भारतीय खेल कबड्डी – विश्वविजेता हम – औपनिवेशवादी गुलाम मानसिकता !



इसके पहले कि हम इस आलेख के विषय पर आगे बढ़ें, ब्रिटिश पत्रकार पियर्स मॉर्गन और भारतीय क्रिकेटर वीरेन्द्र सहवाग के बीच हुए ट्वीट वादविवाद को स्मरण किये लेते हैं !

24 अगस्त 2016 को मॉर्गन ने अपने ट्विटर पेज पर लिखा था कि 'सवा अरब की जनसंख्या वाला देश सिर्फ 2 मेडल्स जीतकर खुशी मना रहा है. यहकितना शर्मनाक है?'
 
वीरेंद्र सहवाग ने इस ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा था, "हम हर छोटी खुशी का भी मजा लेते हैं. लेकिन इंग्लैंड, जिसने क्रिकेट की शुरुआत की, वह आज तक वर्ल्ड कप नहीं जीत सका और फिर भी वर्ल्ड कप खेलता है, क्या यह शर्मनाक नहीं है?'


कल दिनांक 22 अक्टूबर 2016 को कबड्डी वर्ल्ड कप में ईरान को 38-29 से हराते हुए भारत ने आठवीं बार वर्ल्ड कप जीतने का गौरव हासिल किया ! इसके पूर्व भारत ने इंग्लेंड को भी 69-18 से हराया था !

भारत की इस अद्भुत जीत पर भी बिटिश पत्रकार पियर्स मॉर्गन ने भारत की पुनः खिल्ली उडाई ! उसने ट्वीट किया –

"कबड्डी भी कोई खेल है, यह तो सिर्फ कुछ वयस्क लोगों का भार है जो चारों तरफ दौड़ते रहते हैं और एक दूसरे को तमाचे जमाते रहते हैं


मुझे लगता है यह ब्रिटिश पत्रकार द्वारा उड़ाया गया यह उपहास उन भारतीय लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है, जो क्रिकेट दीवाने हैं ! भारतीय खेल कबड्डी को लेकर अंग्रेजों का नजरिया हमने देखा, किन्तु हम पश्चिमी जगत के क्रिकेट दीवाने क्यूं हैं ? कितनी बेहूदी बात है कि हम सचिन को क्रिकेट का भगवान कहने में लज्जा अनुभव नहीं करते ! वे बेहतरीन खिलाड़ी हो सकते हैं, किन्तु भगवान ? क्या मजाक है ?

हम कबड्डी वर्ल्ड कप जीते, देश में क्या प्रतिक्रिया हुई ? भारतीय नेताओं ने भी महज वधाई की रस्म अदायगी ही की, उसमें गर्मजोशी रत्ती भर नहीं थी ! मैं वीरेंद्र  सहवाग को सलाम करता हूँ कि उन्होंने लिखा –

"यह जज़्बा, यह स्पिरिट, हमको दे दे ठाकुर. अजय ठाकुर आप रॉकस्टार है. हार को जीत में बदले, उसे टीम इंडिया कहते हैं ! चैंपियंस !

अगर क्रिकेट वर्ल्ड कप जीते होते, तो देश में मानो समय से पहले होली दीवाली साथ साथ मन गया होता ! खिलाड़ियों पर लक्ष्मी वर्षा हो रही होती ! उनके स्वागत में पलक पांवड़े बिछाए गए होते !


सचाई यह है कि हम मानसिक रूप से आज भी अंग्रेजों के गुलाम ही हैं ! आज भी भारत उपनिवेशवादी मानसिकता से बाहर नहीं आया है ! शायद यही कारण है कि हमारा ध्यान केवल क्रिकेट पर रहता है, अन्य खेलों पर नहीं और इसी कारण पियर्स मॉर्गन जैसे सफ़ेद शैतानों को हमारी खिल्ली उड़ाने का अवसर मिलता है, कि हम ओलम्पिक में दो पदक जीतकर खुश हो लेते हैं ! दुनिया के जिन देशों में क्रिकेट नहीं होता, वे ओलम्पिक में कैसा प्रदर्शन करते हैं, जरा ध्यान दीजिये ! 
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