नागालैंड स्थित दीमापुर जहाँ कभी 50 टन बजनी गोटियों से शतरंज खेलते थे भीम और घटोत्कच !


नागालैण्ड का प्रवेशद्वार कहा जानेवाला नगर है दिमापुर ! दिमापुर की महाभारत कालीन विरासत आज भी पर्यटकों को बेहद आकर्षित करती है ! दिमापुर कभी “हिडिम्बापुर” के नाम से जाना जाता था ! महाभारत काल के समय यहाँ हिडिंब राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था ! यही वह स्थान है जहां भीम ने हिडिम्बा से विवाह किया था !

महाभारत की कथा के अनुसार जब वनवास काल में जब पांडवों का महल षडय़ंत्र के स्वरुप जला दिया गया था जिसके बाद वे वहां से एक दूसरे वन में गए, जहां हिडिंब नामक राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहां करता था ! एक दिन हिडिंब ने अपनी बहन हिडिंबा से वन में भोजन की तलाश करने के लिये भेजा और इसी दौरान राक्षसी हिडिंबा ने भीम को देखा, बलशाली भीम को देख राक्षसी हिडिम्बा को भीम से प्रेम हो गया ! इस कारण उसने पूरे परिवार को जीवित छोड़ दिया ! बौखलाए हिडिंब ने पाण्डवों पर हमला कर दिया ! एक भयानक युद्ध के बाद भीम ने हिडिम्ब को मार डाला ! हिडिंब की मौत के बाद हिडिंबा और भीम का विवाह हुआ ! 

विवाह उपरान्त भीम और हिडिम्बा को घटोत्कच नामक पुत्र की प्राप्ति हुई ! उत्पन्न होते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया ! घटोत्कच जन्म लेते ही बड़ा हो गया, उसके अन्दर मायावी शक्तियां समाहित थी ! 

जब घटोत्कच पैदा हुआ तब माँ हिडिम्बा अपने पुत्र को लेकर पाण्डवों के पास ले गयी और उनसे अनुरोध किया कि “यह आपके भाई की सन्तान है अत:आप लोग इसे अपने चरणों में स्थान दे ।” घटोत्कच ने भी श्रद्धा से पाण्डवों तथा माता कुन्ती के चरणों में प्रणाम करनिवेदन किया , “अब आप मुझे मेरे योग्य कोई सेवा बतायें? तत्पश्चात माता कुन्ती ने घटोत्कच से कहा , “तू मेरे वंश का सबसे बड़ा पौत्र है ! जब समय आएगा तब तुम्हारी सेवा अवश्य ली जायेगी !

इस पर घटोत्कच ने कहा, “आप लोग जब भी मुझे स्मरण करेंगे, मैं आप लोगों की सेवा में उपस्थित हो जाउँगा !” इतना कह कर घटोत्कच वर्तमान उत्तराखंड की ओर चला गया ! इसी घटोत्कच ने महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से लड़ते हुए वीरगति पायी थी !

हिडिम्ब का यह शहर “दीमापुर” प्राकृतिक रूप से बेहद ख़ूबसूरत होने के साथ-साथ एक प्रमुख ऐतिहासिक शहर भी है ! दीमापुर नाम का एक और अर्थ भी निकाला जाता है ! “दीमापुर” तीन शब्दों दी, मा और पुर का मिश्रण है ! कचारी भाषा में दी का अर्थ होता नदी, मा का अर्थ महान और पुर का अर्थ होता है शहर ! यहां पर कचारी शासनकाल में बने मन्दिर, तालाब और किले देखे जा सकते हैं ! इनमें राजपुखूरी, पदमपुखूरी, बामुन पुखूरी और जोरपुखूरी आदि प्रमुख हैं !


आज यहां बहुलता में रहनेवाली डिमाशा जनजाति खुद को भीम की पत्नी हिडिंबा का ही वंशज मानती है ! यहाँ आज भी हिडिंबा का वाड़ा मौजूद है, जहां राजवाड़ी में स्थित शतरंज की ऊंची-ऊंची गोटियां पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती है ! कहा जाता है कि इन गोटियों से भीम और उसका पुत्र घटोत्कच शतरंज खेलते थे ! यहाँ मौजूद एक एक गोटी का भार 50-50 टन बताया जाता है ! इस जगह पांडवो ने अपने वनवास का काफी समय व्यतीत किया था !

वैसे तो हिडिम्बा मूल रूप से नागालैंड की थी पर पुत्र के जन्म के बाद पुत्र को पांडवो को सौप कर वो वर्तमान हिमाचल प्रदेश के मनाली जिले में आ गई थी ! जहाँ आज भी हिडिम्बा का मंदिर स्थापित है ! कहा जाता है की मनाली में ही उनका राकक्षी योनि से दैवीय योनि में रूपांतरण हुआ था ! मनाली में ही देवी हिडिम्बा का मंदिर कला की द्रष्टि से बहुत उत्कृष्ट है ! मंदिर के भीतर एक प्राकृतिक चटटान है जिसे देवी का स्थान माना जाता है ! इसी चट्टान पर देवी हिडिम्बा के पैरो के विशाल चिन्ह मौजूद है ! चटटान को स्थानीय बोली में 'ढूंग कहते हैं इसलिए देवी को 'ढूंगरी देवी कहा जाता है ! देवी को ग्राम देवी के रूप में भी पूजा जाता है ! इस चट्टान के ऊपर लकड़ी के मंदिर का निर्माण 1553 में किया गया था !
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें