देश बड़ा या तंत्र हवाएं पूछ रही हैरान !

सर्व धर्म समभाव सिखाती भारत संस्कृति सृष्टि को ! 

आज विखंडित करती जाती राजनीति इस दृष्टि को !! 

जातिभेद तो हुए पुराने जैसे तैसे सह लेंगे ! 

राजनीति में वर्ग बने जो कष्ट महा दुस्सह देंगे !! 

कुर्सी लोलुपता की खातिर लड़ें जानवर जंगली हैं ! 

जहां जरूरी बज्र मुष्टिका अलग अलग हर उंगली है !!

शव भक्षी गृद्ध्रों के साए फिर चहुँदिश छाये हैं ! 

प्रजातंत्र की लाश पडी है नोंच नोंच खाए हैं !! 

राजनीति में सेवा कैसी, है यह काला धंधा ! 

कोई नेता नहीं अछूता सबका दामन गंदा !! 

लड़ना है चूनाव अगर तो लेना होगा चन्दा ! 

दाता चाहे डाकू हो या फिर नेक खुदा का वंदा !! 

देश बड़ा या तंत्र हवाएं पूछ रही हैरान ! 

जन गण मन की अभिलाषा से नेता हैं अनजान !!

********************************


एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें