अक्रोध की कोंपल
मेरे मन ! तुम जानते ही हो कि प्रभु को वे ही भक्त प्रिय होते हैं - जो भूत मात्र के प्रति निर्वैर होते हैं | …
मेरे मन ! तुम जानते ही हो कि प्रभु को वे ही भक्त प्रिय होते हैं - जो भूत मात्र के प्रति निर्वैर होते हैं | …
मेरे मन ! अपने आप से पूछो कि तुम्हारे प्रत्येक कर्म की प्रेरणा कौन सी है ? क्या प्रभुसेवा की लालसा से कर्म …
मेरे मन ! तू चातक सा राह देख रहा है, उस करुणाघन के आने की, उसकी पीयूष वर्षा की, परन्तु मेरे मन सावधान रह, स…
मेरे मन | तू बड़ा नटखट है | आचार क्या करूं ? कैसा करूं ? आदि प्रश्नों की झड़ी लगाकर - तू स्वयं ही विचार विस…
मेरे मन ! पञ्च एषणाओं में से केवल - ज्ञानेषणा - ही प्रश्न रूप में प्रस्तुत होती है | वह पूछती है, यह क्या ह…
कभी भूत की स्मृतियों का गान कभी भविष्य का रम्य भान इनमें खो जाता है वर्तमान जो बीत गया कल ,…