राजनीति की कीचड में कमल खिलाने वाले नानाजी देशमुख |



अपना सम्पूर्ण जीवन देश को समर्पित करने वाले संघ के वरिष्ठ प्रचारक रहे नाना जी देशमुख का जन्म 11 अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र के परभणी के कडोली गाँव मे हुआ | 

ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने को स्वप्न आँखों में सँजोये नाना जी का देहावसान 27 फरवरी 2010 को चित्रकूट में हुआ | अपना जीवन भारत के लोगों और तत्पश्चात मृत शरीर भी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को दान कर उन्होने भारत की ऋषि परंपरा का अनुपम उदाहरण हमारे सामने रखा |

बचपन में ही माता पिता को खोने के बाद उनका लालन-पालन अपने मामा जी के यहाँ हुआ | उनका बचपन अभावों में ही बीता, यहाँ तक कि उनके पास शुल्क देने और पुस्तकें खरीदने के लिये भी पैसे नहीं होते थे | किन्तु उनके अन्दर शिक्षा और ज्ञानप्राप्ति की उत्कट अभिलाषा थी अत: वे सब्जी बेचकर पढ़ाई के लिए पैसे जुटाते थे | उन्होंने पिलानी के बिरला इंस्टीट्यूट में उच्च शिक्षा प्राप्त की | 

संघ संस्थापक डा. हेडगेवार जी के संपर्क में आने के बाद उन्हे जैसे जीवन का लक्ष्य मिल गया | वे प्रचारक के रूप में उत्तरप्रदेश भेजे गए| पर यहाँ ये कार्य बिल्कुल ही आसान नहीं था क्योंकि संघ के पास दैनिक खर्च के लिए भी धन नहीं था| धनाभाव में उन्हें ठहरने के लिए भी कोई स्थान नहीं मिल पाता था पर अंत में बाबा राघवदास ने उन्हें इस शर्त पर ठहरने दिया कि वे उनके लिए खाना बनाएंगे | तीन साल के अंदर उनकी मेहनत ने रंग लाई और गोरखपुर के आसपास करीब 250 संघ की शाखाएं खुल गई| 

संघ कार्य का विस्तार करने के साथ ही उन्होने देश के बच्चों में राष्ट्र-समाज और भारतीय संस्कृति के प्रति जागृ्ति फैलाकर उत्तम गुणवत्ता वाली शिक्षा देने के लिये गोरखपुर में ही 1950 में प्रथम सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की | आज देशभर में ऐसे अनगिनत विद्यालय चल रहे हैं और इन विद्यालयों से शिक्षा प्राप्त करके निकले विद्यार्थी राष्ट्र और समाज के विकास के लिये कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं | 

1952 में भारतीय जनसंघ की स्थापना के बाद नाना जी को उत्तर प्रदेश का दायित्व सौंपा गया | उनके प्रयासों से जल्द ही भारतीय जनसंघ उत्तरप्रदेश की प्रमुख शक्ति बन गई | जेपी आंदोलन में जब जयप्रकाश पर पुलिस ने लाठियां बरसाई, उस समय नानाजी ने जयप्रकाश को सुरक्षित निकाल लिया जिसमें नानाजी को चोटें आई और इनका एक हाथ टूट गया| आपातकाल हटने के बाद चुनाव हुए जिसमें बलरामपुर लोकसभा सीट से नानाजी सांसद चुने गए | 1977 में बनी पहली गैर काँग्रेसी सरकार में जयप्रकाश नारायण और तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने नानाजी के साहस की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए उन्हें मंत्रिमंडल में बतौर उद्योग मंत्री शामिल होने का न्यौता भी दिया, लेकिन नानाजी ने इनकार कर दिया| उनका यह मानना था कि 60 वर्ष के पश्चात व्यक्ति को समाज का ही कार्य करना चाहिये न कि राजनीति | 

उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार बलरामपुर के जानकीनगर को नाना जी देशमुख ने अपनी कर्मस्थली चुना था | वहाँ पहुँचने के पश्चात उन्होने वहाँ के निवासियों को देव स्वरूप बता उनकी सेवा में अपना जीवन बिताने का निश्चय किया | उस समय वह बलरामपुर के सांसद थे और चुनाव के पूर्व उन्होने बलरामपुर के लोगों को वचन दिया था कि वह अब उन लोगों का जीवन स्तर सुधारने का कार्य करेंगे व अन्यत्र कहीँ नहीं जायेंगे | 

