भगवान परशुराम विषयक अनेक भ्रांतियां - ब्राह्मण कौन, क्षत्रिय कौन

उद्भट विद्वान्, अध्येता व वरिष्ठ पत्रकार श्री रमेश शर्मा आजकल भगवान परशुराम कथा का वाचन कर रहे हैं | उन्होंने परशुराम जी से सम्बंधित अनेक भ्रांतियों का निवारण कुछ इस प्रकार किया |

संसार में कोई किसी को समझा नहीं सकता, सिखा नहीं सकता, जब तक कि वह स्वयं न सीखना चाहे | शिक्षक अपने सभी विद्यार्थियों को एक समान शिक्षा देता है, इसके बाद भी कोई प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होता है, तो कोई अनुत्तीर्ण हो जाता है | 

उदाहरण के लिए गीता का उपदेश एक श्रोता तीन, एक तो स्वयं अर्जुन जिसे स्वयं भगवान उपदेश दे रहे हैं, दूसरा दिव्य दृष्टि से देख सुन रहे संजय और तीसरे संजय के माध्यम से सुन रहे ध्रतराष्ट्र | इनमें से सुनने के बाद संजय मोहमाया त्याग कर प्रभु भक्ति में लीन हो गए, वे उत्तम श्रोता, मध्यम श्रोता अर्जुन – जिन्होंने मोह छोड़कर युद्ध लड़ा, जीता, उसके बाद कर्मफल के रूप में उसका राज्य सुख का आस्वादन भी किया | तीसरे अधम श्रोता धृतराष्ट्र जिन्होंने गीता सुनने के बाद भी संजय से प्रश्न किया कि मेरे पुत्रों की सुरक्षा का समाचार सुनाओ |

भगवान् परशुराम को लेकर अनेक भ्रांतियां हैं | पहली तो यही कि वे क्रोधी हैं, भगवान के आवेशावतार हैं | दूसरी यह कि वे क्षत्रिय विरोधी हैं और तीसरा यह कि उन्होंने अपने पिता की आज्ञा पाकर अपनी माता का सिरच्छेद कर दिया था |

जबकि तीनों बातें सत्य नहीं हैं | किसी भी श्लोक में जहाँ भी क्षत्रिय संहार का वर्णन आया है, वहां दुष्ट क्षत्रिय शब्द का प्रयोग हुआ है | 

वेद की ऋचाएं मानव मनोविज्ञान को दर्शाती हैं | अर्थात मनुष्य के मनोभाव किसी समय अच्छे तो किसी समय बुरे दोनों हो सकते हैं | और दोनों मनोभावों का वर्णन इन ऋचाओं में देखने को मिलता है | एक ऋचा में ऋषि कहते दिखते हैं कि पडौसी की गाय दूध देना बंद कर दे | जबकि दूसरी ऋचा में ईर्ष्या, द्वेष व क्रोध से मुक्ति की प्रार्थना करते दिखाई देते हैं | यह हर मनुष्य के साथ होता है, उसके मन में कभी अच्छे तो कभी बुरे विचार आते ही रहते हैं | पूजन करते समय जो सात्विकता रहती है, वह सड़क पर चलते समय, या भोजन करते समय भी रहे, यह आवश्यक नहीं | 

क्रोध को पाप का मूल कहा गया है | क्रोध असुर करते हैं, देवता नहीं | अगर भगवान् परशुराम नारायण के अवतार हैं, तो क्रोध कैसे कर सकते हैं ? नारायण के तो वक्ष पर ऋषि ने प्रहार किया, तब भी उन्होंने क्रोध नहीं किया, उलटे ऋषि से ही पूछा ऋषिवर मेरी बज्र जैसी छाती से टकराकर आपके कोमल पैरों को चोट तो नहीं पहुंची | ब्रह्मा जी व भगवान शिव के आवेश में आने का वर्णन पुराणों में मिलता है, किन्तु नारायण के आवेश में आने का एक भी उल्लेख कहीं प्राप्त नहीं होता | 

नारायण के जितने भी अवतार हुए हैं, दुष्ट दलन को, पृथ्वी का भार हटाने को, गौ-ब्राह्मण की रक्षा को हुए हैं | क्रोध अथवा आवेश से तो धर्म की हानि होती है, जिसे समाप्त करने को नारायण अवतार लेते हैं | 

महाभारत के शान्ति पर्व में भगवान परशुराम के रोष का उल्लेख है, और कहा गया है कि धरती को 21 बार पापियों से शून्य किया | शान्ति पर्व में ही धर्मराज के अंश युधिष्ठिर कहते हैं कि यह मनुष्य लोक धन्य है, यह भूलोक धन्य है, जहाँ द्विजवर परशुराम जी ने धर्म सम्मत कर्म किये | क्या क्रोध कभी धर्म सम्मत हो सकता है, जिसे क्रोध पाप का मूल कहा गया है |

भगवान परशुराम जी कभी पराजित नहीं हुए, उन्होंने हर युद्ध जीता | युद्ध क्रोध से नहीं रणनीति से जीता जाता है | क्रोधातिरेक में किया गया युद्ध तो सुनिश्चित पराजय | वाल्मीकि रामायण के युद्ध पर्व में उल्लेख है कि रामचंद्र जी ने परशुराम जी का पूजन किया, तब परशुराम जी ने उन्हें भगवान् विष्णु का धनुष प्रदान किया | जिस व्यक्ति का पूजन स्वयं भगवान् राम कर रहे हैं, वह क्रोधी कैसे हो सकता है ?

