तात्याटोपे को कोई नेता नहीं देता श्रद्धांजलि | क्यों ?


१८५७ स्वातंत्र समर के अंतिम योद्धा तात्या टोपे को आज ही के दिन शिवपुरी में सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई थी |

वह चलता था अकेला सेना बन जाती थी

जंगल में कोयल भी वीर रस गाती थी

नेताओं में फैला है अंध विश्वास कुछ एसा

जो भी देगा श्रद्धा सुमन हो जाएगा उन जैसा

अर्थात सत्ता से दूर संघर्ष मय प्राणी

तो बताओ भैये कौन करेगा ऐसी नादानी ?

नेता वलिदान स्थल पर कभी नहीं जाते है

शिवपुरी आते, अपनी सुनाते, चले जाते हैं

सच है देश में शहीद होना चाहिए जरूर

पर पड़ोसी के घर में, हमारे घर से दूर

उस तलवार की ताव झेले किसकी मजाल है

शिवपुरी की मिट्टी उनके खून से ही लाल है ||

(शिवपुरी की मिट्टी सचमुच लाल है)

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