अजब गजब हिन्दू समाज ! पूजता है महमूद गजनवी के भांजे सलार गाजी को, जबकि भुला दिया जुझारू राजा सुहेल देव को !


पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक शहर है, बहराइच । बहराइच में हिन्दू समाज का सबसे मुख्य पूजा स्थल है गाजी बाबा की मजार। और आप ये जान कर हैरान हो जाएंगे कि अज्ञानी हिंदू लाखों रूपये हर वर्ष इस पीर पर चढाते है। बिना यह जाने कि है कौन आखिर ये गाजी बाबा !

विगत सहस्राब्दी का भारतीय इतिहास मूलतः विदेशी आक्रमणों और उनके वीरता पूर्ण प्रतिरोध का इतिहास है। 8 वीं शताब्दी से भारत में इस्लामी साम्राज्यवादी ताकतों का आक्रमण प्रारम्भ हुआ ! सिंध से प्रारम्भ हुए इस अरब आक्रमण को मुंहतोड़ जबाब मिला राजस्थान में, जहाँ राजपूत राजाओं ने इन्हें रोकने में सफलता पाई । राजस्थान के अतिरिक्त कश्मीर के सम्राट ललितादित्य मुक्तपीड (724 सीई-760 सीई) द्वारा भी अरबों को निर्णायक रूप से पराजित किया गया और उनका भारत विजय का स्वप्न चकनाचूर हो गया । और इस प्रकार भारत में इस्लामी साम्राज्यवाद का प्रथम चरण समाप्त हो गया। 

इसी प्रकार 719 सीई में दक्षिणी तजाकिस्तान, ताशकन्द और तुर्किस्तान में भी अरबों को प्रभावी ढंग से प्रतिकार का सामना करना पड़ा । इस के साथ मध्य एशिया पर इस्लामी आक्रमण का पहला अध्याय समाप्त हो गया। 

लेकिन तीन शताब्दियों के बाद जब तुर्क में इस्लाम कबूल कर लिया गया इस्लामी आक्रमणों की बाढ़ एक बार फिर प्रारम्भ हो गई । इसका नेतृत्व किया महमूद गजनवी ने ! अपनी सेनाओं के साथ उसने अफगानिस्तान और उत्तर पश्चिम भारत में इस्लामी आक्रमणों के दूसरे चरण का प्रारम्भ किया। 1026 ईस्वी में सोमनाथ मंदिर के विध्वंश के दौरान उसका 11 वर्षीय भतीजा सैयद सालार मसूद भी उसके साथ था । यूं तो वह महमूद गजनवी की बहन का बेटा था, किन्तु उसका पिता गाजी सालार साह, हजरत अली का वंशज था ! उसका जन्म 1015 ईस्वी में अजमेर में हुआ था। 

महमूद गजनवी की मृत्यु के बाद मसूद ने एक लाख सिपाहियों के साथ मई 1031 में भारत पर आक्रमण किया। उसमें पर्याप्त सैन्य कौशल था, साथ ही था अदम्य धार्मिक उन्माद । उसका पहला सैन्य संघर्ष दिल्ली के राजा महिपाल तोमर से हुआ, गजनी से समय पर मदद आ जाने के कारण वह इस लडाई को हारते हारते जीत गया । उसका अगला निशाना बने मेरठ के शासक राजा हरि दत्त, जिन्होंने उसके समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया, इतना ही नहीं स्वयं भी इस्लाम स्वीकार कर लिया । कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार राजा ने भी अपने बेटे के साथ इस्लाम स्वीकार कर लिया । उसके बाद कन्नौज, अवध और पूर्वांचल में आगे इस्लामी विजय के लिए एक सैन्य अड्डे के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा । 

उन दिनों अवध और आसपास के क्षेत्रों में पासी राजाओं का शासन था। आज उत्तर प्रदेश में पासी समाज की जनसंख्या 80-90 लाख के लगभग है, और यह दूसरा सबसे बड़ा दलित समुदाय है ! उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और उड़ीसा में भी इस समाज के लोग हैं । अवध क्षेत्र के मूल निवासी के रूप में इतिहास में इनका विशिष्ट स्थान है । कहा जाता है कि पासी शब्द असि शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है तलवार ! पौराणिक कथाओं के अनुसार युद्ध विज्ञान के प्रख्यात जानकार और दानवों के गुरू ऋषि भृगु के वंशज भगवान् परशुराम ने धारदार घांस से पांच तलवारें बनाई थीं, उनको संचालित करने वाले पासी कबीले के लोग थे । 

धनुष वाण के दुर्जेय योद्धा के रूप में इनका उल्लेख अंग्रेज मेजर जनरल सर विलियम हेनरी स्लीमन द्वारा भी किया गया है । कतिपय इतिहासकारों ने पासी शब्द का उद्गम पाश शब्द से माना है, जिसका अर्थ होता है फंदा, जिसका उपयोग ये लोग दुश्मनों को फंसाने के लिए करते थे । 

कई पासी राजाओं का वर्णन इतिहास में मिलता है, जिनमें उल्लेखनीय हैं पृथ्वी राज चौहान के समकालीन और आधुनिक बिजनौर के संस्थापक बिजली पासी, रामकोट के महाराजा शैतान पासी, लखनऊ को बसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निबाहने वाले महाराजा लाखन पासी, महाराजा दलदेव आदि जिनके किलों के अवशेष आज भी उनकी गौरव गाथा कह रहे हैं । उनके शासन को कई क्षेत्रों में राजपूतों द्वारा छीन लिया गया, लेकिन इस्लामी आक्रमणों के सामने उनका भी पतन हो गया । वर्तमान में, अवध और उसके आसपास के इलाकों में पासी ज्यादातर छोटे और  मंझोले किसान के रूप में निवास करते हैं । 

पासी राजाओं का अक्सर कन्नौज के राजपूत शासकों के साथ टकराव ही रहा, लेकिन इस्लामी आक्रमणों ने पूरा परिद्रश्य बदल दिया । इस दौरान श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव थे ! वे मंगल ध्वज के बेटे और बालक ऋषि के शिष्य थे, जिनका आश्रम बहराइच में स्थित था । लोक संस्कृति में उन्हें पासी राजा के रूप में भी जाना जाता है, लेकिन साथ ही कई अन्य जातियों के द्वारा भी उनपर दावा जताया जाता है ! उन्हें नागवंशी क्षत्रिय भी माना जाता है, तो कुछ उन्हें बैस क्षत्रिय मानते हैं । इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है, उनकी लोकप्रियता, इसमें मुख्य कारण है । और उससे भी अधिक मुख्य है उनका शौर्य ! 

उनके शौर्य की प्रमुख गाथा है सालार मसूद द्वारा किया गया आक्रमण ! इस आक्रमण का प्रतिकार करने के लिए लखीमपुर, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, उन्नाव, फैजाबाद, बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा आदि के क्षेत्रीय राजाओं ने राजा सुहेलदेव के नेतृत्व में कमर कस ली ! 

मेरठ, कन्नौज और मलीहाबाद के बाद मसूद का विजय रथ बाराबंकी पहुंचा । उसके साथ मसूद का धार्मिक शिक्षक, सैयद इब्राहिम मशहदी भी था । आइना-ए-मसूदी के अनुसार, सैयद इब्राहिम एक कट्टरपंथी कमांडर था ! उसके मार्ग में आने वाला कोई भी गैर-मुस्लिम उसकी तलवार से बच नहीं सकता था, जब तक कि वह इस्लाम स्वीकार न कर ले । लेकिन धुन्द्गढ़ के युद्ध में वह भी मारा गया । उसकी कब्र अलवर जिले में रेवाड़ी के पास तिजारा से 20 कि.मी. दूर कासिम में स्थित है। 

इस बीच, सालार सैफुद्दीन को भी बहराइच में घेर लिया गया ! भाकला और ताप्ती नदी के मुहाने पर हुई पहली लड़ाई में तो सालार मसूद जीतता दिखा, किन्तु दूसरी झड़प में चित्तौरा झील के पास 13 जून 1033 को इस्लामी कमांडर मीर नसरुल्लाह की मौत ने उसकी कमर तोड़ दी ! मीर नसरुल्लाह कि कबर बहराईच से 12 कि.मी.उत्तर में बसे एक गाँव डिकोली खुर्द में स्थित है। जल्द ही सालार मसूद का एक करीबी रिश्तेदार सालार मिया रज्जब भी मारा गया । उसकी कब्र, शाहपुर जोट यूसुफ गांव में स्थित है और हैरत की बात यह कि उसे हठीला पीर के नाम से पूजा जाता है । उसके बाद सुहेलदेव की सेना का एक बड़ा दल, मुस्लिम सेना के केंद्र में प्रवेश कर गया और सुहेलदेव द्वारा छोड़ा गया एक तीर सालार मसूद के गले में जा धंसा । सूर्यकुंड के पास एक महुआ के पेड़ के नीचे उसकी मृत्यु हो गई। इस जीत के बाद राजा सुहेलदेव ने जीत के उपलक्ष में कई तालाबों और बावडियों का निर्माण करवाया ।

कुछ समय पश्चात् तुगलक वंश का शासन आने पर फीरोज तुगलक ने सलारगाजी को इस्लाम का सच्चा संत सिपाही घोषित करते हुए उसकी मजार बनवा दी। आज उसी हिन्दुओं के हत्यारे, हिंदू औरतों के बलात्कारी, मूर्ती भंजक दानव को हिंदू समाज एक देवता की तरह पूजता है। सलार गाजी हिन्दुओं का गाजी बाबा हो गया है । अब गाजी की मजार पूजने वाले, ऐसे हिन्दुओं को मूर्ख न कहे तो क्या कहें । आज वहा बहराइच में उसकी मजार पर हर साल उर्स लगता है और उस हिन्दुओ के हत्यारे की मजार पर सबसे ज्यादा हिन्दू ही जाते हैं !

एक टिप्पणी भेजें

4 टिप्पणियाँ

  1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. एकदम गलत है I इस युद्ध और गाथा को शेख अब्दुल रहमान चिश्ती द्वारा एक ग्रथ मिराते इ मसूदी में दर्शाया गया है ,जिसका कोई प्रमाण नहीं है I इतिहास की किसी भी प्रमाणिक पुस्तक में इसका जिक्र नहीं है I

    जवाब देंहटाएं
  3. Hindu nale ho gye h kashkar aurto ki budhi zayada Bharst h

    जवाब देंहटाएं