क्रांतिदूत डॉट इन की प्रथम स्मारिका का सम्पादकीय


आज क्रांतिदूत.इन की प्रथम स्मारिका को अंतिम रूप दिया | प्रस्तुत है उसके प्रकाशन की पृष्ठभूमि को स्पष्ट करता मुखपृष्ठ व सम्पादकीय -

कुछ वर्षों पूर्व एक बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ.भा. सह सरकार्यवाह माननीय सुरेश जी सोनी का मार्गदर्शन सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था | उन्होंने सार्वजनिक जीवन में कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को विचार प्रधान पुस्तकें पढ़ने का आह्वान किया था | किन्तु साथ ही यह भी माना था कि आज की भागमभाग वाली जीवनशैली में यह इतना आसान भी नहीं है | उनका सुझाव था कि मध्यमार्ग निकाल कर श्रेष्ठ विचारकों की कुछ चुनिन्दा पुस्तकों का सारांश यदि प्रकाशित हो सके तो उचित होगा |

उनके विचार से अनुप्राणित होकर पुस्तकें पढ़ने व सारांश लिखने का क्रम तो शीघ्र ही प्रारम्भ हो गया तथा जब वेव पोर्टल “क्रान्तिदूत डॉट इन” प्रारम्भ हुआ तब उस सारांश को नेट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध भी करा दिया | किन्तु फिर विचार आया कि सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में आम तौर पर न तो उतनी गंभीरता से पठन पाठन संभव होता और न ही अभी सभी लोग उसके अभ्यस्त हुए है | अतः राष्ट्रवादी वैचारिक अधिष्ठान को परिपक्व बनाने वाले साहित्य को सर्वसुलभ कराने की दृष्टि से एक स्मारिका के प्रकाशन की योजना बनी, जो आज सफल होकर आपके हाथों में है |

स्मारिका में तीन खंड है | प्रथम खंड में तो दीनदयाल जी उपाध्याय, दत्तोपंत जी ठेंगडी, प.पू. मा.स. गोलवलकर “गुरूजी” प्रभृति श्रेष्ठ विचारकों की पुस्तकों का सारांश है तो द्वितीय खंड में लोकमान्य तिलक, सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन व स्वामी सत्यमित्रानंद जी गिरि द्वारा लिखित गीता भाष्यों का सारांश समाहित है | तीसरे खंड में ग्वालियर अंचल के प्रमुख शिक्षाविद व आदर्श महामानव “महीपति चिकटे जी” की आध्यात्मिक दैनन्दिनी के कुछ प्रष्ठ लेख के रूप में दिए गए हैं | गद्य की तुलना में पद्य अधिक आसानी से बोधगम्य होता है यह मानकर चिकटे जी की दैनन्दिनी के कुछ अंश का काव्य रूपांतर भी इस स्मारिका में प्रकाशित किया गया है |

राजनीति, सामाजिक जीवन व अध्यात्म को सहयोजित कर, अपनी सीमित बुद्धि से उठाया गया यह एक कदम “चरैवेति” के सतत साधक आप सुधी जनों को अगर थोड़ा भी पसंद आया तो मैं स्वयं को सौभाग्यशाली समझूंगा |

हरिहर शर्मा
सम्पादक