क्या बिहार चुनाव "गाय" पर राष्ट्रीय जनमत संग्रह जैसा है ?



जैसे जैसे बिहार चुनाव का अंतिम चरण नजदीक आ रहा है, पार्टिया इस चुनाव को राष्ट्रीय जनमत संग्रह का रूप देने में जुटी दिखाई दे रही हैं | भले ही यह चुनाव पूरे देश की भावनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता, किन्तु चुनाव की इस बेला में लगता है राजनैतिक दल बिहार को ही पूरा देश मान बैठे हैं |

यही कारण है कि लगातार न तो दादरी काण्ड की याद धुंधली पड़ने दी जा रही है, और न ही पूर्व के सत्ताधीशो से जुड़े वामपंथी रुझान के लेखकों द्वारा अवार्ड वापसी की नौटंकी थम रही है | यह एक सुविचारित रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है | 

अभी कल ही कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने युवा कांग्रेस के एक कार्यक्रम में बोलते हुए कल गुरुवार को कहा कि अगर मैं गौमांस खाता हूँ तो तुम मुझसे पूछने बाले कौन ? यह मेरा हक़ है | मैंने अभी तक गौमांस नहीं खाया, किन्तु अब जरूर खाउंगा । स्पष्ट ही उनका यह सवाल भाजपा व संघ परिवार से था | गोया भाजपा उन्हें जबरन रोक रही है |

इस प्रकार की बयानबाजी से उन्हें लगता है कि बिहार के अल्पसंख्यक मतदाता प्रभावित होंगे और एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ मतदान करेंगे | इसीलिए गौमांस के मुद्दे को लगातार गरमाया जा रहा है | तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दल यह नहीं समझ पा रहे हैं, कि इस प्रकार वे न केवल देश का सौहार्द्र नष्ट कर रहे हैं, बल्कि बिहार चुनाव को एक जनमत संग्रह का रूप दे रहे हैं | 

अब अगर बिहार चुनाव में महागठबंधन जीतता है तो क्या इसका अर्थ यह होगा कि पूरे देश में गौहत्या जारी रहना चाहिए ? और भाजपा की विजय गौहत्या बंदी की दिशा में एक कदम होगी ? यह पासा उलटा भी पड़ सकता है और इसका प्रमाण विगत लोकसभा में मिल भी चुका है | लगातार हिन्दू भावनाओं का स्पष्ट तिरस्कार, उन्हें जाति, पंथ, क्षेत्र से ऊपर उठकर हिन्दू अस्मिता के पक्ष में गोलबंद भी कर सकती है | शायद यहीं भांपकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने खुले तौर पर कह दिया कि भाजपा की पराजय से पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे |

एक छोटे से गाँव दादरी का यह स्थानीय मुद्दा इतना बड़ा राष्ट्रीय रूप ले लेगा, कौन कल्पना कर सकता था ? कुर्सी परस्त नेताओं के लिए न राष्ट्र मायने रखता है और न ही उनके पूर्वज, जो निःसंदेह हिन्दू ही थे | धन्य है भारत की राजनीति जिसके चलते देश में एक नया वर्ग पैदा हुआ है, जो न हिन्दू है और न ही मुस्लिम या कोई अन्य मजहब मानने वाला, जो केवल कुर्सी परस्त है | यह नया तबका एक विचित्र किस्म का चूं चूं का मुरब्बा है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मनमानी करना और दूसरों को आहत करने में आनंद का अनुभव करता है | वस्तुतः यह नया तबका परपीडक है |

यही कारण है कि "गौपालक व गौरक्षक श्री कृष्ण" के "यादव कुल" में जन्मे नेता गौहत्या के समर्थन में सबसे आगे खड़े दिखाई दे रहे हैं | कुल मिलाकर बिहार का चुनाव विकास या अन्य किसी मुद्दे के स्थान पर न होकर केवल और केवल “गौ” पर केन्द्रित हो गया है |

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