लगता नहीं कि हम भारत में हैं |

माता पिता की सेवा भारतीय संस्कृति का मूल तत्व है | अपने अंधे मातापिता कंधे पर उठाकर तीर्थाटन कराते श्रवण कुमार के चित्र आज भी रोमांचित करते हैं | मातृपितृ भक्ति की गाथाओं से भारतीय पुराण भरे पड़े हैं |

लेकिन आईबीएन सेवन के लिए फिल्मकार अंश सिंह लूथरा द्वारा बनाया गया वृत्तचित्र एक अलग ही कहानी सामने लाता है | इस वृत्तचित्र का कथानक तमिलनाडु के विरुधुनगर पर केंदित है, जिसके अनुसार वहां बुजुर्गों को इच्छामृत्यु के लिए विवश किया जाता है |

विरुधुनगर चेन्नई से लगभग 500 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहाँ प्रचलित प्रथा थालैकूथल बुजुर्गों के लिए जबरन इच्छामृत्यु का ही एक प्रकार है | इस प्रथा में बुजुर्गों को तेलस्नान के बाद कुछ पीने को कुछ पेय दिए जाते हैं, और उनकी जीवन लीला समाप्त हो जाती है | हालांकि यह कृत्य अत्यंत गोपनीयता से किया जाता है, किन्तु बड़े पैमाने पर होता है |

कथानक के अनुसार विरुधुनगर में एकत्रित बुजुर्ग अपने भविष्य को लेकर चिंतित और भयभीत होकर परस्पर चर्चा कर रहे हैं | वृत्त चित्र में एक बुजुर्ग को यह कहते हुए दर्शाया गया है कि “मुझे डर है कि मेरी पत्नी और बेटे मुझ पर भी यह प्रयोग कर सकते है”|

ग्रामवासी भयभीत है, लेकिन स्थानीय प्रशासन चुप है। भारत में इच्छामृत्यु पर बहस जारी है, संभवतः जबरन इच्छामृत्यु तो ह्त्या के समान ही है | किन्तु हमारा समाज जिस दिशा में जा रहा है, यह वृत्तचित्र उसकी बानगी है | 

इस वृत्तचित्र के विषय में विस्तार से ibnlive.com पर जाना जा सकता है ।

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