आर्थिक सुधारों के नाम पर बर्बाद होती भारतीय अर्थव्यवस्था - स्वदेशी जागरण मंच


स्वदेशी जागरण मंच का तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन 26 दिसंबर को जोधपुर में संपन्न हुआ | राष्ट्रीय सम्मेलन के दुसरे दिन उम्मेद स्टेडियम से गांधी मैदान तक स्वदेशी संदेश यात्रा निकाली गई। ’’जब भी बाजार जायेगें, माल स्वदेशी लायेंगे’’, ’’स्वदेशी अपनाओ,देश बचाओ’’, आदि उद्घोषों के साथ सभी प्रदेशों से आये 2000 स्वदेशी कार्यकर्ताओं ने स्टेडियम से गांधी मैदान तक स्वदेशी संदेश यात्रा निकाली । यह संदेश यात्रा गांधी मैदान में हुंकार सभा में परिवर्तित हो गयी।

स्वदेशी हुंकार सभा में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक अरूण ओझा ने कहा कि स्वदेशी का अर्थ मात्र घर परिवार की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं वरन सामाजिक अर्थव्यवस्था के अंतर्गत आमजन, शासकीय अधिकारियों से लेकर उद्योगपतियों तक की जीवन शैली को भारतीय संस्कारों में ढाल देना ही स्वदेशी है। 

सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में वक्ताओं द्वारा व्यक्त विचार -

पाली सांसद पी.पी. चौधरी ने कहा कि ’देश के अधिकांश लोग कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था से जुडे़ है। हमें गर्व है कि स्वदेशी जागरण मंच ने अपनी विचारधारा की सरकार होते हुए भी भूमि अधिग्रहण बिल को किसान विरोधी बताया व इसमें मजदुरो व किसानों के हितो की सुरक्षित रखने के प्रावधानों को जोड़ने की मांग की। देश की विस्तृत समृद्धि के लिए कृषि क्षेत्र में 1 से 2 प्रतिशत वृद्धि करनी पड़ेगी जिससे गांवों का विकास तेज हो।

मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक डॉ. भगवतीप्रकाश शर्मा ने कहा कि विगत 24 वर्षों में आर्थिक सुधारों के कारण हमारा देश आयातित वस्तुओं के बाजार में बदल गया है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से हमारे देश के उत्पादक इकाई के दो तिहाई से अधिक अंश पर विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का स्वामित्व हो गया है। टिस्को सिमेन्ट, एसीसी, गुजरात अम्बुजा, केमलिन, थम्पअप्स जैसे प्रसिद्ध ब्रान्डों पर विदेशी लोगों का अधिकार हो गया है। वर्तमान में कुल वैश्विक उत्पादन में भारत का अंश मात्र 2.04 प्रतिशत ही है। जबकि चीन का अंश 23 प्रतिशत हो गया है। 1991 में चीन व भारत का अंश लगभग बराबर था। अतः स्वदेशी जागरण मंच आव्हान करता है कि विभिन्न क्षेत्रों के स्वदेशी उद्यम संगठित होकर अपने उद्योग सहायता संघो में बदले जिससे मेड बाई इण्डिया अभियान की गति बढे।

दक्षिण क्षेत्र के संयोजक कुमार स्वामी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिगं और जलवायु परिवर्तन हर बीतते वर्ष के साथ बहुत तेजी से क्रूर एवं नुकसानदेह होता जा रहा है। WMO ने अभी हाल ही में ही कहा है कि सन 2015 अभिलेखों के अनुसार अभी तक का सबसे गर्म वर्ष था। यदि हम गत 150 वर्षों के सबसे गर्म 15 वर्षों की सूची बनाएं तो वे समस्त 15 वर्ष सन 2000 के बाद अर्थात 21वीं शताब्दी के ही वर्ष होगें। यह तथ्य 21वीं शताब्दी में ग्लोबल वार्मिगं की समस्या की गंभीरता को दर्षाता है। भूमंडल के बढ़ते हुए तापमान से गंभीर मौसमी आपदाएं जैसाकि नवम्बर एवं दिसम्बर माह में चैन्नई और इसके आस पास के इलाके में हुई भारी वर्षा एवं देश के बाकी हिस्सों में गंभीर सूखे की समस्या के प्रकोप में लगातार वृद्धि के आसार दिखायी दे रहे हैं। चैन्नई में आई बाढ़ ने प्रकृति के रोष के समक्ष मानव की लाचारी एवं मानवीय संस्थाओं की असफलता को हमें दृष्टिगत कराया है। अगर साल दर साल, इसी प्रकार से अनेक नगर एक साथ प्राकृतिक आपदा के कारण मुष्किल में आते हैं, तब कौन किसकी सहायता कर पायेगा? 

