“बावनी इमली शहीद स्मारक फतेहपुर”, बावन शहीदों का मूक गवाह है इमली का बूढ़ा पेड़ !


हमारे देश को अंग्रेजो की दासता से मुक्त कराने के लिए अनगिनत क्रांतिकारियों ने अपने प्राण भारत माँ को न्योछावर किये है ! इन शहीदो की शाहदत को नमन करने के लिए अनेको जगह शहीद स्मारक बने हुए है, जो हमें उन आज़ादी के सिपाहियों की देश की स्वतंत्रता के लिए किए गए बलिदानो की याद दिलाते है ! ऐसा ही एक स्मारक उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में स्थित है ! इसे इतिहास में बावनी इमली के नाम से जाना जाता है ! असल में यह एक इमली का पेड़ है जिस पर अंग्रेजो ने 28 अप्रेल 1858 को 52 क्रांतिकारियों को एक साथ फांसी पर लटका दिया था ! यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है ! यह इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है ! लोगो का विश्वास है के उस पेड़ का विकास उस नरसंहार के बाद बंद हो गया है ! यह जगह बिन्दकी उपखंड में खजुआ कस्बे के निकट है !

भारत की स्वतन्त्रता का पावन उद्देश्य और अदम्य उत्साह 1857 की महान क्रान्ति का प्रमुख कारण ही नहीं, आत्माहुति का प्रथम आह्वान भी था ! देश के हर क्षेत्र से हर वर्ग और आयु के वीरों और वीरांगनाओं ने इस आह्वान को स्वीकार किया और अपने रक्त से भारत माँ का तर्पण किया ! ऐसे ही एक तेजस्वी पुष्प थे क्रान्ति पुरोधा जोधासिंह अटैया !

10 मई, 1857 को जब बैरकपुर छावनी में वीर मंगल पांडे ने क्रान्ति का शंखनाद किया, तो उसकी गूँज पूरे भारत में सुनायी दी ! 10 जून, 1857 को फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) में क्रान्तिवीरों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिया ! इनका नेतृत्व कर रहे थे जोधासिंह अटैया ! फतेहपुर के डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला खाँ भी इनके सहयोगी थे ! इन वीरों ने सबसे पहले फतेहपुर कचहरी एवं कोषागार को अपने कब्जे में ले लिया ! जोधासिंह अटैया के मन में स्वतन्त्रता की आग बहुत समय से लगी थी ! बस वह अवसर की प्रतीक्षा में थे ! उनका सम्बन्ध तात्या टोपे से बना हुआ था ! मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए इन दोनों ने मिलकर अंगे्रजों से पांडु नदी के तट पर टक्कर ली ! आमने-सामने के संग्राम के बाद अंग्रेजी सेना मैदान छोड़कर भाग गयी ! इन वीरों ने कानपुर में अपना झंडा गाड़ दिया !

जोधासिंह के मन की ज्वाला इतने पर भी शान्त नहीं हुई ! उन्होंने 27 अक्तूबर, 1857 को महमूदपुर गाँव में एक अंग्रेज दरोगा और सिपाही को उस समय जलाकर मार दिया, जब वे एक घर में ठहरे हुए थे ! सात दिसम्बर, 1857 को इन्होंने गंगापार रानीपुर पुलिस चैकी पर हमला कर अंग्रेजों के एक पिट्ठू का वध कर दिया ! जोधासिंह ने अवध एवं बुन्देलखंड के क्रान्तिकारियों को संगठित कर फतेहपुर पर भी कब्जा कर लिया !

आवागमन की सुविधा को देखते हुए क्रान्तिकारियों ने खजुहा को अपना केन्द्र बनाया ! किसी देशद्रोही मुखबिर की सूचना पर प्रयाग से कानपुर जा रहे कर्नल पावेल ने इस स्थान पर एकत्रित क्रान्ति सेना पर हमला कर दिया ! कर्नल पावेल उनके इस गढ़ को तोड़ना चाहता था, परन्तु जोधासिंह की योजना अचूक थी ! उन्होंने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का सहारा लिया, जिससे कर्नल पावेल मारा गया ! अब अंग्रेजों ने कर्नल नील के नेतृत्व में सेना की नयी खेप भेज दी ! इससे क्रान्तिकारियों को भारी हानि उठानी पड़ी ! लेकिन इसके बाद भी जोधासिंह का मनोबल कम नहीं हुआ ! उन्होंने नये सिरे से सेना के संगठन, शस्त्र संग्रह और धन एकत्रीकरण की योजना बनायी ! इसके लिए उन्होंने छद्म वेष में प्रवास प्रारम्भ कर दिया, पर देश का यह दुर्भाग्य रहा कि वीरों के साथ-साथ यहाँ देशद्रोही भी पनपते रहे हैं ! जब जोधासिंह अटैया अरगल नरेश से संघर्ष हेतु विचार-विमर्श कर खजुहा लौट रहे थे, तो किसी मुखबिर की सूचना पर ग्राम घोरहा के पास अंग्रेजों की घुड़सवार सेना ने उन्हें घेर लिया ! थोड़ी देर के संघर्ष के बाद ही जोधासिंह अपने 51 क्रान्तिकारी साथियों के साथ बन्दी बना लिये गये !

जोधासिंह और उनके देशभक्त साथियों को अपने किये का परिणाम पता ही था ! 28 अप्रैल, 1858 को मुगल रोड पर स्थित इमली के पेड़ पर उन्हें अपने 51 साथियों के साथ फाँसी दे दी गयी ! बिन्दकी और खजुहा के बीच स्थित वह इमली का पेड़ (बावनी इमली) आज शहीद स्मारक के रूप में स्मरण किया जाता है !

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