उज्जैन के कट्टरपंथी मदरसा-संचालक' व उनके जनम जनम के मार्गदर्शक काँग्रेसी - अशोक कुमार व्यास


उज्जैन में एक अलग क़िस्म की साम्प्रदायिक लड़ाई चल पड़ी है जो कट्टरपंथियों ने, शिक्षण संस्थाओं के ज़रिए शुरू कराई है।
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न जाने किस मुस्लिम-धर्मगुरु ने उल्टा-सीधा कोई फ़तवा दे दिया है जिसकी वज़ह से यहाँ के मदरसा-संचालकों ने सरकारी मध्यान्ह-भोजन का यह कहकर बहिष्कार कर रखा है कि 'मुस्लिम बच्चे, हिन्दुओं के हाथ का बना खाना नहीं खाएँगे, हमारी व्यवस्था हमारे सुपुर्द की जाए।'
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ज़िला-प्रशासन ने फ़िलहाल अलग व्यवस्था की माँग को नहीं माना है।
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इस प्रकरण के चलते, यहाँ के काँग्रेसियों को रोज़गार मिल गया है। वे, मदरसा-संचालकों व मुस्लिम-नेताओं को 'समझा रहे हैं' कि "इसे राजनैतिक मुद्दा बनाइये, हम आपके साथ हैं।".........तो अब यह प्रोपेगैंडा ज़ोर पकड़ने लगा है कि "बीजेपी की साम्प्रदायिक-सरकार, 56 मदरसों के 2500 से अधिक बच्चों को खाना नहीं दे रही है।"
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मामला पूरी तरह से मदरसों की अपनी भोजन-समितियों के स्व-हित का है क्योंकि सरकार द्वारा दूसरों को ठेका दे देने से मदरसा-संचालन समितियों के पदाधिकारियों का 'निजी नुक़सान' हो रहा है।
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इन सबके चलते, दूसरे (सरकारी व या दूसरे प्रायवेट/ग़ैर-मदरसा स्टेटस वाले) स्कूलों में पढ़ने वाले मुस्लिम-बच्चों के अभिभावकों सामने यह शंका उपस्थित हो गई है कि "कहीं उनके बच्चों पर भी, हिन्दुओं के हाथ का खाना नहीं खाने या हिन्दू-बच्चों के साथ बैठकर नहीं खाने का फ़तवा या धर्मादेश न थोप दिया जाए !"
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सुनने में आया है कि उपर्युक्त विवाद के चलते, मदरसों के अतिरिक्त दूसरे स्कूलों में पढ़ने वाले मुस्लिम-बच्चों को इस तानाकशी का टारगेट बनना पड़ा है कि -"हिन्दुओं से इतनी नफ़रत है तो हमारे साथ क्यों पढ़ते, खाते-खेलते हो ?...जाओ किसी 'मुल्ला-स्कूल' में !"
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- मदरसा-समितियों और जिला-प्रशासन के बीच विवाद तो जब सुलझेगा तब सुलझेगा, लेकिन इन बातों से बच्चों की मानसिकता पर जो ग़लत असर पड़ रहा है, उसके दूरगामी परिणामों का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
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दूसरे अन्य मामले भी हो सकते हैं, जिनसे बच्चों की मानसिकता पर बुरा असर पड़ता है और ऐसी स्थितियों को सुधारना हम सबकी ज़िम्मेदारी है, लेकिन वर्तमान प्रकरण (मदरसा-संचालन समिति विरुद्ध उज्जैन जिला प्रशासन) में तो विशुद्धतः 'मदरसों के संचालकों का अड़ियलपन' ही दोषी है जो एक प्रशासनिक कार्य को धार्मिक-सह-साम्प्रदायिक रूप दे रहा है। इस कार्य में मदरसा-संचालकों को काँग्रेस-पार्टी जैसी 'सेकुलर-फ़ोर्स' के सदस्यों का भरपूर सहयोग प्राप्त है। इसीलिए, 'भगवान का भोग लगाने', 'गंगाजल छिड़कने', 'गौमूत्र छिड़कने' जैसी अफ़वाहें फैलाई जा रही हैं।
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सरकारी, ग़ैर-सरकारी स्कूलों (मदरसों सहित) में मध्यान्ह-भोजन की व्यवस्था (अच्छी-बुरी जैसी भी है) पूरी तरह से सरकारी है और इसका आबंटन टेंडर के ज़रिए होता है। इसमें कोई धार्मिक दखलंदाज़ी नहीं है।
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- अब संघियों को 'मुस्लिम-विरोध' का एक और नया मुद्दा देने का ज़िम्मेदार कौन ? ज़ाहिर है कि 'कट्टरपंथी मदरसा-संचालक' व उनके जनम जनम के मार्गदर्शक काँग्रेसी जन।
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- "बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है यह सब।"
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