अजब शासन, गजब प्रशासन: शिवपुरी में सरकारी सिस्टम का दोहरा मापदंड

 



शिवपुरी जिले की कहानी उस विडंबना की है, जो हमारे देश के प्रशासनिक तंत्र की गहरी खामियों और भ्रष्टाचार की जड़ों को उजागर करती है। यहां एक साधारण दंपत्ति, जिन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत अपने सपनों का घर पाया था, अब मलबे पर नजर गढ़ाए अपने भविष्य की चिंता में डूबे हुए हैं। यह वही घर है जिसे पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने बनवाया था, लेकिन अब, उसी सरकारी सिस्टम के दूसरे हिस्से ने इसे जमींदोज कर दिया।


कल, साहब बहादुरों का एक दस्ता आया और बिना किसी पूर्व सूचना के इस घर को जमीन से मिला दिया। कारण? दावा किया गया कि यह घर सरकारी जमीन पर बना था। सवाल यह उठता है कि अगर यह घर सरकारी जमीन पर था, तो पंचायत ने इसकी मंजूरी कैसे दी? अगर यह अवैध था, तो आखिर क्यों इसे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाया गया?


अधिकारियों की धृष्टता और भ्रष्टाचार:


यह घटना प्रशासनिक धृष्टता और भ्रष्टाचार का ज्वलंत उदाहरण है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने इस घर की योजना बनाई, उसे मंजूरी दी, मैपिंग की और दिल्ली तक अप्रूवल प्राप्त किया। लेकिन, जैसे ही घर बनकर तैयार हुआ, राजस्व विभाग ने अचानक दावा किया कि जमीन सरकारी है।


आखिर, किसकी गलती थी?


पंचायत की, जिन्होंने जमीन की सही तरीके से जांच नहीं की?

राजस्व विभाग की, जिन्होंने पहले इस जमीन को लेकर कोई चेतावनी नहीं दी?

या उन साहब बहादुरों की, जिन्होंने बिना किसी सुनवाई के घर को ध्वस्त कर दिया?


कौन जिम्मेदार?

शिवपुरी में हो रही यह घटना स्पष्ट रूप से प्रशासनिक असफलता और भ्रष्टाचार का परिणाम है। पंचायत और राजस्व विभाग के बीच संवादहीनता और गैरजिम्मेदाराना रवैया आम जनता के लिए तबाही का कारण बन गया है। प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं का उद्देश्य समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को छत मुहैया कराना है, लेकिन जब ऐसे लोग अपने हक के लिए लड़ाई लड़ रहे होते हैं, तब भी उन्हें इस तरह की विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।


शासन और प्रशासन की विफलता:


यह घटना केवल शिवपुरी तक सीमित नहीं है; बल्कि यह उन सभी जगहों की प्रतिनिधि है, जहां भ्रष्टाचार और लापरवाही का बोलबाला है। अधिकारियों का यह दावा कि उन्होंने सरकारी जमीन मुक्त कराई है, इस बात की ओर इशारा करता है कि उन्हें जनता की भलाई की बजाय अपनी सत्ता और धन के प्रति अधिक लगाव है।


शिवपुरी का यह मामला इस बात को सिद्ध करता है कि शासन और प्रशासन के बीच तालमेल का अभाव है। एक ओर पंचायत घर बनवाती है, दूसरी ओर राजस्व उसे अवैध ठहराता है, और अंततः जनता ही इस प्रशासनिक खामियों का खामियाजा भुगतती है।


इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही से जनता को कितना नुकसान हो सकता है। जनता के भरोसे को इस प्रकार तोड़ना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है। शिवपुरी के लोगों को न्याय की उम्मीद है, लेकिन क्या उन्हें कभी न्याय मिलेगा?


आम जनता की आवाज दबाई जा रही है, और ऐसे में यह जरूरी है कि शासन-प्रशासन की इस अजब-गजब नीतियों पर सवाल उठाए जाएं और उचित कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में किसी और को इस प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।

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