कार्यकर्ता - श्री दत्तोपंत जी ठेंगडी


मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है, गंतव्य क्या है, इस द्रष्टि से उसकी प्रेरणा क्या होगी, इस विषय में श्रेष्ठ लोगों ने जो विचार बताये हैं, वे अलग अलग हैं, किन्तु उन्हें प्रमुख रूप से दो वर्गों में बांटा जा सकता है | एक विशुद्ध भौतिकता वादी और दूसरा अभौतिकतावादी | प्राचीन ऋषि मुनि या वर्तमान विचारक सभी के विचारों का एक ही सूत्र है कि “जीवन का लक्ष्य सुख ही है” | दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसको दुःख की कामना हो |

पश्चिमी लोगों का प्रातिनिधिक विचार भौतिकतावादी है | योरोप में materialistic philosophy का प्रारम्भ किया दो हजार साल पहले ग्रीक तत्वज्ञ डिमोक्रेटिस ने | हमारे यहाँ भी इस विचार के आचार्य चार्वाक ने कहा –

यावत् जीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः |

अर्थात जब तक जीवन है, तब तक सुख से रहो, आनंद से रहो | कर्जा लेकर भी उपभोग करो | कहते हैं मरने के बाद शरीर तो जलाया ही जाना है, वापस थोड़े ही आना है | अर्थात जैसा पश्चिम में कहा गया “eat, drink and be marry” | उपभोग यही सुख है, इस विचार के श्रेष्ठ प्रणेता उमर खैयाम कहे जाते हैं | वस्तुतः उमर खैयाम ने जो रुबाईयाँ लिखीं, वे ओछी नहीं हैं, उनमें बहुत दार्शनिक तत्व है | वे कहते हैं कि जैसे गुलाब सूख जाता है, बसंत ऋतू चली जाती है, यौवन की सुगंध ग्रंथि समाप्त हो जाती है और इस लताकुंज में बुलबुल कहाँ से आई और कहाँ निकल जाती है | सुख क्या है, जीवन क्या है, यह आध्यात्मिक चर्चा बुद्धिमानों को करने दो | एक बात निश्चित है, फूल एक ही बार खिलता है और हमेशा के लिए ख़तम हो जाता है | बस यही केवल सत्य है |

Ah ! Come with old Khayyam and let the wise
To talk; for one thing is certain that life flies
One thin is certain and the rest all lies !
The rose that has once blown, for ever dies !

जीवन बह रहा है, बड़ी तेजी से हाथ से निकल रहा है, इसलिए आओ ! भूतकाल का बोझ और भविष्य की चिंताएं वर्तमान से दूर करने वाला यह प्याला भर दो | पता नहीं कल होगा या नहीं ? उस कल के साथ मैं हजारों वर्षों के अतीत में समा जाऊँगा |

Ah ! Love ! Come and fill the cup that clears
Present from past regrets and future fears
Tomorrow ? why ? tomorrow I may be
One with yesterday’s seven thousand years.

और इसलिए वह कहता है – “बस्स ! एक रोटी का टुकड़ा, एक मदिरा का प्याला, हाथ में कविता की एक पुस्तक और साथ में तुम | तुम अगर सामने गा रही हो तो यह वीराना ही स्वर्ग है |

Here with a loaf of bread beneath the bough
A flask of wine, a book of verse and thou
Beside me singing in the wilderness
And wilderness is paradise enow !

तो भौतिकतावादियों का यही कहना है कि उपभोग से सुख मिलता है | शोपेनहोअर ने अपनी “World as Will and Representation” पुस्तक में सुख प्राप्ति का समीकरण दिया कि Desires fulfilled/ Desires entertained = Extent of Satisfaction. अर्थात मन में पैदा हुई और तृप्त सफल हुई इच्छाओं के अनुपात में ही सुख की मात्रा होती है | या तो मन की इच्छायें कम करना होंगी या इच्छाओं की पूर्ति अधिक होगी उतना ही अधिक सुख की अनुभूति होगी |

