अंतिम विश्वयुद्ध की आहट


प्रसिद्ध सैन्य विचारक लिडिल हार्ट ने कहा है कि- यदि शान्ति चाहते हो तो युद्ध को समझो। विश्व में युद्ध के रोकथाम के लिए सबसे आवश्यक है युद्ध के कारण, प्रभाव एवं परिणाम पर गहन चिन्तन, मनन एवं चर्चा करने की। इस विषय के अध्ययन से विश्व विनाश को रोकने में भी सक्रिय सहयोग मिलता है। आज विश्व के पास इतने घातक एवं विनाशक हथियार हैं कि समस्त पृथ्वी को हजारो बार नष्ट किया जा सकता है।

इस परिप्रेक्ष में पिछले कुछ दिनों से घटनाचक्र जिस प्रकार घूम रहा है, उसने अनेक चिन्तक विचारकों को यह सोचने को विवश कर दिया है कि विश्व बड़ी तेजी से सभ्यताओं के संघर्ष की दिशा में बढ़ रहा है | देखिये घटनाओं की बानगी -

1) फ्रांस में लोगों ने सुबह-सुबह कतार में लग कर ‘शार्ली एब्दो’ पत्रिका खरीदी। जो पत्रिका मुश्किल से चालीस हजार बिकती थी उसकी पचास लाख प्रतियां छपी। इसकी बिक्री दुनिया की मशहूर नीलामी साइट ईबे पर भी हुई। ईबे पर एक प्रति की कीमत 15 हजार डॉलर तक लगाई गई जबकि इसकी वास्तविक कीमत तीन डॉलर की है। फ्रेंच के अलावा तुर्की, अरबी, अंग्रेजी सहित 16 भाषाओं में पत्रिका जारी हुई। इस नए अंक के कवर पर मोहम्मद साहब का कार्टून है। इसे फिर ब्रिटेन, यूरोप व वाशिंगटन टाइम्स सहित कई अमेरिकी अखबारों ने साभार प्रकाशित किया।एक तरफ यह हकीकत है तो दूसरी और अल कायदा की यमन इकाई याकि एक्यूएपी के कमांडर नासर अल-अन्सी ने शार्ली एब्दो के पत्रकारों पर हमला करने की जिम्मेवारी लेते हुए कहा-फ्रांस ‘शैतानों की पार्टी’ में है। उसमें और आंतकी हमले होंगे।

इन दोनों बातों का क्या अर्थ निकालें? क्या यह नहीं कि दो खेमे बन गए हैं और दोनों एक-दूसरे की भावनाओं से खेलने पर आमादा हैं! पूरा फ्रांस, पूरा यूरोप यदि अपने आपको ‘शार्ली एब्दो’ बता रहा है तो अर्थ है कि उन्हें मुस्लिम समाज और धर्म की चिंता नहीं है। ये अपने मूल्य, वैल्यू, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी और जीने के अपने अंदाज से कोई समझौता नहीं करेंगे।

2) ब्रिटेन का बर्मिंघम मुस्लिम शहर बन गया है और यहाँ कोई गैर-मुस्लिम जाना पसंद नहीं करता | बकौल बोबी जिंदल "मुस्लमों ने अपने अलग एन्क्लेव, टापू बनाकर शरिया क़ानून चलाया हुआ है | कोई देश अपने यहाँ किसी ख़ास क्षेत्र या बस्ती को अपने देश के क़ानून के अतिरिक्त निजी क़ानून चलाने की स्वायत्तता कैसे दे सकता है ? " ब्रिटेन के कम्यूनिटी व लोकल शासन मंत्री एरिक पिक्लस ने दो टूक शब्दों में इमामों को हिदायत दी कि मुस्लिम समाज अपने धर्म को राष्ट्रीयता से ऊपर और अलग मानना बंद करे |

सीधी सी बात है कि मुस्लिम कट्टरपंथी अगर अपनी जनूनी हरकतें बंद नहीं करेंगे, आतंक के दम पर सारे संसार को अपने सामने झुकाने की कोशिश जारी रखेंगे तो विश्व के अन्य देश भी प्रतिक्रिया को विवश होंगे | क्रिया और प्रतिक्रिया की यह दौड़ कब कितनी विध्वंसक हो जायेगी कौन जानता है ? भारत के पडौस में स्थित पाकिस्तानी परमाणु हथियार कभी भी तालिबानी उग्रवादियों के हाथों में जाकर विश्व मानवता के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं | ऐसे में अलबर्ट आइन्सटीन के शब्द भी ध्यान में आते हैं - मुझे नहीं मालूम कि तीसरा विश्व युद्ध कैसे लड़ा जाएगा, किन्तु मैं यह कह सकता हूँ कि चौथा पत्थरों से लड़ा जाएगा |

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