सम्मान आदर कैसे दें?

प्रायः हम अपने गुरु, आचार्य, बड़ी अवस्था वाले, माता-पिता, अतिथि आदि को यथा योग्य सम्मान आदर नहीं दे पाते क्योंकि हम उस शिष्टाचार को ठीक से जानते ही नहीं। आइये कुछ आदर सम्मान हेतु आवश्यक बिंदुओं को स्मरण करैं और सम्मानंनीयों को सम्मान दें।
किस किस प्रकार से हम आदर सम्मान कर सकते हैं -

सेवा करके- उनकी कहीं हुयी बातों का चिंतन मनन करके।

श्रद्धा रखकर, भरोसा करके।

यदि आपके कक्ष में या घर में इनका प्रवेश हो तो ये बातें ध्यान रखै -

अपने से श्रेष्ठ आसन देकर, खटिया पर आप बैठे हैं तो आगंतुक को सिरहाने की तरफ बिठाईये, स्वयं पैरों की और बैठें।

गृह प्रवेश या अपने कक्ष प्रवेश पर उठकर स्वागत करें।

पूछने पर कभी बैठकर उत्तर न देना।

होता क्या है की अपने से बड़े कुछ पूछने के लिए हमारे पास आते है और हम उस समय विस्तर पर या कुर्सी पर बैठे होते हैं, वो तो खड़े होकर कुछ पूछ रहे होते हैं और हम बैठकर जबाब देते हैं तो यह सम्मान नहीं है |

जितना पूछा जाए उतना उत्तर देना।

जो कहा जाए उसे ध्यान से सुनें।

यदि हमसे कुछ प्रश्न पूछा जा रहा है और उस वक्त हम कुछ और काम करने लगते है या पहले से कर रहे होते हैं, जब प्रश्न कर्ता कहता है 'मेरी बात तो सुनो' हम कहते है हाँ सुन तो रहा हूँ। इस तरह का व्यवहार भी ठीक नहीं।

समय समय पर हमें जीवन प्रवंधन के उपदेश भी इनसे सुनने को मिलते हैं, परंतु अज्ञानता वश हम उनकी बात को हंसी में टाल देते हैं, और कभी उनके कही हुयी बातों पर चुटकीयां भी ले लेते है। तो यह निरादर है।

ये छोटी छोटी बाते अपनी बुद्धि के अनुसार सम्मान और आदर करने हेतु आपके लिए प्रस्तुत कीं। निश्चित ही इस आधार पर हमने कभी न कभी अपने गुरु, आचार्य, माता-पिता, वृद्धजन आदि का निरादर किया ही होगा। कोई बात नहीं जब जागो तभी सबेरा।

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