव के नजदीक कुम्हारन की वह पत्थर मूर्ति आज भी अपने उस भयावह अतीत को बयां करती दिखाई देती है ! 

यह तो कोई नहीं कह सकता की इस कहानी में कितनी सच्चाई है, परन्तु यदि इतिहासकारों की माने तो 14वीं शताब्दी तक किराडू मुगलों के आक्रमण से तो बचा हुआ था ! ऐसे में शायद यह साधु का शाप ही था जिसने इस देवालय भूमि को पत्थरों के वीराने में बदल दिया !

ऐसा माना जाता है कि 1161 ईसा पूर्व इस स्थान का नाम 'किराट कूप' था ! करीब 1000 ई. में यहां पर पांच मंदिरों का निर्माण कराया गया ! लेकिन इन मंदिरों का निर्माण किसने कराया, इसके बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है ! लेकिन मंदिरों की बनावट शैली देखकर लोग अनुमान लगाते है कि इनका निर्माण दक्षिण के गुर्जर-प्रतिहार वंश, संगम वंश या फिर गुप्त वंश ने किया होगा ! मंदिरों की इस श्रंखला में केवल विष्णु मंदिर और शिव मंदिर (सोमेश्वर मंदिर) ही आज थोड़े ठीक हालात में है ! बाकि मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं ! श्रृंखला में सबसे बड़ा मंदिर शिव को समर्पित नजर आता है ! खम्भों के सहारे निर्मित यह मंदिर भीतर से दक्षिण के मीनाक्षी मंदिर की याद दिलाता है, तो इसका बाहरी आवरण खजुराहो का रंग लिए हैं ! काले व नीले पत्थर पर हाथी-घोड़े व अन्य आकृतियों की नक्काशी मंदिर की कलात्मक भव्यता को दर्शाती है ! श्रृंखला का दूसरा मंदिर पहले से आकार में छोटा है ! लेकिन यहां शिव की नहीं विष्णु की प्रधानता है ! जो स्थापत्य और कलात्मक दृष्टि से काफी समृद्ध है ! शेष मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं ! लेकिन बिखरा स्थापत्य अपनी मौजूदगी का एहसास कराता है

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