पुलिस ने बताया नक्सलवादी, बचाव में उतरी एमनेस्टी |

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शुक्रवार को एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने "माओवादी हंट" के सिलसिले में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गए दो मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने का केरल सरकार से आग्रह किया है |

केरल पुलिस ने 30 जनवरी को राज्य में दो अलग-अलग स्थानों से जैसोन सी कूपर और तुषार निर्मल सारथी को गिरफ्तार किया था । उन पर आरोप है कि वे कोच्चि में सरकारी कार्यालयों पर हाल ही में हुए संदिग्ध माओवादी हमलों में शामिल थे |

पुलिस ने उनके परिसर से माओवादी साहित्य बरामद किया था । इसके अतिरिक्त सारथी एक वकील के रूप में पहले माओवादी हमलों में गिरफ्तार दो संदिग्ध युवकों को कानूनी सहायता दे रहा था | कूपर राज्य में बीमा विभाग का एक कर्मचारी है | उसे कोच्चि में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के परियोजना कार्यालय पर हुए हमले के सिलसिले में उसके कार्यालय से गिरफ्तार किया गया था।

सारथी को कोझीकोड में उस समय गिरफ्तार किया गया, जब वह माओवादियों के नाम पर किये जा रहे मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न की निंदा करने को आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन से वापस आ रहा था । उसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) की धारा 13 बी के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया गया ।

इसी प्रकार रविवार को कन्नूर में पुलिस ने संदिग्ध माओवादी लिंक के आरोप में स्टूडेंट्स इस्लामिक संगठन के नेता शाहिद एम शमीम और उसके दोस्त उदय बालकृष्णन को भी गिरफ्तार किया था | किन्तु उनकी गिरफ्तारी के विरोध में हुए प्रदर्शन के बाद सोमवार दोपहर को पुलिस उन युवकों को छोड़ने को विवश हो गई ।

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यक्रम निदेशक शमीर बाबू का कहना है कि भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने बिनायक सेन को जमानत देते समय अप्रैल 2011 में निर्णय दिया था कि किसी के पास नक्सली साहित्य होने भर से एक व्यक्ति को नक्सलवादी नहीं कहां जा सकता | केवल माओवादी साहित्य रखने से यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता कि व्यक्ति का उस संगठन से सम्बन्ध है | 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इन गिरफ्तारियों पर केरल पुलिस से रिपोर्ट मांगी है। उन्होंने अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि इन दोनों आदमियों को यातना न दी जाए और उनके साथ अन्य कोई दुर्व्यवहार न हो ।

इन परिस्थितियों में एक अहम सवाल यह उठता है कि "नक्सलवादियों के समर्थन को अगर अपराध नहीं माना जाएगा तो उन पर प्रतिबन्ध का औचित्य ही क्या है ? पुलिस अगर इनके सम्मुख इतनी अधिक पंगु और लाचार बना दी जायेगी, तो क्या कभी इन दुर्दांत हत्यारों से भारत को मुक्ति मिल सकेगी ?  "
आधार - http://indianexpress.com/article/india/india-others/amnesty-international-urges-kerala-govt-to-release-two-human-rights-activists/
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