चाहिए देश को जुनून ?



ग्वालियर से भिंड जिले के प्रवास पर जाते समय ग्वालियर बेंहट मार्ग पर सह क्षेत्र प्रचारक अरुण जी ने वाहन रुकवाया ! एक खेत की मेंड पर एक चबूतरा और उस पर लगा भगवा झंडा ! चबूतरे पर लगभग एक क्विंटल का तिकोना पत्थर ! मुझे कुछ भी खास नहीं लगा ! किन्तु जब अरुण जी ने बताया की बह तिकोना पत्थर आल्हा की कटार मानी जाती है, तब उत्सुकता जाग्रत हुई ! पास जाकर देखा तो लगा बह पत्थर नहीं वरन अष्टधातु की बनी कोई वस्तु है ! ध्यान से देखा तो कटार की मूंठ का आभास भी होने लगा ! एक क्विंटल की कटार, तो फिर उसका उपयोग करने बाले महापुरुष कितने विराट और शक्ति संपन्न होगे ! कल्पना के घोड़े दौडने लगे ! फिर शेष रास्ते ये ही सब चर्चा होती रही !


भिंड मुरैना का यह क्षेत्र आज भी अपने अक्खड़ता पूर्ण व्यवहार के लिए जाना जाता है ! इसके कारण की मीमांशा करने पर ज्ञात होता है कि किसी समय कन्नौज के जयचंद, दिल्ली के प्रथ्वीराज और महोबा के आल्हा ऊदल की रण भूमि यही क्षेत्र रहा है ! इसी लिए आल्हखंड के ओज और शौर्य के गीत आज भी इलाके में चाव से गाये जाते हैं !


बरस अठारह क्षत्रिय जीवे, आगे जीवन को धिक्कार
या फिर –
जाको बैरी सुख से सोवे, ताके जीवन को धिक्कार !


वाल्यावस्था से गाते गाते कब घुट्टी में यही भाव बच्चे बच्चे में आ जाता है पता ही नहीं चलता ! दिल के साफ किन्तु जवान के कडवे, मुंहफट किन्तु साहसी और उदार ! महानगरीय सभ्यता में आम लत, पीठ पीछे छुरा मारना, किन्तु यहाँ उसे सबसे बड़ा अपराध मानने बाले लोग !

यह जीवट अपने वास्तविक शत्रु को पहचाने ! और शेष भारत में भी फिर यही भाव आ जाए तो फिर देश के दुश्मन कहाँ टिकेंगे ?
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