वैदिक संध्या

वैदिक संध्या पूर्णत वैज्ञानिक और प्राचीन काल से चली आ रही हैं। यह ऋषि-मुनियों के अनुभव पर आधारित हैं वैदिक संध्या की विधि से उसके प्रयोजन पर प्रकाश पड़ता है। मनुष्य में शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, चित और अहंकार स्थित हैं। वैदिक संध्या में आचमन मंत्र से शरीर, इन्द्रिय स्पर्श और मार्जन मंत्र से इन्द्रियाँ, प्राणायाम मंत्र से मन, अघमर्षण मंत्र से बुद्धि, मनसा-परिक्रमा मंत्र से चित और उपस्थान मंत्र से अहंकार को सुस्थिति संपादन किया जाता है। फिर गायत्री मंत्र द्वारा ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना और उपासना की जाती हैं। अंत में ईश्वर को नमस्कार किया जाता हैं। यह पूर्णत वैज्ञानिक विधि हैं जिससे व्यक्ति धार्मिक और सदाचारी बनता हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध करता हैं।

हमें प्रात: व सायं मन, वचन और कर्म से पवित्र होकर संध्योपासना करनी चाहिए | प्रात: काल पूर्व की ओर मुख करके और सायं काल पश्चिम की ओर मुख करके संध्या करनी चाहिए |


|| गायत्री मन्त्र ||

ओ३म् भूर्भुव: स्व: | तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि |
धियो यो न: प्रचोदयात् ||
यजुर्वेद ३६.३

तूने हमें उत्पन्न किया, पालन कर रहा है तू |
तुझ से ही पाते प्राण हम, दुखियों के कष्ट हरता है तू ||
तेरा महान तेज है, छाया हुआ सभी स्थान |
सृष्टि की वस्तु वस्तु में, तू हो रहा है विद्यमान ||
तेरा ही धरते ध्यान हम, मांगते तेरी दया |
ईश्वर हमारी बुद्धि को, श्रेष्ठ मार्ग पर चला ||
 

|| अथ आचमन मन्त्र ||

निम्न मन्त्र से दायें हाथ में जल ले कर तीन बार आचमन करें |

ओ३म्‌ शन्नो देवीरभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिस्रवन्तु नः॥
यजु. ३६.१२

सर्वप्रकाशक और सर्वव्यापक ईश्वर इच्छित फल और आनंद प्राप्ति के लिए हमारे लिए कल्याणकारी हो और हम पर सुख की वृष्टि करे|

(तीन प्रकार की शांति के लिए आचमन भी तीन बार किया जाता है| पहला आचमन अध्यात्मिक शांति के लिए| दूसरा आधि-भौतिक शांति के लिए और तीसरा आचमन आधि-दैविक शांति के लिए)

|| अथ इन्द्रिय स्पर्श ||

अब बायें हाथ में जल ले कर दायें हाथ की अनामिका व मध्यमा उंगलियों से इन्द्रिय स्पर्श करे | ऐसा करते समय ईश्वर से इन्द्रियों में बल व ओज की प्रार्थना करनी चाहिए |

ओ३म्‌ वाक् वाक्, ओ३म्‌ प्राण: प्राण:, ओ३म्‌ चक्षुश्चक्षु:, ओ३म्‌ श्रोत्रम् श्रोत्रम्, ओ३म्‌ नाभि:, ओ३म्‌ हृदयम, ओ३म्‌ कंठ:, ओ३म्‌ शिर:, ओ३म्‌ बाहुभ्यां यशोबलं, ओ३म्‌ करतल करप्रष्ठे |

हे ईश्वर! मेरी वाणी, प्राण, आंख, कान, नाभि, हृदय, कंठ, शिर, बाहु और हाथ के ऊपर और नीचे के भाग (अर्थात) सभी इन्द्रिया बलवान और यश्वाले हो|

|| मार्जन मन्त्र ||

ओ३म्‌ भू: पुनातु शिरसि, ओ३म्‌ भुव: पुनातु नेत्रयो:, ओ३म्‌ स्व: पुनातु कण्ठे, ओ३म्‌ मह: पुनातु हृदये, ओ३म्‌ जन: पुनातु नाभ्यां, ओ३म्‌ तप: पुनातु पादयो:, ओ३म्‌ सत्यम पुनातु पुन: शिरसि, ओ३म्‌ खं ब्रह्म पुनातु सर्वत्र | 

हे ईश्वर! आप मेरे शिर, नेत्र, कंठ, हृदय, नाभि, पैर अर्थात समस्त शरीर को पवित्र करे |

|| अथ प्राणायाम मन्त्र ||

इस मन्त्र से तीन बार प्राणायाम करे |

ओ३म्‌ भू: | ओ३म्‌ भुव: | ओ३म्‌ स्व: | ओ३म्‌ मह: | ओ३म्‌ जन: | ओ३म्‌ तप: | ओ३म्‌ सत्यम |

प्राणायाम विधि :

१. पद्मासन या किसी अन्य आसन से, जिससे सुखपूर्वक उस समय तक बिना आसन बदले बैठ सके, जितनी देर प्राणायाम करना इष्ट हो, इस प्रकार बैठ जाये कि छाती, गला और मस्तक तीनो एक सीध में रहे |

२. नाक से धीरे धीरे श्वास बाहर निकले (रेचक) और उसे बाहर ही रोक दे (बाह्य कुम्भक) | ऐसा करते समय मूलेंद्रिय (गुदा इन्द्रिय) को ऊपर की ओर संकुचित करना चाहिए | यदि प्रारम्भ में मूलेंद्रिय का संकोच न हो सके तो कोई चिंता नहीं करनी चाहिए |

३. जब और अधिक देर बिना श्वास लिए न रह सके तो धीरे धीरे श्वास भीतर खीचे (पूरक) और उसे भीतर ही रोक दे (आभ्यन्तरकुम्भक)

४. जब और अधिक समय भीतर श्वास न रोक सके तो फिर से स० (२) के अनुसार रेचक करे|

५. प्रत्येक क्रिया के साथ प्राणायाम मन्त्र का मानसिक जप करे|

|| अथ अघमर्षण मंत्रा: ||

ओ३म्‌ ऋतंच सत्यंचा भीद्धात्तपसोध्य्जायत |
ततो रात्र्यजायत तत: समुद्रो अर्णव: ||
ओ३म्‌ समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत |
अहो रात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी ||
ओ३म्‌ सूर्याचन्द्र्मसौ धाता यथा पूर्वमकल्पयत् |
दिवंच प्रथिवीन्चान्तरिक्षमथो स्व: ||

हे ईश्वर, इस संसार में जितने भी ऋतु व सत्य पदार्थ है सब आपके बनाए हुए है | आप ही सूर्य चन्द्र आदि नक्षत्रो को अनादि काल से बना कर धारण कर रहे है |

|| अथ आचमन मन्त्र ||

इस मन्त्र से पुन: तीन बार आचमन करें |

ओ३म्‌ शन्नो देवीरभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये । शंयोरभिस्रवन्तु नः॥
यजु. ३६.१२

सर्वप्रकाशक और सर्वव्यापक ईश्वर इच्छित फल और आनंद प्राप्ति के लिए हमारे लिए कल्याणकारी हो और हम पर सुख की वृष्टि करे|

|| अथ मनसा परिक्रमा मन्त्र ||

ओ३म्‌ प्राची दिगग्निरधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषवः|
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु|
योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥
अथर्ववेद ३/२७/१
ओ३म्‌ दक्षिणा दिगिन्द्रोऽधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता पितर इषवः|
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु|
योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/२
ओ३म्‌ प्रतीची दिग्वरुणोऽधिपतिः पृदाकू रक्षितान्नमिषवः.
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु.
योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/३
ओ३म्‌ उदीची दिक् सोमोऽधिपतिः स्वजो रक्षिताऽशनिरिषवः.
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु.
योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/४
ओ३म्‌ ध्रुवा दिग्विष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षिता वीरुध इषवः.
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु.
योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/५
ओ३म्‌ ऊर्ध्वा दिग्बृहस्पतिरधिपतिः श्वित्रो रक्षिता वर्षमिषवः.
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु.
योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३ /२७/ ६

हे पावन परमेश्वर ! आप प्राची, प्रतीची आदि समस्त दिशाओं में विध्यमान हो कर हम सब की रक्षा करते है | हम आपके रक्षक स्वरुप को बार बार प्रणाम करते है तथा द्वेष भाव को आपकी न्याय व्यवस्था में समर्पित करते है | 
|| उपस्थान मंत्र ||

ओ३म्‌ उद्वयन्तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम् |
देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम् ||
यजुर्वेद ३५/१४
ओ३म्‌ उदुत्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः |
दृशे विश्वाय सूर्यम् ||
यजुर्वेद ३३/३१
ओ३म्‌ चित्रं देवानामुद्गादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः |
आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्ष~म् सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च स्वाहा ||
यजुर्वेद ७/४२
ओ३म्‌ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् |
पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतम् शृणुयाम शरदः
शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं
भूयश्च शरदः शतात् ||
यजुर्वेद ३६/१४


हे पिता ! आपकी दया से हम अज्ञान अन्धकार से ज्ञान व प्रकाश की ओर बढ़े तथा समस्त इन्द्रियों से भद्र आचरण करते हुए तथा आपका स्मरण करते हुए सौ वर्ष तक सुखपूर्वक जीवन यापन करे ||| गायत्री मंत्र ||


ओ३म् भूर्भुव: स्व: | तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि | धियो यो न: प्रचोदयात् ||
यजुर्वेद, ३६/३, ऋग्वेद, ३/६२/१०

हे प्राणस्वरूप, दुःख विनाशक, स्वयं सुखस्वरूप और सुखो को देने वाले प्रभु हम आपके वर्णीय तेज स्वरुप का ध्यान करते है | आप कृपया करके हमारी बुद्धियो को सन्मार्ग में प्रेरित कीजिये |

|| अथ समर्पणम् ||

हे ईश्वर दयानिधे ! भवत्कृपयानेन जपोपासनादिकर्मणा
धर्मार्थकाममोक्षाणां सद्यः सिद्धिर्भवेन्नः॥

हे दयानिधान ! हम आपकी उपासना करते है | आप कृपया करके हमें शीघ्र धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराईये | 

|| अथ नमस्कार मन्त्र ||

ओ३म् नमः शम्भवाय च मयोभवाय च |
नमः शंकराय च मयस्कराय च |
नमः शिवाय च शिवतराय च |
यजुर्वेद ६/ ४१

हे सुख़ स्वरुप व सुख़ प्रदाता, कल्याणकारक, मंगलस्वरूप, मोक्ष को देने वाले पूज्य प्रभु, हम पुन: पुन: आपके शिव रूप को प्रणाम करते है |

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2 टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर आपकी वैदिक संध्या उपासना पढ कर मन गदगद हो गया

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  2. Dhanyaavadam. Thankyou for creating this page. These mantras were lost treasure of my childhood days that my siblings and I missed a lot. We used to do yajaana anushthaan at the very minimum once each year ( mostly twice ). My nannaji ( we called him bouji (babuji)) followed AaryaSmaaj path and whenever he visited us, we shall ensure to do yajaana that very weekend. These mantra are the part of yajanna. He would meditate for an hour in the morning and the evening, he called that practice "Sandhya". When we asked him how he's able to meditate on "om" sound for a whole hour, he would suggest us to memorize these shloka and recite them instead as a part of our Sandhya exercise. Now on I shall do morning and evening Sandhya the way my nanaji used to do. Thankyou.

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