ये है शिवपुरी / यमपुरी मेरी जान

आजादी के पूर्व सिंधिया रियासत की ग्रीष्मकालीन राजधानी, अपनी प्राकृतिक सुषमा से सबका मन मोहने वाली शिवपुरी, ताल तलैयों की नगरी शिवपुरी, तात्याटोपे की बलिदानस्थली शिवपुरी देखते ही देखते ऐसी यमपुरी में परिवर्तित हो गई, जहाँ लोगों में अन्याय के खिलाफ जूझने का माद्दा ही नहीं |

तालाबों में कंक्रीट के जंगल तन गए, इमारतें खडी हो गईं | भूजल का स्तर जो किसी जमाने में महज 50 – 60 फुट था, 1200 से 1500 फुट तक पहुँच गया | कुए और हेंडपंप तो गुजरे जमाने की चीज हो गए | सैलानियों को लुभाने वाली हरीभरी सुरम्य वादियों के स्थान पर नंगी बीरान पहाड़ियां स्थानीय नागरिकों का मुंह चिढाने लगीं |

अब अगर यहाँ की कोई विशेषता है तो वह यह कि कोई प्रशासनिक अधिकारी एक बार यहाँ आ जाए, तो फिर यहाँ से जाना नहीं चाहता | यहाँ जैसी आजादी उन्हें पूरे भारत में मिलने से जो रही | शासकीय अधिकारियों का मस्त चरागाह है शिवपुरी | नेतृत्व शून्यता के चलते वे कुछ भी करें, उन्हें कोई रोकने टोकने वाला नहीं है | 

लेकिन पिछले दिनों कुछ ऐसा हुआ, जिसने यहाँ के अधिकारी जगत में खलबली मचा दी | पूरी तसल्ली से ईमानदारी की धज्जियां उड़ाने वाली सरकारी जमात सकते में आ गई | बुरा हो लोकायुक्त की टीम का, जो न जाने कहाँ से यहाँ आ धमकी और एक एडीशनल कलेक्टर जैसे महामहिम को रिश्वत लेते रंगे हाथों धर लिया | फिर क्या था एक ही थैली के चट्टेबट्टे सारे शूरमा इकट्ठे हो गए | होंसला इतना बुलंद था कि शासकीय कार्यालय में ही प्रेस कांफ्रेंस बुला ली और लोकायुक्त की कार्यवाही को फर्जी करार दे डाला | इतने पर भी मन नहीं भरा तो अनेक अधिकारी लोकायुक्त के खिलाफ ज्ञापन देने कलेक्टर महोदय के पास भी जा धमके | पता नहीं सरकार को क्या सूझी कि बजाय इन लोगों के सामने घुटने टेकने के आनन् फानन में एडीशनल कलेक्टर महोदय को भोपाल सचिवालय में लाईन हाजिर कर दिया | और बाक़ी बचे अधिकारी खिसियानी बिल्ली बने पूंछ समेट कोने में जा दुबके |

खैर यह तो इकलौता मामला है, क्योंकि यहाँ तो इन शूरमा भोपालियों ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी चलाई, अन्यथा तो इनकी दसों उंगलियाँ घी में और सर कडाही में रहता आया है | गरीब गुरबों की फक्कड़ कॉलोनी का अतिक्रमण इनकी आँख में चुभता है, किन्तु दो बत्ती चौराहे से लेकर करबला तक की सरकारी जमीन कब निजी ट्रस्ट की हो गई, पता ही नहीं चला | गरीबों का भक्षण और धनपतियों को संरक्षण, यही अधिकारियों का चिंतन |

एक और मजेदार खेल यहाँ चलता आया है | पहले किसी धंधे को बंद करवाने का नाटक करो, फिर उसे चालू करवाने की मेहरवानी कर मनमाना सुविधा शुल्क प्राप्त करो | फिर चाहे मामला मेरिज हाल का हो, खदानों का हो, फड़ का हो या फिर गरीबों की जिन्दगी में जहर घोलने वाली सट्टे बाजी का हो | जो लोग सुविधा शुल्क देने में अक्षम होते हैं, उन्हें तो बस झिड़कियों से ही पेट भरना होता है | दो जून की रोटी उनकी किस्मत में कहाँ ?

बड़ी रकम का ही खेल है, जिसके चलते शराब ठेकों के आबंटन में गंभीर अनियमितता और घोर लापरवाही सिद्ध हो जाने के बाबजूद, व्यवस्था जस की तस बनी रहने दी जाती है | बला से हो कुटीरों की बंदरबाँट, घटिया सड़क निर्माण, बदहाल चिकित्सा व शिक्षा व्यवस्था, अभी तो अपनी पीठ अपने हाथों से ही थपथपाने का क्रम जारी है | कल्पना कीजिए कि अगर अधिकारियों की सीआर लिखने का अधिकार जनता को होता तो क्या होता ?

सीवर लाईन और सिंध जलावर्धन योजना की मृगमरीचिका के नाम पर विगत पांच वर्षों से पूरी शिवपुरी की सडकों की बखिया उधडी हुई है | आवागमन तो गया भाड़ में, उड़ती हुई धुल से औसत नागरिक खांसी, दमा, अस्थमा, चर्मरोग व अन्य खतरनाक जानलेवा बीमारियों का शिकार बन रहा है, उसका क्या ? मजा यह कि यहाँ के विधायक और सांसद दोनों ही सिन्धियाज हैं, एक भाजपा में मूर्धन्य तो दूजा कांग्रेस के सरताज | 

जो जितना भ्रष्ट होता है, उतना ही उसे चापलूसी का गुण भी आता है | शिवपुरी के शासकीय अधिकारियों को तो यह गुण इफरात से मिला होता है | और राजपरिवार की सबसे बड़ी कमजोरी भी यही चापलूसी होती है | तो बस भगवान् भरोसे दिन काट रहे हैं शिवपुरी वासी | शिवपुरी के वासिंदे जानते हैं कि चापलूसों के लिए महल के दरवाजे कभी बंद नहीं होते, अतः उनकी आवाज नक्कार खाने में तूती जैसी ही है | कौन सुनेगा उनकी फ़रियाद ? दिल्ली में बसने वाले उनके रहनुमा राजे महाराजे गाहे बगाहे रैलियों के लिए आयेंगे, उनकी काफिले की कारें वातावरण में थोड़ी धुल की मात्रा और बढाकर चली जायेंगी | वे मंच से हाथ हिलायेगे, लच्छेदार जुमलों से ताली बजबायेंगे, अपने चरणों की रज से वातावरण में अमृत घोलकर वापस चले जायेंगे | शिवपुरी वासियों को मिलेगा आशीर्वाद, बेलगाम नौकरशाही से चाबुक खाते रहने का |

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