जेएनयू के छात्र नेताओं का कोर्ट ने किया बंध्याकरण !


आज बहुत से समाचार पत्र और न्यूज़ चेनल यह समाचार प्रसारित कर रहे हैं कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार और उसके दूसरे साथियों को राहत दी है, जबकि वास्तविकता यह है कि न्यायमूर्ति मनमोहन ने निर्देश जारी किया है कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) के विद्यार्थी अविलम्ब अपनी भूख हड़ताल समाप्त करें तथा यह शपथपत्र दें कि वे भविष्य में किसी प्रकार के आंदोलन में लिप्त नहीं होंगे । 

इतनी शर्तों के बाद अपीलीय प्राधिकार के जुर्माने संबंधी आदेश को आगामी निर्णय तक रोका गया है । जबकि राष्ट्रद्रोही नारे लगाने के आरोप में विश्वविद्यालय से निष्कासित किये गए उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य के निष्कासन को चुनौती देने वाली याचिका न्यायालय खारिज कर दी है । अर्थात उन्हें किसी प्रकार की कोई राहत नहीं मिली है !

न्यायाधीश ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि "जुर्माने पर रोक संबंधी यह आदेश भी सशर्त है, और शर्त यह है कि छात्र जेएनयू परिसर में चल रहा अपना धरना समाप्त करेंगे और भविष्य में भी किसी प्रकार के धरना, आंदोलन या हड़ताल में लिप्त नहीं होंगे " ।

अदालत ने यह भी कहा है कि प्राथमिक आवश्यकता संस्थान में गर्मी कर करने की है । छात्रों को शान्ति से अध्ययन करने दिया जाए ! उन का समय बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इस समय परीक्षायें चल रही है ।

लब्बोलुआब यह कि न्यायालय ने महज विश्वविद्यालय की उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर जो जुर्माना लगाया था, महज उसकी बसूली फिलहाल आगामी निर्णय तक टाली है । राष्ट्रद्रोही नारे लगाने वाले छात्र जिन्हें निष्कासित किया गया है, उन्हें किसी प्रकार की कोई राहत नहीं मिली है !

स्पष्ट संकेत दिया गया है कि विश्वविद्यालय पढ़ने, अध्ययन करने का स्थान है, धरने प्रदर्शन की राजनीति करने का नहीं, और राष्ट्रद्रोही गतिविधियाँ संचालित करने का तो कतई नहीं !

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें