नीतीश जी पर फेंका गया जूता, स्वतंत्रता के अर्थ का अनर्थ !



कोई भी समाज हेतैषी अच्छा काम जन सामान्य को आसानी से हजम नहीं होता | अब नीतीश कुमार जी द्वारा किये जा रहे नशामुक्ति के प्रयत्न को ही लीजिये | उन्होंने अपने चुनाव घोषणापत्र में किये गए वायदे के अनुसार चरणबद्ध रूप से पहले देशी शराब, फिर भारत में बनने वाली विदेशी शराब पर बिहार में एक अप्रैल से प्रतिबन्ध लगाने की घोषणा क्या की, उनके खिलाफ जनाक्रोष भड़कने लगा | कल एक व्यक्ति ने तो उनपर सार्वजनिक रूप से पटना के बख्तियारपुर में सभामंच पर जूता ही फेंक मारा |

शायद यही प्रजातंत्र की सबसे बड़ी बिसंगति है | स्वतंत्रता के नाम पर अपनी बुराईयों को कहीं अधिक बेरोकटोक करने का अर्थ स्वतंत्रता मान लिया गया है | अब जनसँख्या नियंत्रण को ही लीजिये | सब मानते हैं कि इसकी रोकथाम नहीं की गई, तो आगामी बीस वर्ष में हमारे संसाधन कम पड़ ही जायेंगे | किन्तु कोई इसका प्रयत्न तो करके देखे ? आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने इस दिशा में ईमानदार प्रयत्न किया था और उसका हस्र भी सबको मालूम है | इंदिराजी की सत्ता परिवर्तन में सबसे बड़ा योगदान नसबंदी अभियान का ही था |

खैर मैं तो नीतीश जी द्वारा किये जा रहे नशामुक्ति के ईमानदार प्रयत्न की प्रशंसा करता हूँ |

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