सुख की हमारी संकल्पना –

हमारे यहाँ सोचा गया कि “इस समय का शारीरिक सुख”, सुख की यह परिभाषा ठीक नहीं है | जहां तक शारीरिक सुख का प्रश्न है तो मनुष्य और अन्य जीवधारियों में कोई भेद ही नहीं है | “आहार निद्रा भय मैथुनं च, सामान्यमेतत पशुभिर्नराणाम” | लेकिन यह समानता केवल आहार, निद्रा, भय और शारीरिक सुख तक ही सीमित है | पशुओं के समान मनुष्य केवल तात्कालिक शारीरिक सुख से सुखी नहीं होते | जैसे यदि किसी को डायबिटीज है तो वह रसगुल्ला मिल जाने पर भी खाने से पहले बाद में इन्सुलिन लेने से होने वाले दुःख का विचार करेगा | मनुष्य के पास अन्य प्राणियों से अधिक बुद्धि होने से उसका कर्तव्य है कि वह विचार करे कि उसका सुख किसमें है |

विषयेन्द्रिय संयोगात यत तदग्रेSमृतोपमम |
परिणामे विषमिव तात सुखं राजसं स्मृतम | (गीता)

विषय और इन्द्रियों के संयोग से प्रारम्भ में अमृत के समान सुख का अनुभव होता है, किन्तु उसका परिणाम विष के समान होता है |

और भी एक बात अपने यहाँ कही गई –

न जातु कामः कामानां उपभोगेन शाम्यति |
हविषा कृष्णवर्त्मेव भूयं एवाभिवर्धते | (महाभारत आदिपर्व)

जैसे अग्नि को शांत करने के लिए अगर घी डाला जाए तो वह और भड़कती है, बैसे ही पूर्ति से वासनायें भड़क उठती हैं | तो अंत में कहना पड़ता है कि “तृष्णा न जीर्णा, वयमेव जीर्णाः” अर्थात तृष्णा तो जीर्ण नहीं हुई हम ही जीर्ण हो गए | हमारे यहाँ ययाति का उदाहरण है | सारा जीवन विषयोपभोग में बिताया | फिर भी वासनाएं तृप्त नहीं हुईं | बुढापे में शर्मिष्ठा को देखकर वासना भड़क उठी तो अपने पुत्र से निर्लज्जता पूर्वक उसका यौवन मांग लिया और बदले में अपना बुढापा उसे दे दिया | शेष जीवन भी विषयभोग में बिताया किन्तु अंत में पश्चाताप और दुःख का सामना करना पड़ा |

सुख का दूसरा साधन अर्थ कहा जाता है | माना जाता हैकि अर्थ से सबकुछ प्राप्त हो जाता है | मुहम्मद गजनवी ने लूटपाट कर दुनिया भर की संपत्ति इकट्ठी कर ली किन्तु मृत्यु के समय दुखी हो गया | कहा जाता है कि आंसू भरी आँखों से संपत्ति की ओर देखते हुए ही उसकी मृत्यु हुई |

लगभग 20 वर्ष पूर्व विश्वप्रसिद्ध पूंजीपति हेनरी फोर्ड का नाती “हरे राम हरे कृष्ण” का अनुयाई बनकर भारत आया था | संवाददाताओं ने जब पूछा तो उसने कहा मुझे इससे ही शान्ति मिली है | संपत्ति किसकी है, वह तो कृष्ण की ही है | रूस के तानाशाह स्टालिन की बेटी स्वेतलाना भी हिंदुस्तान आई और कहा कि “मेरी एक ही इच्छा है कि पवित्र गंगा नदी के किनारे कुटिया बनाकर शान्ति से अपने जीवन का अंतिम काल बिता सकूं” |

अर्थ और काम के पीछे लगने से क्या कोई सुखी हो सकता है ? गोस्वामी तुलसीदास जी ने बहुत सुन्दर उपमा दी है | उन्होंने कहा है कि “डासतीह निशि बीत गई सब, कबहूँ न नाथ नींद भरी आयो” | बिस्तर ठीक करते करते ही रात बीत गई, सोने का मौक़ा ही नहीं मिला | टालस्टाय की सुप्रसिद्ध कहानी है | एक राजा ने किसी गरीब आदमी से कहा कि वह सूर्योदय से सूर्यास्त तक जितनी जमीन पर दौड़ेगा, उतनी सारी जमीन उसकी हो जायेगी | गरीब आदमी ने सोचा कि अच्छा मौका है | एक दिन ही तो दौड़ना है, बाद में तो सारी जिन्दगी सुख से बिताऊंगा | दिन भर दौड़ता रहा, फेंफडों में तकलीफ होने लगी, थकावट से चूर, सांस भी उखड़ने लगी | जैसे जैसे सूर्य अस्ताचल को जाता दिखा, और तेजी से दौड़ने लगा | आखिर इतनी तेजी से दौड़ा कि हांफते हांफते दम ही उखड गया | इतने परिश्रम के बाद गाड़ने के लिए मिली केवल साढ़े तीन गज जमीन |

