हिम्मत की मिसाल बनी महाराष्ट्र के एक किसान की विधवा किरण द्यानेश्वर बोदडे

प्रकृति की मार के चलते खराब फसल और साहूकारों के कर्ज के बोझ के अत्याधिक दवाब के चलते सिर्फ महाराष्ट्र में ही विगत छह माह में लगभग १३००० किसानों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली ! निश्चित ही यह एक अत्यंत गंभीर समस्या है जरा सोचिये कि जब गरीब किसानों के मुखिया के जिन्दा रहते हुए उनके परिवार की दशा इतनी बुरी थी तो उनके जाने के बाद उन पर आश्रित उनके परिजनों की स्तिथि क्या रही होगी ? परन्तु ऐसी विपरीत परिस्तिथियों में संघर्ष कर अपना और अपने परिवार का सहारा बनने वाली एक महिला किरण की कहानी हम आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे है !

महाराष्ट्र के अकोला जिले के वणी गाँव की रहनेवाली किरण द्यानेश्वर बोदडे के पति दो साल पहले उनका साथ छोड़ गए ! उनकी ढाई एकड ज़मीन थी उस पर वह सोयाबीन की खेती करते थे ! उनकी जिन्दगी हस्ते खेलते चल रही थी ! बोदडे दंपत्ति की तीन संताने थी, अश्विनी, तेजस्विनी और ओम ! वह अपनी छोटी सी दुनिया में खुश थे ! पैसे बहुत तो नहीं थे पर जितने थे हम सबके लिए काफी थे !

अचानक गाँव में सुखा पड़ने लगा ! पहले साल तो इस परिवार ने किसी तरह इस बुरे वक़्त को काट लिया पर अब ये हर साल का किस्सा बनने लगा ! २.५ एकड ज़मीन में क्विंटल भर ही सोयाबीन होने लगा जिससे लागत का दाम भी नहीं निकलता था इस कठिन परिस्तिथि में बोदडे दंपत्ति ने फैसला किया कि दो वक्त की रोटी कमानी है तो अपनी ये बंज़र ज़मीन छोड़कर दूसरों के खेतो में मजदूरी करना ही ठीक होगा ! पति के इस फैसले में साथ देते हुए किरण ने भी दूसरों के खेतों में मजदूरी का काम शुरू कर दिया ! किरण के पति ने कभी उन्हें या बच्चो को किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दी ! किरण के अनुसार उन्हें नहीं पता वो ये सब कैसे कर रहे थे ! कर्ज का बोझ दिनों दिन बढ़ता चला जा रहा था पर उनके हंसमुख चेहरे से कभी उनके मन की परेशानी का पता ही नहीं चलता ! वह पांचो मिलकर हर मुसीबत का डंटकर सामना कर रहे थे ! पर फिर एक दिन अचानक किरण के पति ने इन मुसीबतों का सामना करने की बजाय मर जाना बेहतर समझा ! कर्जो और गरीबी से तंग आकर किरण के पति ने आत्महत्या कर ली !

किरण सिर्फ चौथी पास थी ! हिसाब किताब नहीं समझती थी ! उन्हें नहीं पता था कि पांच लोगो के परिवार को पालने की कीमत इतनी ज्यादा थी कि उनके पति को अपनी जान से वो कीमत चुकानी पड़ी ! वह दोनों मिलकर दिन के २०० रूपये कमा लेते थे ! अब किरण दिन के सिर्फ ९० रूपये कमा पाती ! किरण की बड़ी बेटी को उन्होंने उसकी मासी के पास भेज दिया, जो दसवी में है ! बाकि दोनों बच्चो ने पढाई छोड़ दी ! कई बार किरण को अपने पति पर गुस्सा आता कि वो उन्हें ऐसे कैसे छोड़कर जा सकते है ! कई बार हिम्मत हारते हारते रह जाती, फिर सोचती – नहीं ! जो गलती मेरे पति ने की वो गलती मैं नहीं करुँगी ! मैं जिऊंगी ! अपने बच्चो के लिए जिऊंगी !

कहते है जो खुद की मदद करते है, भगवान् भी उनकी मदद ज़रूर करते है ! दो साल तक मजदूरी करके अपने बच्चो का पेट पालने के बाद आखिर किरण को एक नयी राह तब मिली जब एक स्वयं सेवी संस्था ने उनकी मदद करने का प्रस्ताव दिया ! इस संस्था की सहायता से किरण अब अपना टिफ़िन सर्विसेज का काम शुरू कर रही है ! गाँव में दो फक्टरियां है जहाँ वे डब्बा पहुंचाकर अच्छी आमदनी कर सकती है ! हम किरण की हिम्मत और दृढ़ निश्चय को सलाम करते है और उनके और उनके परिवार के उज्जवल भविष्य की कामना करते है !

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