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हम अपने पूर्व राष्ट्रपति स्व. अब्दुल कलाम के विषय में जानते ही कितना हैं ?


क्या हम जानते हैं कि मई में इस्लामी पाकिस्तान की जबरदस्त शिकस्त के मुख्य कारक एक तमिलभाषी, गीतापाठी, रामभक्त, वीणावादक अब्दुल कलाम थे ? 

भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति (2002) के निर्वाचन में तत्कालीन सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी, विपक्ष की कांग्रेस, समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी  ने आपसी वैमनस्य को दरकिनार कर सुदूर दक्षिण के गैरराजनैतिक विज्ञानशास्त्री  डा. आबुल पाकिर जैनुलआबिदीन अब्दुल कलाम को प्रत्याशी बनाया था। गणतंत्रीय  भारत के इस तीसरे  मुसलमान राष्ट्रपति का दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों ने जमकर विरोध किया था और कानपुरवासी नब्बे-वर्षीया कैप्टन लक्ष्मी सहगल को अपना उम्मींदवार बनाया था। मतदान इकतरफा रहना था, रहा भी । 

इस मिसाइल मैन द्वारा बनाए प्रक्षेपास्त्रों ने विगत दिनों पाकिस्तान का शायद ही कोई शहर छोड़ा हो जिस पर हमला न किया गया हो। पाकिस्तान को बड़ा घमंड था कि मिसाइल में वह भारत से ज्यादा मजबूत है इसीलिए मिसाइलों नाम भी उसने भारत पर हमला करने वाले लुटेरों के नाम पर रखे। जैसे मोहम्मद गौरी, जहीरूद्दीन बाबर, मोहम्मद अब्दाली लेकिन इन सबके सामने इस दक्षिण भारतीय मुसलमान द्वारा निर्मित मिसाइल ज्यादा कारगर रहे।

कई कट्टरपंथी मुल्ला मौलवी तो अब्दुल कलाम को मुसलमान ही नहीं मानते, क्योंकि उन्हें उर्दू नहीं आती थी। यह अलग बात है कि आज भी बहुतेरे तमिल मुसलमानों ने कभी उर्दू सीखी ही नहीं। 

अब्दुल कलाम दही-चावल और अचार ही खातें थे। मांसाहारी कदापि नहीं थे। रक्षा मंत्रालय में अपनी पहली नौकरी सम्भालने के पूर्व उन्होंने ऋषिकेश में स्वामी शिवानन्द से आशीर्वाद लिया था। अपने पिता जैनुल आबिदीन के परम सखा और रामेश्वरम शिव मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित पक्षी लक्ष्मण शास्त्री से धर्म की गूढ़ता में तरूण अब्दुल ने रूचि ली थी। वे संत कवि त्यागराज के रामभक्त के सूत्र गनुगुनाते थे। नमाज के साथ वे रुद्र वीणा भी बजाते सुब्बुलक्ष्मी के भजन को चाव से सुनते थे, जबकि इस्लाम में संगीत वर्जित होता है। 

शायद उसके पीछे कारण आज हो सकता है कि अब्दुल कलाम के पुरखों ने इस्लाम स्वीकार किया शान्तिवादी प्रचारकों से जो अरब व्यापारियों के साथ दक्षिण सागर तट पर आये थे। अतः वह उत्तर भारतीय मुसलमानों से जुदा दिखाई देते है जिनसे गाजी मोहम्मदबिन कासिम की सेना ने बदलौते-शमशीर हिन्दू धर्म छुड़वाया था। कलमा पढ़वाया था। 

लेकिन सचाई यह है कि अब्दुल कलाम राष्ट्रभक्त होने के साथ पक्के मुसलमान थे। दिन में पांच बार नमाज अदा करने वाले, वह भी मगरीब में मक्का की ओर सिर करके, हर कार्य के बिस्मिल्ला पर अल्लाह की प्रार्थना करने वाले। 

हिन्दू-बहुल भारत का राष्ट्रपति एक सुन्नी मुसलमान बना, यह हमारी सर्वधर्म समावेशी सनातन सांस्कृतिक विरासत के कारण ही संभव हुआ। केवटपुत्र और अखबारी हाॅकर रह चुके अब्दुल कलाम ने अपनी पहली सरकारी नौकरी 250 सौ रूपये माहवार से शुरू की थी। अन्तरिक्ष विज्ञान के निष्णात अब्दुल कलाम भारत के प्रथम नागरिक बने, राष्ट्रपति पद तक पहुंचे, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तानी प्रक्षेपास्त्र (महमूद) गज़नवी, (मुहम्मद) गौरी और (अहमदशाह) अब्दाली का मुकाबला करने में भारतीय प्रक्षेपास्त्रों (अग्नि, त्रिशूल, नाग) के निर्माता मिसालइलमैन अब्दुल कलाम ही थे । 

यह भी स्मरणीय है कि द्वितीय पोखरण विस्फोट के इस शिल्पी के राष्ट्रपति बनने के बाद ही भारत ने तीसरा प्रभावी और सफल परमाणु विस्फोट किया था। हरिद्वार के स्वामी शिवानंद के इस शिष्य अब्दुल कलाम का भारत सदा कृतज्ञ रहेगा। जब जब पाकिस्तान को शिकस्त दी जाएगी, अब्दुल कलाम का स्मरण भी किया जाएगा। 

साभार आधार स्व. के विक्रमराव जी का अंतिम आलेख 

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