गजब है गोयबल्स के चेले !


वामपंथियों और आपियों ने दिल्ली में संघ दफ्तर के बाहर जो कारगुजारी की, उसके कई अर्थ हैं। इन लोगों का मानना है कि सरकार भले ही भाजपा की हो, उसका शक्ति केंद्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है । इसी मान्यता के चलते पिछले दो वर्षों में संघ को जितना जैसा बदनाम किया गया उतना हल्ला मनमोहन सरकार के वक्त भी नहीं हुआ। तथाकथित सेकुलर मीडिया ने अरविंद केजरीवाल के ट्वीट को लपक कर संघ को दलित विरोधी घोषित करने में रातदिन एक कर दिया । 

2014 से पहले सेकुलर मीडिया ब्रिगेड आरएसएस से अधिक नरेंद्र मोदी और अमित शाह को निशाना बनाने में रूचि लेती थी, उसकी कोशिश होती थी कि इन दोनों को राजनीति का विलेन घोषित किया जाए । इसीलिए दिग्विजय सिंह और कांग्रेस सरकार ने भगवा आतंकवाद का हल्ला मचाया था। लेकिन उनकी भोंडी हरकतों ने हिन्दू जनता को आक्रोषित ही किया | हिन्दुओं को लगा कि यह मुस्लिम आतंकवाद पर से ध्यान हटाने के लिए सरकार की भोंडी हरकत है, और उससे भाजपा के पक्ष में हिंदू जनमानस गोलबंद ही हुआ। 

हिंदू सांप्रदायिकता के बहाने नरेंद्र मोदी, अमित शाह और आरएसएस को बदनाम करने, घेरने की जितनी भी उस वक्त कोशिश हुई थी उसका फायदा भाजपा को ही हुआ। नरेंद्र मोदी की छवि एक दमदार राष्ट्रवादी नेता की बनती गई ।

आज की स्थिति यह है कि सेकुलर पार्टियां, मीडिया ब्रिगेड इस बात को समझ गई है। इसलिए अब उनका प्रयत्न यह है कि किस प्रकार हिंदू बंटे । इस वर्ष संघ ने बाबा साहब अम्बेडकर को महानायक चित्रित करते हुए सामाजिक समरसता वर्ष मनाने की घोषणा की | संघ का प्रयत्न है कि अगड़े-पिछड़े, सवर्ण-दलित सब एकजुट हों | अस्पृश्यता समाप्त हो, सामजिक भाईचारा बढे | स्वाभाविक ही सेक्यूलर ब्रिगेड को इससे अपना सारा समीकरण ही गड़बड़ाता प्रतीत हुआ | उसने आनन फानन में मोदी और शाह का पीछा छोड़कर संघ को टारगेट बनाने की ठान ली | अब उनका एकसूत्रीय कार्यक्रम है, संघ को दलित विरोधी घोषित करना । संघ परिवार को पुरातनपंथी घोषित करना । मतलब ऐसा वातावरण बनाना, ऐसी बहस चलाना जिससे संघ का सामाजिक समरसता का अभियान पंचर हो ।

अपने 90 वर्ष के इतिहास में संघ सदा प्रचार निरपेक्ष रहा है | वह सदा मौन तपस्वी की भांति अपने सामाजिक एजेंडे पर आगे बढ़ता रहा है । स्वाभाविक ही संघ स्वयंसेवकों की सरलता, इन कुटिल चालबाजों के सामने उन्हें रक्षात्मक बनाती है । अब बिहार चुनाव के समय के उस बाकये को स्मरण कीजिए | सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने एक साधारण सी बात कही, और उसका अर्थ का अनर्थ कर उन्हें आरक्षण के मुद्दे पर घेर लिया गया। उनकी सही बात को भी ऐसा परोसा गया, मानो वे ओबीसी हिंदुओं और दलितों के हक छीन रहे हों। उन्होंने इतना ही तो कहा था कि जो वास्तव में जरूरतमंद हैं, उन तक सुविधाओं का लाभ पहुँचना चाहिए | लेकिन बात का ऐसा बतंगड़ बनाया कि बिहार में पिछड़ों को पूरी तरह बरगला दिया गया और भाजपा की चुनावी संभावनाओं को पलीता लग गया | वही रणनीति अब अख्तियार की गई है, अब दलितों को बरगलाने की मुहिम छेड़ी गई है । दलित सवर्ण हिन्दुओं के बीच की खाई को बढ़ाकर समरसता की धज्जियां उडाई जा रही हैं |

इस मुहिम का ग्रांड छक्का सोमवार को दिल्ली के संघ दफ्तर पर वामपंथी संगठन के छात्र-छात्राओं का प्रदर्शन था। क्या जोरदार आईडिया था कि दलित छात्र रोहित की आत्महत्या का ठीकरा संघ के दफ्तर पर जा कर फोड़ा जाए! जिस जमात ने भारत में हिंदुओ को चिढ़ाने के लिए गोमांस भक्षण को उत्सवी माना, हिंदुओं को गाली देना, चिढ़ाना जिसका धर्म-कर्म है और आतंकवादी याकूब की फांसी पर छाती पीटना कर्तव्य है उसके लिए उस आरएसएस दुश्मन नंबर एक होना स्वाभाविक है | 

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