उक्त सभी उदाहरण नकारात्मक हैं, किन्तु इनसे यह स्पष्ट होता है कि भौतिकता में, उपभोग में सुख नहीं है | यह महसूस होने के बाद व्यक्ति उच्चतम सुख की खोज में निकला है, यह बताने वाले लोग हैं | योरोपीय देशों में बहुत सारे कुष्ठ रोगियों को दक्षिण समुद्र में एक छोटे से द्वीप पर भेजा जाता था | वहां उनकी हालत बहुत खराब रहती थी | ख्रिस्चिन धर्मगुरू पोप ने व्हेटिकन सिटी से सभी चर्चों को एक परिपत्र भेजा कि इन कुष्ठ रोगियों को परमेश्वर का सन्देश पहुंचाने व उनकी सेवा के लिए कोई जाए तो बहुत अच्छा हो |

अब दूर दक्षिण समुद्र के एक छोटे से द्वीप पर जाना, जहां सुविधाओं का पूरा अभाव, प्रतिकूल वातावरण और कुष्ठरोगियों के साथ रहना | जो जाएगा निश्चित रूप से वह स्वयं भी कुष्ठ रोग का शिकार हो जाएगा | किन्तु बेल्जियम का एक युवा तैयार हुआ | माँ बाप का इकलौता बेटा, संपन्न परिवार का सुदर्शन नौजवान | केवल मन में उत्पन्न हुई करुणा की प्रेरणा से उधर गया, कुष्ठ रोगियों की सेवा की, बाद में स्वयं भी कुष्ठ रोग का शिकार होकर मृत्यु हुई | उसकी डायरी बहुत प्रसिद्ध हुई है | अब इस युवा को कुष्ठरोगियों की सेवा में ही सुखानुभूति हुई | यह स्वयं से परे जाने की सकारात्मक प्रवृत्ति है |

अपने यहाँ ऐसा उदाहरण है सिद्धार्थ का | दुनिया के दुःख देखकर द्रवित हुए, करुणा उमड़ी, युवाराजपद, सुन्दर पत्नी और नन्हा वालक, राजमहल की सभी सुख सुविधाएं छोड़कर निकल पड़े दुःख के कारण की खोज में | तपस्या की, गौतम बुद्ध बन गए | जिस उच्चतम सुख के दर्शन हुए, उसे सम्पूर्ण मानव जाति को बांटने में पूरी जिन्दगी बिता दी |

इन्द्रियाणि परान्याहुः इन्द्रियेम्यः परं मनः |
मनसस्तु परा बुद्धिः यो बुद्धे परसस्तु सः | (गीता)

हम मानव हैं, हमारे पास इन्द्रियों के परे मन है, बुद्धि है और स्वयं के परे ले जाने वाला आत्म तत्व भी है | सुख प्राप्त करना है तो मन बुद्धि के आधार पर उसका वैविध्य, प्रकार, घनत्व और स्थायित्व आदि कई पहलुओं पर भी विचार करना होगा |

स्नान करते समय भी शोध के विचार में डूबे आर्कमिडीज को अपने प्रसिद्ध सूत्र का साक्षात्कार हुआ तो नग्नावस्था में ही यूरेका यूरेका चिल्लाते हुए बाहर निकल आये | शायद नग्नावस्था में भी उस समय वे जितने सुखी थे शायद जीवन में कभी नहीं हुए होंगे | सौक्रेटिस ने जिस सत्य का साक्षात्कार किया, उसे दुनिया को बताने के बदले प्रसन्नता पूर्वक हेमलाक विष का प्याला भी बिना किसी शिकायत के पी लिया | “God forgive them, because they know not what they are doing” कहकर मानवता के लिए क्रूस पर चढ़ जाने वाले प्रभु येसु, या फिर अपने वैज्ञानिक सिद्धांतों पर अडिग रहने के कारण ज़िंदा जला दिए गए ब्रूनो, मातृभूमि के लिए फांसी का फंदा चूमने वाले क्रांतिवीरों ने शरीर के परे जाकर परमोच्च आनंद की अनुभूति की |

