मेरा मध्यप्रदेश - सत्ता मदहोश, प्रतिपक्ष बेहोश |

डीजल के दाम घटे लेकिन बढ़ गया स्कूल बसाें का किराया

मोदी सरकार बनने के बाद डीजल पेट्रोल के दाम लगातार कम हुए हैं | लेकिन मध्यप्रदेश में न तो बसों का किराया कम हुआ है और न ही माल ढुलाई भाड़े में कोई कमी आई है | आम जनता से जुड़े इस मामले में ऐसा दुर्लक्ष्य देखकर लगता है कि सरकार जानबूझकर बस मालिकों और ट्रांसपोर्टरों को लाभ पहुँचाना चाहती है | कहने के प्रदेश में परिवहन सचिव, परिवहन मंत्री को शामिल कर तीन सदस्यीय सर्वाधिकार प्राप्त एक समिति है, जो डीजल के भाव बढ़ने पर आनन फानन में परिवहन किराए में बढ़ोतरी को हरी झंडी देती रही है | लेकिन विगत दस माह में लगभग दस रुपये प्रति लीटर डीजल के भाव कम हो जाने के बाद भी भाड़े में कोई कमी नहीं की गई | यह सीधे सीधे गरीबों की जेब काटकर बड़े लोगों को आर्थिक लाभ पहुँचाने का मामला है | 

डीजल के भावों में लगातार इस प्रकार गिरावट आई है -
15 अगस्त- 64.91
10 अक्टूबर- 61.19
01 नवंबर- 58.70
01 दिसंबर- 57.78
01 जनवरी- 57.41
16 फरवरी- 52.97
02 मार्च- 56.46
15 अप्रैल- 54.06 भाव रुपए प्रति लीटर में।

कुछ ऐसा ही गड़बड़झाला स्कूल बसों के मामले में भी देखने को आ रहा है | पिछले साल डीजल के दाम बढ़ने पर स्कूल संचालक व वाहन मालिकों ने 200 रुपए तक किराया बढ़ाया था पर दाम घटने पर एक पैसा भी कम नहीं किया। उल्टे इस साल एक हजार रुपए तक बढ़ा दिए। पिछले साल मासिक किराया शहरों में 600 रुपए व बाहरी क्षेत्र में 900 था। अब यह 800 व 1100 रुपए हो गया है। ऑटो, आपे, मैजिक व वैन का किराया भी शहर में 400 रुपए व बाहरी क्षेत्र में 550 रुपए है। पिछले साल किराया 200 व 350 रुपए था।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि पडौस के राजस्थान में कीमत कम होते ही परिवहन भाडा भी अविलंब कम कर दिया गया था | मजा यह कि मध्यप्रदेश में सत्ता पक्ष तो मदहोश है ही, विपक्ष भी पराजय के गम में ऐसा बेहोश हुआ है कि सुध बुध खो चुका है | ऐसा लगता है कि अब जनता के हितों का विचार करने वाला व उसके लिए आवाज उठाने वाला प्रदेश में कोई बचा ही नहीं है | शायद ऐसी ही परिस्थिति में अराजकता परवान चढ़ती है |

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