ईश्वर के तुल्य कोई नही : पं. योगेश शर्मा



एक स्त्री, अनजान जगह पर अपने पति से बिछड़ गयी, बेचारी व्याकुल होकर अपने पति को खोजती फिर रही थी । तभी एक व्यक्ति जिसका नाम प्रवेश था, उसने उस स्त्री को धीरज बँधाया और गहन खोजबीन के बाद, उसे उसके पति के सम्मुख ले जाकर खड़ा कर दिया, उस स्त्री का पति तो बहुत प्रसन्न हुआ किन्तु वह स्त्री दुविधा में पड़ गई  ...अकस्मात उसे बोध हुआ 


पति , प्रवेश दौउ खड़े, काके संग लू धाय।
बलिहारी प्रवेश आपने, पति दिये मिलाय ।

ऐसा कहते हुये वह , प्रवेश की तरफ हो ली । भाग जाना चाहिए उसे प्रवेश के साथ ? कैसा रहा ? सार यह है कि -- धर्म वा आध्यात्म के विषय में प्रमाण शास्त्रवचन होते है, न दोहे, या कवियों की कविताए । न ही आपको मधुर लगने वाली बाते।

यजुर्वेद का उद्घोष है -- न तस्य प्रतिमाSस्ति यस्य नाम महद्यश: -- अर्थात उस परमात्मा के सदृश यानि समान कोई नहीं हैं। जिसका बड़ा ही यश हैं ।

गीता मे भी कहा गया है --- " न त्वत्समोंSस्त्यभ्यधिक: कुतोSन्य: -- अर्थात उस परमात्मा के सदृश यानि समान भी कोई नहीं है, फिर कोई उसने बड़ा कैसे हो सकता हैं ?

इतने स्पष्ट प्रमाण होने के पश्चात भी जो महानुभाव अब भी गुरु को, माता को, पिता को या अन्य किसी को भी ईश्वर के समान या उनसे बड़ा कहे , मेरे अनुसार उन्हे तत्काल खुद का नाम, विशिष्ट महामूढ़ के तौर पर गिनीज़ बुक में दर्ज कराने हेतु, आवेदन कर देना चाहिए।

वैदिक पं. योगेश शर्मा
आचार्य- वैदिक संस्थान, शिवपुरी

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