भाजपा की दुविधा ?


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संसद का मानसून सत्र मंगलवार से प्रारंभ होने जा रहा है | एक ओर तो सरकार की इच्छा है कि लंबित भूमि अधिग्रहण बिल व जीएसटी बिल किसी प्रकार पास करा लिए जाए, किन्तु दूसरी ओर उसके पास लोकसभा में तो स्पष्ट बहुमत है, किन्तु राज्य सभा में बहुमत नहीं है | वहां कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है | भाजपा 11 अन्य बिल भी लाना चाहती है |


स्वाभाविक ही कांग्रेस इस स्थिति का भरपूर राजनैतिक लाभ लेने का प्रयास कर रही है | ब्लैकमेलिंग की हद तक | उसने स्पष्ट धमकी दी है कि यदि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के स्तीफे से कम उसे कुछ भी मंजूर नहीं है | अगर इन तीनों को नहीं हटाया गया तो वह सदन की कार्यवाही बाधित करेगी |

सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस हाथ धोकर इन तीनों के पीछे क्यों पडी है | कारण बिलकुल स्पष्ट है | जहां तक शिवराज सिंह चौहान का सवाल है, मध्यप्रदेश में उनके नेतृत्व में लगातार तीन बार भाजपा सरकार बनी है | इतना ही नहीं तो हाल ही में हुए उपचुनाव तथा स्थानीय नगरपालिका नगर पंचायत चुनाव में लगभग क्लीन स्वीप भाजपा ने किया है | स्वाभाविक ही उनके नेतृत्व से कांग्रेस खासी परेशान है |

दूसरी ओर विगत एक वर्ष में देश विदेश में सर्वाधिक प्रशंसा अगर किसी मंत्रालय की हुई है, तो वह है विदेश मंत्रालय | तो सुषमा जी को कांग्रेस द्वारा निशाना बनाना समझ में आ सकता है | कमोवेश यही स्थिति राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया की कही जा सकती है | वे विगत एक दशक से राजस्थान में भाजपा का प्रमुख चेहरा रही हैं | ऊपर से राजमाता की बेटी होने का प्रभामंडल भी उनकी सबसे बड़ी ताकत है |

अब भाजपा करे तो क्या करे ? क्या उसे कांग्रेस के सामने घुटने टेक देने चाहिए, और तीनों नेताओं को हटा देना चाहिए ? लेकिन एक बार मजबूर दिख जाने के बाद तो कांग्रेस के होंसले और बढ़ जायेंगे | उसका निशाना अन्य नेता भी बनने लगेंगे | आखिर वह भी एक राजनैतिक दल है, येन केन प्रकारेण वापस दिल्ली की गद्दी पर आने का प्रयास क्या वह नहीं करेगी ? 

कांग्रेस का मुख्य निशाना तो अंततः नरेंद्र मोदी ही हैं | राजे शिवराज और सुषमा तो केवल बहाना भर हैं | मोदी जी की प्रमुख छवि उनकी निडरता ही है | सपने में भी उनका 56 इंच का सीना विरोधियों को डराता है | इसलिए केवल और केवल उनकी उस छवि को मटियामेट करना भर कांग्रेस का उद्देश्य है, जैसा कि राहुल जी लगातार प्रयत्नशील हैं भी |

अब देखना यह है कि कल से शुरू होने वाला मानसून सत्र क्या गुल खिलाता है | भाजपा के तीन दिग्गजों का पराभव होता है ? किसी एक को हटाकर कांग्रेस को थोडा बहुत संतुष्ट कर मध्यमार्ग निकाला जाता है ? या अन्य दलों को अपने साथ लाकर भाजपा कांग्रेस को परास्त कर पाने में सफल होती है ?

पावस सत्र है, आसमां में कजरारे काले मेघ डेरा डाले हुए हैं | सूरज की रोशनी उनके पीछे कैद है | लेकिन इन मेघों से बरसने वाली अमृतधारा ही वसुधा को हरियाली चुनरी उढाती है | हाँ कभी कभी विध्वंस का भी कारक होती है | आशा की जानी चाहए कि संसद का यह मानसून सत्र विध्वंश का नहीं सृजन का ही कारक बनेगा | संकीर्ण दलगत राजनीति से ऊपर उठकर, राष्ट्रहित में सभी राजनैतिक दल निर्णय लेंगे, सदन सुचारू रूप से चलेगा, देश की जनता की तो यही अभिलाषा है | 

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