सचाई दिग्विजय राज और शिवराज की |


साल 1993 से 2003 तक विधानसभा में हुई नियुक्तियां में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की शिकायतों को लेकर पुलिस ने जिन लोगों को आरोपी बनाया है, उनमें तत्कालीन मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह और विधानसभाध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी भी शामिल हैं।

विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीताशरण शर्मा के मुताबिक यह मुकदमा जस्टिस शचीन्द्र द्विवेदी की अध्यक्षता वाली जांच कमिटी की सिफारिशों के आधार पर यह मामला दर्ज कराया गया हैं। यह कमिटी विधानसभा में कांग्रेस शासन दौरान की गई नियुक्तियों की जांच के लिए बनाई गई थी। द्विवेदी कमेटी ने 2006 में अपनी रिपोर्ट पेश कर दी थी। कमिटी ने 16 नियुक्तियों को पूरी तरह गैर कानूनी पाया था। इसी आधार पर मामला दर्ज कराया गया।

उधर 8 साल पूराने मामले में दिग्विजय सिंह के खिलाफ मुकदमें को कांग्रेस ने बदले की कार्रवाई बताते हुए कहा है कि वह ऐसे मामलों से डरने वाली नही हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता के. के. मिश्रा ने कहा हैं कि चूंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह खुद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं इसलिए शिवराज सिंह सरकार विधानसभा अध्यक्ष का इस्तेमाल करके दबाव बनाना चाहती हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि ऐसे आरोपों से कांग्रेस दबने वाली नही हैं।

लेकिन तथ्य कुछ और ही कहानी बयान कर रहे हैं | 11 जनवरी 2012 को प्रशासनिक न्यायाधीश कृष्ण कुमार लाहोटी व जस्टिस विमला जैन की युगलपीठ के समक्ष जनहित याचिकाकर्ता एडवोकेट विवेक लखेरा की ओर से कहा गया कि राज्य शासन इन अवैध नियुक्तियों के प्रकरण में अनावश्यक हीलाहवाली बरत रही है। जबकि वस्तुस्थिति यह है कि जस्टिस शचीन्द्र द्विवेदी की रिपोर्ट में विधानसभा की 11 नियुक्तियों को अवैध करार देते हुए निरस्त करने की अनुशंसा कर दी गई थी। यही नहीं, लांजी बालाघाट के पूर्व विधायक किशोर समरीते की याचिका पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुशील हरकौली की अध्यक्षता वाली युगलपीठ ने 23 अगस्त 2011 को अहम दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसके बावजूद कमोवेश स्थिति वही ढाक के तीन पात बनी हुई है। 

कोर्ट को अवगत कराया गया कि राज्य सरकार अवैध नियुक्तियां पाने के आरोपियों को चार्जशीट देने की बात कर रही है। जबकि नियमानुसार इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि अब जांच की आवश्यकता नहीं रह गई है। लिहाजा, सीधे कार्रवाई की जानी चाहिए। सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता आरडी जैन ने बताया कि सरकार ने फिर से शोकॉज नोटिस जारी किए हैं, जिनके जवाब आने के बाद रिपोर्ट पेश कर दी जाएगी। इसके लिए चार सप्ताह की मोहलत दी जाए। कोर्ट ने साफ किया कि चार नहीं केवल दो सप्ताह की मोहलत दी जा सकती है। इस पर एजी ने विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी को पितृशोक होने की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सारी कार्रवाई उन्हीं के हस्ताक्षर से होना है अतः और समय दिया जाए। इस बात को दृष्टिगत रखते हुए कोर्ट ने अंततः तीन सप्ताह का समय दे दिया। 

अर्थात हालात यह है कि मुद्दई सुस्त गवां चुस्त | तो क्या यह माना जाए कि शिवराज सिंह और दिग्विजय सिंह के परदे के पीछे मधुर संबंधों के चलते 2006 में आई रिपोर्ट पर कोई कार्यवाही नहीं हुई ? स्मरणीय हैकि उमाश्री भारती के मुख्यमंत्रित्व काल में यह जांच आयोग गठित हुआ था | शिवराज ने तो अपनी तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की, किन्तु राजनीति के माहिर खिलाड़ी दिग्विजय सिंह ने मौका मिलते ही अपने राजनैतिक हितों को साधने के लिए मुख्य मंत्री पर करारा प्रहार कर दिया | अब राज्य सरकार ने जो कार्यवाही की है, वह अगर 2006 में ही हो जाती तो अब तक दिग्विजय की राजनीति पर ही विराम लग गया होता |

इस मामले में 24 जुलाई 2014 को पीपुल्स समाचार का सम्पादकीय पढ़ने योग्य है –

ऐसी भी सरकारें और उनके मुखिया हुए हैं जिन्होंने खुद कानून कायदों की मर्यादाओं को लांघते हुए सत्ता की बारादरी से भ्रष्टाचार के गलियारे तैयार किए। अस्सी से पचासी के दौर में कर्मचरियों,अधिकारियों को चयनित करने वाली एजेंसियों को दरकिनार कर हजारों की संख्या में अपात्र लोग समस्त नियमों को शिथिल करते हुए सरकारी पदों में आ गए। जिन मां-बापों ने अपने खेत और गहने रहन में रखकर बच्चों को पढ़ाया और उनके बच्चों के मुकाबले देखते ही देखते कई अपात्र सरकारी पदों पर काबिज हो उन मां-बापों के लिए आज भी समस्त नियमों को शिथिल करने वाली वह राजाज्ञा किसी गाली से कम नहीं लगती। 

उन दिनों भर्ती की जो परीक्षाएं हुआ भी करती थीं वह महज औपचारिकता ही होती थीं क्योंकि चयन सूचियां सत्ताधीशों के बंगलों में तैयार होती थीं, अधिकरियों का काम सिर्फ दस्तखत करके जारी करना होता था। अस्सी से पचासी के दौर में पुलिस में जितने भी दरोगा हुए उनकी सूची निकलवा ली जाए तो पता चलेगा की भर्तियों की असलियत क्या थी। एक ही इलाके के अस्सी फीसदी अभ्यर्थी? बिना विशेष राजाज्ञा और समस्त नियमों को शिथिल करने के अनैतिक टीप के बिना संभव नहीं। यही उस दौर में भर्ती किए गए स्वशासी निकाय के सीएमओ, विशेष क्षेत्र प्राधिकरणों के सीईओ की भर्तियों में हुआ। मनमानी भर्तियों के इस फर्जीवाड़े से निकले कई ऐसे महानुभाव आज भी उच्च पदों यहां तक कि विभाग प्रमुखों की कुसिर्यों पर विराजमान हैं। इसी दौर में शिक्षा विभाग में तदथर्वाद भी चला। पीएससी से भतिर्यां कराने के बजाए महाविद्यालयों में अंक के अधार पर प्राध्यापक रखे गए। ऐसे में बड़ी संख्या में वो असमाजिक तत्व भी उच्चशिक्षा के सम्मानीय प्राध्यापक हो गए जिन्होंने चाकू और कटटे की नोक पर नकल की और अंक अर्जित करने के मामले में मेधावी और पढ़ने लिखने वाले छात्रों को पीछे छोड़ दिया। 

समकीलीन छात्र जानते होंगे कि उनमें से कुछ तो कुलपति-कुलसचिव के पद पर प्रतिष्ठित हुए। यह अकस्मात नहीं था इसके पीछे अपने लोगों को चोर रास्ते से सरकारी पदों में लाने की साजिश रही है। क्योंकि उसी सत्ता ने पांच साल के भीतर ही सबको नियमित भी कर दिया। जो मेधावी छात्र ताके बैठे रहे कि वे पीएससी से इन नौकरियों को हांसिल कर लेंगे उनमें से ज्यादातर ओवरएज हो गए और बेराजगारी के डिप्रेशन में चले गए। यह गरीब छात्रों के हकों को मारने वाला महापाप था लेकिन जब सत्तासूत्र का संचालक ही ऐसी व्यवस्था बनाए तो कोई क्या कर सकता है। 

अस्सी-पचासी के दौर में ही सरकारी नौकरियों की भर्ती के लिए कनिष्ठ सेवा चयन आयोग बना। इस आयोग ने तो भर्तियों के फर्जीवाड़े के नए कीतिर्मान ही कायम कर दिए। कई लोग आज भी भुक्तभोगी होंगे जो घूस की बड़ी रकम देने के बाद भी अपने बच्चों का भर्ती नहीं करवा पाए क्योंकि तब एक -एक पद के लिए बोली लगती थी। एजेंट गांवों में घूम-घूमकर नौकरी नौकरी के प्रलोभन में फंसाते और रकम वसूली करते। 