सम्पूर्ण विश्व अपनी ही गल्तियों का स्वंय ही शिकार बन चुका है। अस्थायी विकास का मॉडल जो कि पश्चमी देशों में सन 1850 से प्रारम्भ हुआ और जिसका विश्व के सभी देशो ने बिना सोचे समझे अनुसरण किया, यही इस वैष्विक जलवायु संकट का प्रमुख कारण है। 

आखिर इससे बाहर निकलने का रास्ता क्या है? हमको अधिक सौम्य और अधिक स्थायी तरीके से विकास एवं जीवन शैली के तरीके में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्य्कता है। विकास एवं जीवन शैली के टिकाऊपन का एक सजीव एवं प्रमाणित उदाहरण विकास का भारतीय मॉडल है जिसे विकास एवं जीवन शैली का स्वदेशी मॉडल भी कहा जा सकता है। स्वदेशी मॉडल इस अर्थ में सम्पूर्णता लिए हुए है कि यह जीवन (धर्म एवं मौक्ष) में भौतिकता (अर्थ, काम) एवं आध्यात्मिकता को समान महत्व देता है। यह पृथ्वी मां को उसके चेतन एवं अचेतन, समस्त स्वरुपों में अत्यन्त सम्मान एवं श्रद्धा देती है।

मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक व अर्थशास्त्र के प्रो. अश्विनी महाजन ने कहा कि हमें गर्व है कि स्वदेशी कार्यकर्ता बिना किसी पार्टी पक्ष के सभी पर्यावरणीय विरोधी नीतियों का विरोध करता है। जी. एम. फसलों पर बोलते हुए कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित टेक्नीकल कमेटी ने बताया कि जी एम फसले मानव व पर्यावरण के ठीक नहीं है और इससे प्राप्त लाभ संदिग्ध है तो फिर क्यों केन्द्र सरकार इसके खुले परीक्षण को अनुमति देती है। विज्ञान को उस मार्ग पर बढना होगा, जिस पर पर्यावरण का रक्षण भी हो। 


स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक अरूण ओझा ने विचार व्यक्त किये कि ’वर्तमान में आर्थिक सुधारों के नाम पर भारतीय अर्थव्यवस्था को पूर्ण रूप से बर्बाद किया जा रहा है। वैश्वीकरण, आर्थिक सुधार जैसे बड़े-बडे़ नाम देकर भारतीय जनमानस को गुमराह किया जा रहा है। बाजारीकरण के चलते हमें वे वस्तुएं खिलाई-पिलाई जा रही है, जो बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां चाहती है। ओझा ने बताया कि 60 के दशक पूर्व खाद्य तेल व घी को लेकर कोई चिन्ता न थी किन्तु इन विदेशी कम्पनियों ने विभिन्न बिमारियों का नाम देकर उनमें बदलाब कर दिया है। इसी के परिणाम स्वरूप तिल, मूंगफली और नारियल तेल से सम्बन्धित कुटीर उद्योग नष्ट हो गए है।

कोई भी सरकार विदेशी निवेश से प्राप्त धन का तो लेखा दे रही है किन्तु कितनी राशि देश से बाहर जा रही है उसका खुलासा नहीं किया जा रहा। स्वदेशी जागरण मंच के सर्वे के अनुसार जहां निवेश से एक डॉलर आ रहा है, वही भारत से तीन डॉलर विदेश में जा रहा है। अतः देश को नवीन अर्थनीतियों की आवश्यकता है | देश के लिए नया स्वर, नया शब्द, नया वाक्य चाहिए। और नव वर्ष से नवीन नीतियां का आगाज हो इसका प्रयास स्वदेशी जागरण मंच कर रहा है।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. अश्विनी महाजन ने मांग की कि कृषि निवेश और पेटेंट को व्यापार वार्ताओं से बाहर किया जाना चाहिए। नैरोबी (कैन्या) में 19 दिसंबर 2015 को संपन्न विश्व व्यापार संगठन के मंत्री सम्मेलन में जिस प्रकार से विकासशील देशों के हितों के विपरीत दोहा विकास चक्र को तिलांजली दे दी गई और विकसित देशों द्वारा कृषि को दी जाने वाली भारी सब्सिडी के चलते आयातों की बाढ के फलस्वरूप हमारे किसानों और कृषि को भारी संकट से बचाने हेतु विशेष बचाव उपायों (एसएसएम) और खाद्य सुरक्षा हेतु सरकार द्वारा खाद्यान्न खरीद पर सब्सिडी गणना की गलती को सुधारने हेतु समाधान देने में भी विकसित देशों की आनाकानी से यह स्पष्ट हो गया है कि विश्व व्यापार संगठन में हुए पूर्व के समझौतों से विकासशील देशों और विशेष तौर पर भारत को भारी कठिनाईयों से गुजरना पड़ रहा है। विदेशों से सब्सिडी युक्त कृषि पदार्थों की बाढ के कारण हमारे किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता और कृषि लगातार अलाभकारी होती जा रही है और हमें अपनी गरीब जनता की खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने में भी संघर्ष करना पड़ रहा है। भारत सरकार के वाणिज्य मंत्री ने भी कहा है कि दोहा विकास चक्र को आगे बढाने में असफल होने के कारण वे अत्यन्त निराश है। 
राष्ट्रीय सहसंयोजक लक्ष्मीनारायण भाला ने राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के गठन की मांग की। समरस समाज ही संगठित एवं स्वावलंबी बन पाता है। सामाजिक समरसता में शिक्षा की भूमिका भी तब ही प्रभावी हो पायेगी जब समाज के सभी तबकों, जाति-पंथो, संप्रदायांे, विभिन्न भाषा-भाषियों आदि के सभी स्त्री-पुरूषों को समान रूप से शिक्षा उपलब्ध हो। शिक्षा के नाम पर व्यापार करने वाले एवं विदेशी निवेश के बल पर भारत की शिक्षा व्यवस्था में पैठ जमाने वाले व्यक्ति, संगठन तथा संस्थान समाज को अमीर एवं गरीब की शिक्षा के रूप में दो तबकों में बांट रही है। पांथिक अल्पसंख्यक होने का लाभ उठाकर शिक्षा में मनमानी कर अवांछित विषय भी पढाये जा रहे है। इन सब विसंगतियों को दूर कर शिक्षा सर्वसमावेशी एवं सर्वसुलभ हो ऐसी नीति बने। यह आज भी महती आवश्यकता है।

जोधपुर (राजस्थान) में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में एक प्रस्ताव पास कर मांग कि गई कि –

1. टिकाऊ विकास का भारतीय मॉडल एवं जीवन शैली से संबंधित विभिन्न आयामों पर विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के द्वारा व्यापक एवं स्तरीय शोध कार्य को प्रोत्साहन दें।

2. विशेषकर विश्वविद्यालद्यों एवं विषय पर स्वयंभू तज्ञयों के बीच शोध के परिणामों को व्यापक रूप से प्रचारित और प्रसारित करें।

3. शोध के परिणामों के आलोक में सरकार की विकास प्राथमिकता निश्चित हो। 

4. COP-21 को भारत सरकार द्वारा सौंपी गई INDC के अनुरूप अक्षुण ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता दी जाए।

5. जैविक खेती एवं पशुपालन को प्रचारित एवं प्रसारित करने हेतु योग्य कदम उढाया जाए।

6. वृक्षारोपण, विशेषकर स्वदेशी किस्म के फलदार वृक्षों का व्यापक आंदोलन चलाया जाए, ताकि वन जीव-जंतुओं को पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध रहे।

स्वदेशी जागरण मंच देश की जनता से भी विशेषकर स्वदेशी कार्यकर्ताओं से अनुरोध करता है कि वे प्रकृति के प्रति संवेदनशील उद्यमता एवं जीवन शैली को अपनाए।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें