शिव स्तुति - स्व. श्यामसुंदर शर्मा


कैलाशी काशी के वासी, अविनाशी मोरी सुधी लीजो
सेवक जान सदा चरनन को, अपनो जान कृपा कीजो
तुम तो शिवजी सदा दयामय, अवगुण मोरे सब ढकियो
सब अपराध क्षमा कर शंकर, किंकर की विनती सुनियो
अभय दान दीजो प्रभु मोहे, सकल सृष्टि के हितकारी
भोले नाथ तुम भक्त निरंजन, भव भय भंजन दुखहारी ||१|

ये भव सागर अति अगाध है, पार उतरना ना सूझे
इसमें ग्राह मगर वहु कच्छप, यों मारग कैसे बूझे
काम क्रोध अरु मोह अपरबल,इन पर मेरो बस नाहीं
लोभ मोह सब संग नहीं छोड़ें, आनि देत नहिं तुम पाहीं
नाम तुम्हारो नौका निर्मल, तुम केवट शिव अधिकारी
भोले नाथ तुम भक्त निरंजन, भव भय भंजन दुखहारी ||२||

भुक्ति मुक्ति के दाता शंकर, सदा अनंदित सुख राशी
पशुपति अजर अमर परमेश्वर, योगेश्वर काशी वासी
गंगाधर, त्रिशूलधर, विषधर, बाघम्बरधर आदि गुरू
तुम ही शिव जी कर्ता भर्ता, तुम हो जग के कल्पतरू
रुण्ड माल, गल ब्याल, भाल शशि, नील कंठ गंगाधारी
भोले नाथ तुम भक्त निरंजन, भव भय भंजन दुखहारी ||३||

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