इस आयोग ने तो कई बार ऐसा भी कमाल किया कि पद नहीं थे फिर भी भर्ती परीक्षाएं ले लीं और बाद में हजारों की संख्या में चयनित बेरोजगार घरों में बैठे रहे,धरने प्रदर्शन किए लाठियां खायीं और जेल गए फिर भी इन्हें नौकरी नहीं मिल पाई। चयनित शिक्षकों का लंबा संघर्ष लोगों को अभी भी याद होगा। कनिष्ठ चयन सेवा आयोग के मामले विधानसभा में गूंजे और देशभर में हुई बदनामी तथा नककटी के बाद अंतत: इस आयोग को भंग कर दिया गया। उसके कई तत्कालीन सदस्य और अफसर आज भी मजे में हैं, पंकज त्रिवेदी और नितिन महेंद्रा जैसे कस्टडी में नहीं। घर का मुखिया जब खुद अराजकता का कारण बने तो कौन सी कानून व्यवस्था उसे संभाल सकती है और कौन सी एसटी एफ उसे पकड़ सकती है। 

उस दौर में ऐसी ही अंधेरगर्दी चली खासकर शिक्षा के मामले में कि प्रदेश का शिक्षा स्तर जो रसातल में गया आज तक उबरने का नाम ही नहीं ले रहा। अस्सी -पचासी के दौर से जो अंधेरगर्दी शुरू हुई वह समस्त नियमों की उपेक्षा करते हुए 2003 तक कायम रही। शिक्षाकर्मी घोटालों का परतें खोल दी जाएं तो व्यापम घोटाला पानी मांगने लगेगा। अव्वल तो नियमित भर्तियों को दरकिनार कर शिक्षाकर्मियों की योजना ही शर्मनाक थी क्योंकि उनकी तनख्वाह बेहद कम निर्धारित की गई थी। अप्रशिक्षत लोगों को नियुक्तियां दी गर्इं, जबकि इसी दरम्यान प्राय: अन्य सभी राज्यों ने ये नियम लागू किए थे कि शिक्षा भर्तियों में सिर्फ प्रशिक्षित लोग ही लिए जाएंगे। जाहिर है कि खुली भर्ती का नियम जानबूझकर बनाया गया था ताकि खाने कमाने की गुंजाइश बनी रहे। उस दौर में हजारों की संख्या में भर्तियां मनमाने तरीके से की गर्इं। विन्ध्य और चंबल क्षेत्र में तो भ्रष्टाचार के नए कीतिर्मान गढ़े गए। 

लोकायुक्त ने स्वयं हस्तक्षेप करते हुए रीवा-सतना में छापे मारकर ट्रक भरभर कर फर्जीवाड़े के साक्ष्य व सबूत जब्त किए। यह सब सत्ता की सरपरस्ती में हुआ। शिक्षाकर्मी घोटाले का लेखाजोखा लगाया जाए तो वह व्यापमं घोटाले से कहीं भी कमतर नहीं निकलेगा। एक समय विधानसभा में भर्तियों के फर्जीवाड़े की जांच करने वाले जस्टिस शचीन्द्र द्विवेदी आयोग ने तो यहां तक कहा कि विधानसभा का इस्तेमाल इम्पाइमेंट एक्सचेंज की भांति किया गया। बाबू और चपरासी तक की योग्यता न रखने वालों को ऊंचे ओहदों पर नियुकत किया गया और फिर समस्त नियमों को शिथिल करते हुए वे सरकारी अधिकारी व कर्मचारी बना दिए गए। सामान्य अभ्यथिर्यों के साथ दससे बड़ा क्रूर मजाक और क्या हो सकता है? व्यापमं घोटाला निश्चित तौर पर गंभीर है लेकिन राजनीतिक स्तर पर जो लोग इसे मुद्दा बना रहे हैं उनकी विश्वसनीयता जांचने की जरूरत है।

क्या यह बेहतर नहीं होगा कि अब दूध का दूध और पानी का पानी करने के लिए सीबीआई जांच करवा ही ली जाए ? व्यापम घोटाले के साथ साथ कांग्रेस शासनकाल की नियुक्तियां भी जांच की जद में ली जाएँ | 
एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. भ्र्ष्टाचार सब और है
    राजनीती है सबसे बोर
    भरष्ट नेता भ्र्ष्टाचार करे
    जनता कियूं न मचाये शोर?
    होना जाना कुछ नही
    सब दल वालों की
    आपसी मिली भगत
    १० ,११ साल में शिवराज
    एक भी भरष्ट कांग्रेसियों का
    कालर तक नही पकड़ पाये
    सांप नाथ नाथ नाथ
    सब साथ साथ फिर कौन
    भ्र्ष्टाचारी को
    फांसी पे चढ़ाएगा ?

    जवाब देंहटाएं