भूमि अधिग्रहण बिल - एक नजर में ! आखिर क्यूं मच रहा है यह धमाल ?


भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास के लिए विधेयक का जो मसौदा तैयार किया है उसके प्रावधानों के मुताबिक मुआवज़े की राशि शहरी क्षेत्र में निर्धारित बाजार मूल्य के दोगुने से कम नहीं होनी चाहिए जबकि ग्रामीण क्षेत्र में ये राशि बाजार मूल्य के छह गुना से कम नहीं होनी चाहिए। ज़मीन के अधिग्रहण और पुनर्वास के मामलों को सरकार ऐसे भूमि अधिग्रहण पर विचार नहीं करेगी जो या तो निजी परियोजनाओं के लिए निजी कंपनियाँ करना चाहेंगी या फिर जिनमें सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए बहु-फ़सली ज़मीन लेनी पड़े। निजी उद्यमों के लिए जमीन सीधे किसानों से उनके मनमाफिक दामों पर खरीदनी होगी |

मसौदे में ज़मीन के मालिकों और ज़मीन पर आश्रितों के लिए एक विस्तृत पुनर्वास पैकेज का ज़िक्र है। इसमें उन भूमिहीनों को भी शामिल किया गया है जिनकी रोज़ी-रोटी अधिग्रिहित भूमि से चलती है। इस बीच, अधिग्रहण के कारण जीविका खोने वालों को 12 महीने के लिए प्रति परिवार तीन हज़ार रुपए प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता दिए जाने का प्रावधान है।

इसके अलावा पचास हज़ार का पुनर्स्थापना भत्ता, ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर और शहरी क्षेत्रों में 50 वर्गमीटर ज़मीन पर बना बनाया मकान भी दिये जाने का प्रावधान है |

केवल एक बिंदु ऐसा है, जिसको लेकर कुछ आलोचना हो सकती है, और वह यह कि सरकार ने विधेयक के सेक्शन 10(ए) में संशोधन किया है, जिसमें भूमि अधिग्रहण करने से पहले वहां के 80 फीसद लोगों से हरी झंडी लेने की जरूरत हुआ करती थी । साथ ही पहले के प्रस्ताव में जिस उद्देश्य के लिए भूमि ली गई है, वह कार्य योजना पांच वर्ष में पूर्ण न होने पर जमीन वापस करने की बाध्यता थी | सरकार का तर्क है कि अनेक राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाएं अधिक समय ले लेती हैं, ऐसी स्थिति में यह बाध्यता अव्यवहारिक है | अतः सरकार इस बाध्यता को हटाना चाहती है | साथ ही अगर मुकदमेबाजी में समय लगा है तो उसे भी इन पांच वर्षों में से कम करना चाहिती है |

इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने जिस तरह से नया अध्यादेश जारी किया है उससे साफ है कि जमीन मालिक चाहे न चाहे, भूमि का अधिग्रहण होकर ही रहेगा। अगर वो मुआवजा लेने से इनकार करता है तो इसे सरकारी खजाने में जमा कर भूमि स्वामी को उसकी भूमि से बेदखल किया जा सकेगा।

एनडीए सरकार ने कानूनी की अनदेखी करने और कानून तोड़ने वाले अधिकारियों के खिलाफ कदम उठाने के लिए रखे गए प्रावधान भी ढीले किए हैं। बिल में नए बदलाव के मुताबिक किसी अफसर पर कार्रवाई के लिए अब संबंधित विभाग की अनुमति लेना ज़रूरी होगा। यानि अफसर साफ बच निकलेंगे।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें