आइंसटीन को चुनौती देने वाली एक भारतीय शख्सियत आज है इलाज को मोहताज

70 वर्षीय एक बुजुर्ग आज भले ही गुमनामी के दौर से गुजर रहा है परन्तु एक ज़माना था जब गणित की दुनिया इनके नाम से गूंजती थी ! यह 70 वर्षीय शख्सियत अपने जवानी के दिनों में ‘वैज्ञानिक जी’ के नाम से विख्यात थी ! हम डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह की बात कर रहे हैं !

आज डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह हाथ में पेंसिल लेकर यूंही पूरे घर में चक्कर काटते हैं ! कभी अख़बार, कभी कॉपी, कभी दीवार, कभी घर की रेलिंग, जहां भी उनका मन करता, वहां कुछ लिखते, कुछ बुदबुदाते हुए ! परिजन उन्हें देखते रहते हैं, कभी आंखों में आंसू तो कभी चेहरे पर मुस्कराहट ओढ़े ! लगभग 40 साल से मानसिक बीमारी सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित वशिष्ठ नारायण सिंह पटना के एक अपार्टमेंट में गुमनामी का जीवन बिता रहे हैं ! अब भी किताब, कॉपी और एक पेंसिल उनकी सबसे अच्छी दोस्त है !

वशिष्ठ नारायण सिंह नासा में काम कर चुके है ! इनके द्वारा किए रिसर्च अमेरिकी छात्रों को राह दिखाते हैं ! बिहार के भोजपुर में जन्मे वशिष्ठ ने आइंसटीन के सिद्धांत E= MC2 को चुनौती दी थी ! उनके बारे में एक घटना मशहूर है | नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले, 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए | बाद में कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था ! पटना साइंस कॉलेज में बतौर छात्र ग़लत पढ़ाने पर वह अपने गणित के अध्यापक को टोक देते थे. कॉलेज के प्रिंसिपल को जब पता चला तो उनकी अलग से परीक्षा ली गई जिसमें उन्होंने सारे अकादमिक रिकार्ड तोड़ दिए !

पांच भाई-बहनों के परिवार में आर्थिक तंगी हमेशा डेरा जमाए रहती थी ! लेकिन इससे उनकी प्रतिभा पर ग्रहण नहीं लगा ! पटना में उनके साथ रह रहे भाई अयोध्या सिंह के अनुसार “अमरीका से वह अपने साथ 10 बक्से किताबें लाए थे, जिन्हें वह आज भी पढ़ते हैं ! बाकी किसी छोटे बच्चे की तरह ही उनके लिए तीन-चार दिन में एक बार कॉपी, पेंसिल लानी पड़ती है” !

वशिष्ठ नारायण सिंह जब पटना साइंस क़ॉलेज में पढ़ते थे तभी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली की नज़र उन पर पड़ी ! जनरल टोपोलॉजी और फंक्शनल अनैलेसिस पर काम करने वाले केली अमेरिका के प्रसिद्ध गणितज्ञों में से एक हैं। कैली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और 1965 में वशिष्ठ नारायण अमरीका चले गए ! वर्ष 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए ! नासा में भी काम किया लेकिन मन नहीं लगा और 1971 में भारत लौट आए ! इस बीच 1973 में उनकी शादी वंदना रानी सिंह से हो गई ! घरवाले बताते हैं कि यही वह वक्त था जब वशिष्ठ जी के असामान्य व्यवहार के बारे में लोगों को पता चला !

उनकी भाभी प्रभावती बताती हैं, “छोटी-छोटी बातों पर बहुत ग़ुस्सा हो जाना, पूरा घर सर पर उठा लेना, कमरा बंद करके दिन-दिन भर पढ़ते रहना, रात भर जागना उनके व्यवहार में शामिल था ! वह कुछ दवाइयां भी खाते थे लेकिन वे किस बीमीरी की थीं, इस सवाल को टाल दिया करते !” बीमारी के चलते इनकी पत्नी से इनका अलगाव हो गया था यह वशिष्ठ नारायण के लिए बड़ा झटका था ! तक़रीबन यही वक्त था जब वह आईएसआई कोलकाता में अपने सहयोगियों के बर्ताव से भी परेशान थे ! इन्होंने जीवन में जितनी उपलब्धियां हासिल कीं, आज उतने ही लाचार हैं ! 

भाई अयोध्या सिंह कहते हैं, “भइया (वशिष्ठ जी) बताते थे कि कई प्रोफ़ेसर्स ने उनके शोध को अपने नाम से छपवा लिया, और यह बात उनको बहुत परेशान करती थी ! ”

साल 1974 में उन्हें पहला दौरा पड़ा, जिसके बाद उनका इलाज शुरू हुआ, परन्तु जब लगातार उनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया तब 1976 में उन्हें रांची में भर्ती कराया गया” ! परिजनों के अनुसार इलाज अगर ठीक से चलता तो उनके ठीक होने की संभावना थी ! लेकिन परिवार ग़रीब था और सरकार की तरफ से मदद कम ! 1987 में वशिष्ठ नारायण अपने गांव लौट आए ! लेकिन 89 में अचानक ग़ायब हो गए ! साल 1993 में वह बेहद दयनीय हालत में डोरीगंज, सारण में पाए गए !

आर्मी से सेवानिवृत्त डॉ वशिष्ठ के भाई अयोध्या सिंह बताते हैं, ” उस वक्त तत्कालीन रक्षा मंत्री के हस्तक्षेप के बाद मेरा बेंगलुरु तबादला किया गया जहां भइया का इलाज हुआ ! लेकिन बाद में मेरा तबादला पुनः कर दिया गया और इलाज नहीं हो सका ! तब से अब तक वह घर पर हैं” ! डॉ वशिष्ठ का परिवार उनके इलाज को लेकर अब नाउम्मीद हो चुका है ! घर में किताबों से भरे बक्से, दीवारों पर वशिष्ठ बाबू की लिखी हुई बातें, उनकी लिखी कॉपियां अब उनको डराती हैं ! डर इस बात का कि क्या वशिष्ठ बाबू के बाद ये सब रद्दी की तरह बिक जाएगा !

जैसा कि उनकी भाभी प्रभावती कहती भी हैं, “हिंदुस्तान में नेता का कुत्ता बीमार पड़ जाए तो डॉक्टरों की लाइन लग जाती है ! लेकिन अब हमें इनके इलाज की नहीं किताबों की चिंता है ! बाक़ी तो यह पागल खुद नहीं बने, समाज ने इन्हें पागल बना दिया” !

कुछ साल पहले जब उनका इंटरव्यू लिया गया तो उन्होंने कहा कि वह अमेरिका की नागरिकता लेने वाले हैं ! उनकी हालत इतनी खराब थी कि वह कहने लगे, 'भारत ने अमेरिका पर हमला किया है इसलिए कुछ साल बाद अमेरिका जाऊंगा' !

2013 में वशिष्ठ नारायण सिंह को भूपेंद्र नारायण मंडल यूनिवर्सिटी, मधेपुरा में विजिटिंग proफेसर के तौर पर आमंत्रित किया गया था, लेकिन अपनी बीमारी के चलते वह कोई खास योगदान नहीं दे पाए !

मधेपुरा की यूनिवर्सिटी के उनके साथियों से बात करने पर पता चला कि बीमारी और इतनी उम्र होने के बावजूद गणित पढ़ने और पढ़ाने में उनका खूब मन लगता था ! गणित उन्हें खुशी देती है ! गणित के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह इन दिनों इलाज के लिए मोहताज हैं ! न तो भारत सरकार ने कभी उनकी मदद करने में रुचि दिखाई और न ही राज्य सरकार ने !

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