दसवां विश्व हिंदी सम्मलेन - झलकियाँ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कहा कि हिंदी और संस्कृत हमारी विरासत है और हम सबकी जिम्मेदारी है कि भाषा की विरासत को संभालकर रखा जाए, जिससे आने वाली पीढिय़ों को उसका ज्ञान मिल सके।

मोदी यहां लाल परेड ग्राउंड में आयोजित तीन दिवसीय विश्व हिंदी सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भाषा के लुप्त होने के बाद उसकी कीमत का पता चलता है। उन्होंने कहा कि आज सुनने को मिलता है कि संस्कृत में ज्ञान का भंडार है, लेकिन संस्कृत के विद्वानों की कमी के कारण हमें वह ज्ञान नहीं मिल पा रहा है।

उन्होंने कहा कि हमें धीरे-धीरे आदत डालना चाहिए कि हिंदुस्तान की भाषाएं अपनी लिपी में तो हों, लेकिन नागरी लिपी में भी लिखी जाएं।


उन्होंने कहा कि भाषा जड़ नहीं हो सकती, वह हवा का झोंका है, जहां से गुजरेगी, वहीं की सुगंध लेकर आएगी। भाषा की यही ताकत होती है कि जिस पीढी से गुजरती है उसके लिए कुछ न कुछ लेकर आती है।

पीएम ने हिंदी को लेकर अपने जीवन का अनुभव बताते हुए कहा कि मेरी मातृभाषा गुजराती है, लेकिन अगर मैं हिंदी नहीं जानता तो मेरा क्या होता। उन्होंने कहा कि जब मैं पहली बार गुुजरात से बाहर निकला और हिंदी बोला तो लोग पूछते थे कि आप इतनी अच्छी हिंदी कैसे बोल लेते हो।

तो मैंने उनसे कहा कि मैंने चाय बेचते-बेचतेे हिंदी सीखी। व्यापारी ट्रेन में आते जाते थे तो मैं उनसे हिंदी में बात करता था। मैंने यूपी से आने वाले दूध व्यपारियेां से भी हिंदी सिखी।

मोदी ने विदेशों में हिंदी की लोकप्रियता का जिक्र करते हुए कहा कि मंगोलिया सहित कई देशों में हिंदी के प्रति लोगों का आकर्षण देखने को मिलता है। मोदी ने कहा कि कई देशों में हिंदी को पहुंचाने का काम हमारी फिल्म इंडस्ट्री ने भी किया है।

इससे पहले उद्घाटन मंच पर प्रधानमंत्री के अलावा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अन्य अतिथि मौजूद थे। विश्व हिंदी सम्मेलन के कारण पूरा भोपाल हिंदी के रंग में रंगा नजर आया ।

हर तरफ हिंदी सम्मेलन और प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरों वाले होर्डिंग, बैनर और कट आउट नजर आये । सड़कों पर भारी सुरक्षाबल तैनात किया गया था और सड़क मार्ग परिवर्तित किए गए थे। इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए देश-विदेश के पांच हजार प्रतिनिधियों के यहां पहुंचे । समापन समारोह का आकर्षण महानायक अमिताभ बच्चन होंगे।

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1 टिप्पणियाँ

  1. दोहा सलिला:
    करना है साहित्य बिन, भाषा का व्यापार
    भाषा का करती 'सलिल', सत्ता बंटाधार
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    मनमानी करते सदा, सत्ताधारी लोग
    अब भाषा के भोग का, इन्हें लगा है रोग
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    करता है मन-प्राण जब, अर्पित रचनाकार
    तब भाषा की मृदा से, रचना ले आकार
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    भाषा तन साहित्य की, आत्मा बिन निष्प्राण
    शिवा रहित शिव शव सदृश, धनुष बिना ज्यों बाण
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    भाषा रथ को हाँकता, सत्ता सूत अजान
    दिशा-दशा साहित्य दे, कैसे? दूर सुजान
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    अवगुंठन ही ज़िन्दगी, अनावृत्त है ईश
    प्रणव नाद में लीन हो, पाते सत्य मनीष
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    पढ़ ली मन की बात पर, ममता साधे मौन
    अपनापन जैसा भला, नाहक तोड़े कौन
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    जीव किरायेदार है, मालिक है भगवान
    हुआ किरायेदार के, वश में दयानिधान
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    रचना रचनाकार से, रच ना कहे न आप
    रचना रचनाकार में, रच जाती है व्याप
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    जल-बुझकर वंदन करे, जुगनू रजनी मग्न
    चाँद-चाँदनी का हुआ, जब पूनम को लग्न
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    तिमिर-उजाले में रही, सत्य संतान प्रीति
    चोली-दामन के सदृश, संग निभाते रीति
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    जिसे हुआ संतोष वह, रंक अमीर समान
    असंतोषमय धनिक सम, दीन न कोई जान
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