कहा जा सकता है कि ये सब उदाहरण महान लोगों के हैं | 1930 में कलकत्ता के बकुल बागन रोड पर गटर के एक खुले मेनहोल में बच्चा गिर गया | कोई उस बच्चे को निकालने की हिम्मत नहीं कर रहा था | तभी नफार कुंडू नामक एक सामान्य मजदूर उधर से गुजरे तो आव देखा ना ताव, कूद पड़े उस में होल में | बच्चे को तो बचा लिया, लेकिन स्वयं अन्दर भरी जहरीली गैस की चपेट में आ गए | अपनी जान कुर्बान करने में नफार को क्या मिला ? दूसरों को सुख पहुंचाने में ही सुख अनुभव करने की सकारात्मक आत्मिक प्रवृत्ति सामान्य व्यक्ति में भी समय समय पर द्रष्टिगोचर होती है |

मनुष्य का मन अर्थ और काम के प्रभाव में नहीं रहना चाहिए, किन्तु इनका अभाव भी नहीं होना चाहिए |

आपूर्यमाणं अचलप्रतिष्ठं समुद्र मापः प्रविशन्ति यद्वत |
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी | (गीता)

समुद्र में निर्झर-नाले, नदियों का पानी अविरत आता रहता है किन्तु वह अनियंत्रित होकर अपनी सीमा नहीं लांघता | उसी प्रकार समस्त वासनाएं जिसके मन में प्रवेश करती है किन्तु वह उद्वेलित नहीं होता, वही व्यक्ति शान्ति प्राप्त करता है |

हमारे ऋषि मुनियों ने हमारा जो राष्ट्रीय ध्येय संकल्प बताया है, वह है “आत्मनो मोक्षार्थ जगद्धिताय च” | याने व्यक्ति इस नाते स्वयं का परं सुख अर्थात मोक्ष और साथ ही समाज संगठन इस नाते जगत का भी कल्याण | जगत कल्याण हो तोही व्यक्ति का परमसुख उसमें निहित होता है | हमारा गंतव्य स्थान मोक्ष है, किन्तु स्वामी विवेकानंद ने कहा कि “जब तक इस देश का कुत्ता भी भूखा होगा, मैं मोक्ष की कामना नहीं करूंगा” | जब तक दुनिया में अन्य लोग दुखी हैं, मैं अपने परम सुख की भी कामना नहीं करूंगा | हमारी संस्कृति में मोक्ष की पूर्ववर्ती शर्त भी “सर्वभूत हिते रतः” अर्थात प्राणीमात्र के सुख के, हित के प्रयास करने में मग्नता मानी गई है |

राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का व्यापक सन्दर्भ –

हमारी संस्कृति का व्यापक ध्येय वृत सम्पूर्ण विश्व को धर्म संस्कार देना रहा है | तो हमारी राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की बात इसी ध्येय वृत के परिप्रेक्ष में है | अपने प्रसिद्ध उत्तरपाड़ा भाषण में महर्षि अरविन्द ने कहा था कि “हिन्दू राष्ट्र और सनातन धर्म ये दोनों अभेद्य हैं” | अंग्रेजों द्वारा ‘हिन्दू’ के बारे में किया गया दुष्प्रचार और ‘साहेब वाक्य प्रमाणं’ मानकर उसे स्वीकार करने वाले हमारे आंग्लविद्याविभूषित लोग इसे नहीं समझ सके, इस कारण बहुत सी भ्रांतियां हैं | एक बार एक स्वयंसेवक मित्र ने पूछा कि संघ का कार्य इतने वर्षों से चल रहा है, किन्तु उसका कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता | तो अपने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कब होगी ? मैंने कहा बेटा जब तुम्हारा जन्म होगा | उसने चोंककर कहा मेरा जन्म तो हो चुका | तो मैंने कहा कि हिन्दू राष्ट्र भी तो ऋग्वेदपूर्व से चल रहा है | जब से इतिहास ने आँखें खोली हैं, तब से यह हिन्दू राष्ट्र है ही, तो नई स्थापना कौन सी होनी है ?

