कान्वेंट स्कूल की उत्पत्ति का वह सच जिसे पढ़कर हिल जायेंगे


क्या आपसे कभी किसी ने पूछा है कि आपके बच्चे किस स्कूल में पढ़ते है ? आपने जो जवाब दिया वो ठीक है ! पर यदि आपने ये कहा कि मेरे बच्चे कान्वेंट में पढ़ते है या St.thomos, St.xaviour या Don Bosco's में पढ़ते है तो यकीन मानिये आपका स्टेटस सिंबल उस व्यक्ति की नजर में ऊँची हो जायेगी भले आप उस स्कूल के फी डिफाल्टर भी हो तो भी ! पर यदि आपने ये कहा कि मेरे बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते है तो समझ लीजिये आपका स्टेटस सिंबल का ग्राफ शून्य हो गया ! वैसे मित्रो, आजकल बीपीएल वाले ही अपने बच्चों को सरकारी स्कूल भेज रहे है ! ये एक हकीकत है आज के समाज की आपकी हैसियत का पैमाना भी ये अंग्रेजी माध्यम के स्कूल ! कितनी ओछी मानसिकता होती जा रही है हमारी और हमारे समाज की ! पर आप शायद इन कान्वेंट विद्यालयों की उत्पति नहीं जानते होंगे कैसे हुई ! आइये इस लेख में पढ़े कि क्या हकीकत इन कान्वेंट विद्यालयों की स्थापना की ! 

करीब २५०० सालो से यूरोप में बच्चे पालने की परंपरा नही थी ! बच्चा पैदा होते ही उसे टोकरी में रख कर लावारिस छोड़ दिया जाता था ! अगर किसी चर्च के व्यक्ति की नजर पड़े तो वह बच जाता था, नही तो उसे जानवर खा जाते थे !

जिस यूरोप को हम आधुनिक व खुले विचारो वाला मानते हैं, आज से ५०० वर्ष पहले वहाँ सामान्य व्यक्ति “शादी” भी नहीं कर सकता था क्योंकि उनके बहुत बड़े 'दार्शनिक' अरस्तू का मानना था की आम जनता शादी करेगी तो उनका परिवार होगा, परिवार होगा तो उनका समाज होगा, समाज होगा तो समाज शक्तिशाली बनेगा, समाज शक्ति शाली हो गया तो राजपरिवार के लिए खतरा बन जाएगा ! इसलिए आम जनता को शादी न करने दिया जाय ! बिना शादी के जो बच्चे पैदा होते थे, उन्हें पता न चले की कौन उनके माँ-बाप हैं, इसलिए उन्हें एक सांप्रदायिक संस्था में रखा जाता था, जिसे वे कोन्वेंट कहते थे ! उस संस्था के प्रमुख को ही माँ - बाप समझे इसलिए उन्हें फादर, मदर, सिस्टर कहा जाने लगा ! यूरोप के दार्शनिक रूसो के अनुसार बच्चे पति - पत्नी के शारीरिक आनंद में बाधक है इसलिए इनको रखना अच्छा नही है क्यूंकि शारीरिक आनंद ही सब कुछ होता है ! और एक दशानिक प्लेटो के अनुसार हर मनुष्य के जीबन का आखरी उद्येश्य है शारीरिक आनंद की प्राप्ति, और बच्चे अगर उसमे रुकावट है तो उसको रखना नही छोड़ देना है ! ऐसे ही दूसरे दार्शनिक जैसे दिकारते लेबेनित्ज़, अरस्तु सबने अपनी बच्चो को लावारिस छोड़ा था ! ऐसे छोड़े हुए बच्चो को रखने के लिए यूरोप के राजाओ ने या सरकारों ने कुछ संस्थाए खड़ी किया जिनको कान्वेंट कहा जाता है ! कान्वेंट का वास्तविक अर्थ है लावारिस बच्चो का स्कूल ! कान्वेंट में पढने वाले बच्चो को माँ बाप का अहसास कराने के लिए वहाँ पर पढ़ने वाले जो अध्यापक होते है उनको मदर, फादर, ब्रदर और सिस्टर कहते है !

इंग्लैंड में पहला कान्वेंट स्कूल सन 1609 के आसपास एक चर्च में खोला गया था जिसके ऐतिहासिक तथ्य भी मौजूद हैं और भारत में पहला कान्वेंट स्कूल कलकत्ता में सन 1842 में खोला गया था परंतु तब हम गुलाम थे और आज तो लाखों की संख्या में कान्वेंट स्कूल चल रहे हैं भारत देश में ! अंग्रेज भारत आये तो साथ में कान्वेंट विद्यालय ले कर आये उनकी नाजायज औलादों को पढ़ने के लिए फिर गली गली में कान्वेंट स्कुल खुलने लगे ! अंग्रेज तो चले गए लेकिन कान्वेंट छोड़ गए ! आज भी भारत में भारतीय महापुरुषों के नाम पर गली गली में कान्वेंट संचालित किये जा रहे है वह भी बिना इस कान्वेंट का इतिहास जाने ! खुद सोचिये कि हमर महापुरुषों का इन कान्वेंट विद्यालयों से क्या लेना देना ? बिना सोचे बिना जाने, बिना स्वविवेक का उपयोग किये हम पाश्चात्य संस्कृति का अनुशरण किये जा रहे है ! यूरोप में उनके गुरु अरस्तु व् प्लेटो की परंपरा है ! वहां कि सभ्यता और संस्कृति उन्हें केवल और केवल शारीरिक सुख की पूर्ति की शिक्षा प्रदान करती है जिसके कारण वहां कान्वेंट विद्यालयों की स्थापना समझ में आती है परन्तु हमारे भारत में कोन से ऐसे परिवार है जो बच्चो को लावारिस छोड़ते है ? क्योँ माँ बाप वाले बच्चो को जबरन लावारिस बना रहे हो ? जिस देश में लावारिस बच्चे नहीं है उस देश में कान्वेंट विद्यालय कैसे चल रहे है ? 

भारतीय संस्कृति का गलत होता है प्रचार

इन कान्वेंट स्कूल में भारतीय संस्कृति के खिलाफ बातें होती हैं ! हमारी अपनी संस्कृति को नीचा दिखाया जाता है ! बेशक किताबों में नहीं परन्तु आपको यह सच मानना ही होगा कि वहां के वातावरण में भारत की संस्कृति को तुच्छ दिखाया जाता है ! हमारे देश के वातावरण को विकास के खिलाफ दिखाया जाता है !

संस्कार जैसी कोई बात नहीं होती

भारतीय संस्कारों में माता-पिता, भाई, बहन और अन्य रिश्तों को बड़ा महत्त्व दिया जाता है ! संस्कार ही हमारी असली धरोहर हैं ! कान्वेंट स्कूल में भारतीय संस्कारों को बच्चों से दूर कर दिया जा रहा है ! इस तरह का प्रचार वहां ज्यादा होता है जिसमें पश्चिम संस्कारों की झलक रहती है !

इतिहास के साथ खिलवाड़

हमारे अपने देश के इतिहास के साथ यहाँ न्याय नहीं हो पा रहा है ! विकसित होने के लिए जो परिभाषा यहाँ लिखी जा रही है, वह मानव और प्रकृति केन्द्रित नहीं होती है ! हमारे इतिहास को जीवित रखने का कोई भी प्रयत्न यहाँ नहीं होता है !

गैर इसाई बच्चों के साथ भेदभाव

यदि कान्वेंट स्कूल अपने आप को साफ़ विचारों के बोलते हैं तो कई बार क्यों खबर आती हैं कि जब एक धर्म का बच्चा को तिलक और अन्य धार्मिक चीजों को देखकर, यहाँ उनके साथ कई बार बेहद खराब व्यवहार किया जाता है !

धार्मिक सद्भावना

सूत्रों से मिली ख़बरों के अनुसार कान्वेंट में कुछ मौकों पर गैर इसाई लोगों के साथ, धार्मिक सद्भावना को तार-तार कर दिया जाता है ! जब भारत में स्कूल के अन्दर गीता नहीं पढाई जा सकती तो कान्वेंट में बाइबिल का पाढ़ किस आधार पर होता है ?

कान्वेंट विद्यालयों पर राजीव दीक्षित का विचार देखने हेतु यहाँ  करें 

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2 टिप्पणियाँ

  1. आपकी पोस्ट अद्भुत है आप जैसे लोगो की बहुत कमी है हमारे देश में,इसलिए हमारे भारत के लोग धीरे धीरे अंग्रेज बनते जा रहे हैं और हमारी संस्कृति व संस्कार भूलते जा रहे हैं। जय हिंद श्रीमान जी।

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