80 के दशक में जो कार्य वहाँ नाना जी ने किया उसे देखकर नाना जी की आधुनिक एवं वैज्ञानिकी सोच का पता चलता है | नाना जी ने जयप्रभा ग्राम में सरकारी बैंक, डाकघर, टेलीफोन, सरस्वती विद्यालय एवं कृषि एवं पशुपालन के क्षेत्र में अनुकरणीय प्रयोगों को स्थापित किया | नाना जी ने पाया कि उस क्षेत्र की मूल समस्या सिंचाई सुविधा का न होना था, अत: उन्होने बैंक से किसानों को कर्ज़ दिलाकर जमीन में 70-80 हज़ार नलकूप लगवाये, जिससे किसानों की मेहनत उनकी फसल बिन पानी बर्बाद न हो | आज भी बलरामपुर गन्ने के उत्पादन में अग्रणी है, जिससे वहाँ के किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरी है. किसानों में आध्यात्मिक चेतना जगाने के लिये नाना जी ने वहाँ एक सुंदर मंदिर भी बनवाया, जिसमें भारत के सभी तीर्थस्थलों का लघु चित्रण किया गया है | आज भी जय-प्रभा ग्राम संघ व अन्य समाज से जुड़े संगठनों के लिये प्रेरणास्रोत है | 

महाराष्ट्र के बीड और उत्तर प्रदेश के गोण्डा-बलरामपुर में कार्य करने के पश्चात उन्होने 1980 में साठ साल की उम्र में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर आदर्श की स्थापना की| बाद में उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की वनवास स्थली चित्रकूट को अपने कार्य के लिये चुना और जीवन के शेष वर्ष वहीं बिताने का निश्चय किया | उनका कहना था कि हम अपने लिए नही, अपनों के लिए हैं, अपने वे हैं जो पीडि़त व उपेक्षित हैं | 

चित्रकूट में उन्होने दीनदयाल शोध संस्थान एवं देश के प्रथम ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की. उनका स्वप्न था हर हाथ को काम और हर खेत को पानी | उन्होंने कृषि, कुटीर उद्योग, ग्रामीण स्वास्थ्य और ग्रामीण शिक्षा पर बल दिया| उनके द्वारा चलाई गई परियोजना का उद्देश्य था- हर हाथ को काम और हर खेत को पानी| नानाजी देशमुख ने एकात्म मानववाद के आधार पर ग्रामीण भारत के विकास की रूपरेखा रखी जिसका आधार, लोक सहयोग और सहकार है| 

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने नानाजी देशमुख और उनके संगठन दीनदयाल शोध संस्थान की प्रशंसा करते हुए कहा था "चित्रकूट में मैंने नानाजी देशमुख और दीनदयाल उपाध्याय के उनके साथियों से मुलाकात की| दीन दयाल शोध संस्थान ग्रामीण विकास के प्रारूप को लागू करने वाला अनुपम संस्थान है यह प्रारूप भारत के लिए उपयुक्त है| विकास के इस अनुपम प्रारूप को सामाजिक संगठनों, न्यायिक संगठनों और सरकार के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में फैलाया जा सकता है| शोषितों और दलितों के उत्थान के लिए समर्पित नानाजी की प्रशंसा करते हुए कलाम ने कहा था कि नानाजी चित्रकूट में जो कर रहे हैं वो अन्य लोगों के लिए आंखें खोलने वाला होना चाहिए| 

मौन तपस्वी साधक बनकर, हिमगिरि सा चुप चाप गले | इन पक्तियों को अपने जीवन में उतार राष्ट्र का कार्य करने वाले नाना जी से को बारम्बार नमन |

सत्ताधीशों की पशुता ने जे पी पर जब किया प्रहार,
स्वयं ढाल बनकर नानाजी ने झेले थे पूरे वार ।
राजनीति की कीचड में वे कमल खिलाने आये थे,
सत्ता नहीं मुख्य है सेवा, यह समझाने आये थे ।
सम्पूर्ण क्रान्ति के स्वप्न दिखाकर क्यूंकर मौन हुए साधक,
बहुत याद आते हो ऋषिवर, तंत्र आज दिखता दाहक ।
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