जैसे किसी अँधेरे कमरे में कई चीजें रहती हैं, जो अँधेरे की वजह से नहीं दिखतीं | कोई आकर बत्ती जलाए तो चीजें दिखने लगती हैं | उसी तरह यह हिन्दू राष्ट्र तो सनातन सत्य है, लेकिन गलतफहमियों के अँधेरे के कारण दिखाई नहीं देता था | उसको दिखाने का कार्य पू. डाक्टर जी ने किया |

हिन्दू और मानव पर्यायवाची –

स्वातंत्रवीर सावरकर ने कहा है कि “तुम कहते हो कि तुम मुसलमान हो और मैं हिन्दू हूँ, इसलिए मैं कहता हूँ कि मैं हिन्दू हूँ और तुम मुसलमान हो | वरना तो मैं विश्व मानव हूँ” | एक विशेषज्ञ को आश्चर्य हुआ कि हिन्दू शब्द का प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख तक नहीं है | सम्पूर्ण मानव जाति से हम स्वयं को एकात्म ही मानते थे | जब मैं पढाई के लिए पहली बार नागपुर आया, तब दुकानों पर साईन बोर्ड हुआ करते थे ‘आर्वी के घी की दूकान’ या ‘बुलढाणे के घी की दूकान’ | द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब डालडा बनस्पति घी बाजार में आना शुरू हुआ तब ‘आर्वी या बुलढाणा के शुद्ध घी की दूकान’ ऐसे बोर्ड आये | तब तक तो सब घी शुद्ध थे अतः शुद्ध घी लिखने की आवश्यकता ही नहीं थी | डालडा के आने के बाद घी के साथ शुद्ध लिखने की आवश्यकता पडी | हमारे पुरखों ने सदा मानव का मानव के रूप में ही विचार किया है | ऋग्वेद काल से वर्तमान तक विश्व के कल्याण की ही प्रार्थना हमारे यहाँ की गई है | भगवान् मनु ने भी अपने धर्म शास्त्र को हिन्दू धर्मशास्त्र नहीं कहा, मानव धर्मशास्त्र ही कहा है |

पक्षियों में सबसे ऊंची उड़ान गरुड़ की होती है, किन्तु वह अपना घोंसला धरती पर या किसी पेड़ पर ही बनाता है | सम्पूर्ण विश्व के कल्याण का उद्देश्य होते हुए भी इस मुहीम की आधार भूमि आवश्यक है | प.पू. गुरूजी ने कहा है कि “हमारे राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का प्रारम्भ मनुष्य निर्माण से ही होना आवश्यक है | सभी प्रकार के मानवी मनोमालिन्य पर मात करने की क्षमता व्यक्ति में निर्माण हो, प्रेम, आत्म संयम, त्याग, सेवा, चारित्र्य इन सभी पारंपरिक गुणों से भरे हिन्दू व्यक्तित्व का परिचायक ऐसा प्रकाशमान प्रतीक, इस नाते वह खडा हो, यह हमारा उद्दिष्ट है | हमारी राष्ट्रीयता का यह तथ्य, यह गौरवशाली दर्शन हम अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देंगे, तो ही प्राचीन काल के जैसे हमारी मातृभूमि को जगद्गुरू के स्थान पर विराजमान करने में हम सफलता प्राप्त करेंगे | अतीत में हमारी संस्कृति ने ऐसा नेतृत्व दिया था |”

महात्मा जी से एक बार किसी ने पूछा कि नैतिकता बगैरह की बात तो ठीक है, लेकिन राजनीति में उससे क्या करना है ? तो गांधी जी ने कहा कि जीसस क्राईस्ट और सीझर दोनों का कालखंड देखें तो लगभग एक सदी का ही अंतर है | लेकिन आज सीझर का नाम किसे याद है ? जबकि जीसस का नाम लेने वाले तो दुनिया के हर कोने में मौजूद हैं |

ऐसा नैतिक नेतृत्व करने वाले वर्ग को ही आचार्य जावडेकर ने ‘यति वर्ग’ कहा है | आचार्य विनोबा भावे ने ‘आचार्य कुल’ इस नाम से इनका उल्लेख किया है | पू. गुरूजी ने इसी को ‘ऋषि संस्था’ यह नाम दिया है |

लेकिन राजदंड पर प्रभाव रखने वाली नैतिक शक्ति राष्ट्रीय जन चेतना के बिना निर्माण नहीं हो सकती | अपने देश में नैतिक नेता के नाते म.गांधी तथा जयप्रकाश नारायण जी का नाम लिया जाता है | स्वराज्य का आन्दोलन गांधी जी के नेतृत्व में ही हुआ, किन्तु स्वराज्य प्राप्ति के बाद जिन के हाथ में सत्ता की बागडोर आई, उन्होंने गांधी जी की सलाह लेना भी बंद कर दिया | लुई फिशर ने लिखा है कि “गांधी जी इस बात से व्यथित थे और आंसू बहाते थे | कहते थे कि अब तक ये लोग हर बात में मेरी सलाह लेते थे | अब पूछने भी नहीं आते | शायद इसलिए कि मेरी सलाह उनकी इच्छा के अनुकूल न रही तो उन्हें मुश्किल होगी | इसलिए ये मिलने ही नहीं आते |

जयप्रकाश जी के नाम पर 1977 में जनता ने जनता पार्टी को मत दिया किन्तु जब वे पटना में मृत्यु शैया पर थे तब उनसे मिलने की किसी केन्द्रीय मंत्री को फुर्सत नहीं हुई | इसका कारण यह है कि गांधी जी और जयप्रकाश जी नैतिक नेता तो थे किन्तु राष्ट्रीय जन चेतना का बल क्षीण हो गया था | तो नीचे राष्ट्रीय जन चेतना से युक्त समाज, उसके जन संगठन और उसके बल पर खड़ा सबसे ऊपर सामूहिक नैतिक नेतृत्व | इन दोनों के बीच राजसत्ता | इसी हेतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने व्यक्ति निर्माण तथा उसके माध्यम से धर्माधिष्ठित समाज निर्माण का वृत लिया | इस द्रष्टि से प.पू.डाक्टर जी ने एक तरह का श्रम विभाजन किया | व्यक्ति मानस सुसंस्कारित, धर्म प्रवण करने का काम संघ स्थान पर होगा | फिर ऐसे धर्मप्रवण संस्कारित व्यक्ति समाज के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दू जीवन पद्धति तथा जीवन मूल्य आधारित विभिन्न जन संगठनों, संस्थाओं का निर्माण करेंगे | जिनके माध्यम से धर्माधिष्ठित समाज रचना होते हुए राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का कार्य होगा |

हमारा कार्य ईश्वरीय कार्य है, अतः उसकी सफलता तो निश्चित है | किन्तु किसी भी प्रक्रिया के पूर्ण होने में आवश्यक समय तो लगता ही है | कबीर ने कहा है –

धीरे धीरे रे मना, सब कुछ होय |
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतू आये फल होय |

एक व्यक्ति समुद्र के किनारे केंकड़े पकड़ रहा था तथा उन्हें पास में रखी टोकरी में डालता जा रहा था | उसका एक परिचित उधर से गुजरा तो उसने टोका कि भाई तुम केंकड़े जिस टोकरी में रख रहे हो, उसके ऊपर कोई ढक्कन नहीं है, उधर तुम पकड़ते रहोगे, इधर ये निकलकर भागते रहेंगे | केंकड़े पकड़ने वाला हंस कर बोला, मुझे उनकी फ़िक्र इसलिए नहीं है, क्योंकि जैसी ही कोई केंकड़ा ऊपर जाने की कोशिश करता है, नीचे से बाक़ी केंकड़े उसकी टांग खींचकर उसे वापस गिरा देते हैं |

बीज गणित का एक प्राथमिक सूत्र है | A का वर्ग किया जाए तो A वर्ग होता है, इसी प्रकार B का वर्ग B वर्ग होता है, किन्तु यदि A व B एक साथ आकर A + B हो जाएँ व उनका सामूहिक वर्ग किया जाए तो A वर्ग + B वर्ग + 2 AB होता है | विचारणीय प्रश्न है कि यह 2 AB कहाँ से आया ? वस्तुतः यह A व B के संगठन से उत्पन्न हुआ |
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