भगवान् रामचंद्र जी ने समुद्र पर रोष व्यक्त किया, क्रोध नहीं | माता बच्चे को चपत लगाती है, तो क्रोधावेश में नहीं, रोष में | राजा अपराधियों पर कोप करता है | उसमें लाभ हानि का गणित होता है | क्रोध तो तामसिकता का प्रतीक है, जबकि कोप राजसी तथा रोष सात्विक है | 

आपको भी अगर प्रसन्नचित्त रहना है तो क्रोध को त्यागना होगा | इससे छत्तीस प्रकार के सेल समाप्त हो जाते हैं | जिनको ठीक होने में दो दिन लगते हैं | कोई भी अवतार क्रोधी नहीं हो सकता | 

ब्राह्मण शब्द ज्ञान के लिए है, जाति के लिए नहीं | ब्राह्मण शब्द का अर्थ है, जिसे संहिताएँ कंठस्थ हैं, जो किसी भी प्रकार के प्रश्न का उत्तर देने में समर्थ है | अगर किसी व्यक्ति को विश्वकोष अर्थात इन्सईक्लोपीडिया कंठस्थ हो जाए, अगर वह बिना पुस्तक देखे कहाँ क्या लिखा है, यह बताने लगे, तो उसे भी लोग इन्सईक्लोपीडिया कहने लगते हैं | उसी प्रकार जो ब्रह्म को जानने लगे उसे ब्राह्मण कहा जाता है | 

अब सवाल उठता है, ब्रह्म क्या ? श्रीमद्भागवत में उल्लेख है कि पशु से श्रेष्ठ मनुष्य, मनुष्य से श्रेष्ठ किन्नर, , किन्नर से गन्धर्व, गन्धर्व से यक्ष, फिर देव और सबसे श्रेष्ठ ब्रह्म | देवता मन्त्र के अधीन होते हैं और मन्त्र ब्राह्मण के अधीन | वह जब चाहे देवताओं को आमंत्रित कर सकता है | ब्राह्मण के घर में वेद पठन-पाठन, यज्ञों की ध्वनि और गंध गूंजती रहे तो वह ब्राह्मण अन्यथा उसमें और चांडाल में क्या भेद ? आज हम अपने नाम के आगे द्विवेदी, चतुर्वेदी लगा रहे हैं, यह तो पूर्वजों की पुण्याई है, इसमें हमारा क्या योगदान ? 

इसी प्रकार क्षत्रिय अर्थात जो छत्र की रक्षा करे | यह भी किसी वर्ग या जाति का सूचक नहीं है | इसका शाब्दिक अर्थ है – छत्र के लिए, अर्थात जो राज्य की रक्षा हेतु समर्पित हो, वह क्षत्रिय | छत्रिय में धीरज और सहनशक्ति ब्राह्मण से अधिक होती है | इसका एक प्रसंग परशुराम जी के समय का भी वर्णन मिलता है |

जब राजा लोग अहंकारी और दुष्ट हो गए, तो परशुराम जी ने तय किया कि वे किसी क्षत्रिय को शिक्षा नहीं देंगे | कर्ण को ब्रह्मास्त्र सीखना था, वह एक ऋषि का सन्दर्भ देकर आश्रम में आया व काफी कुछ सीख गया | एक दिन परशुराम जी उसकी जंघा पर सिर रखे विश्राम कर रहे थे, कि तभी एक कीड़े ने कर्ण की जांघ में काटना शुरू कर दिया | परशुराम जी के विश्राम में खलल न पड़े, यह सोचकर कर्ण चुपचाप सहन करता रहा | यहाँ तक कि उसकी जांघ से खून निकल कर परशुराम जी तक पहुँचने लगा, व उनकी नींद टूट गई | उन्होंने कर्ण से कहा तूने इतना कष्ट सहन किया, तू ब्राह्मण नहीं हो सकता | सच बता तू कौन है ? कर्ण ने डरकर कहा कि मैं सूतपुत्र हूँ, अधिरथ व राधा का बेटा | परशुराम जी ने फिर कहा, तू अब भी झूठ बोल रहा है, और उसे श्राप दिया, कि जब जरूरत होगी, वह सीखी हुई विद्या भूल जाएगा | ये प्रसंग हमने सुन रखे हैं, यदि सहनशीलता व धीरज नहीं तो क्षत्रिय कैसे ?

पुराणों में अनेकों प्रसंग हैं कि ऋषियों ने रोष में आकर क्षत्रियों को श्राप दे दिए, पर उन्होंने सदैव प्रणाम ही किया, प्रहार नहीं किया | परीक्षित को श्राप दिया, इक्ष्वाकु वंश के राजा अम्बरीष को दुर्वासा जी ने श्राप दिया, पर उन्होंने सर झुकाकर उसे स्वीकार किया |

भागवत के प्रथम स्कंध में ही भगवान् के 24 अवतारों का वर्णन दिया गया है, उसमें परशुराम जी के वर्णन में लिखा गया है कि उन्होंने उन राजाओं को छत्र विहीन किया, जो ब्रह्म से दूर हो गए थे, अथवा जिन्होंने स्वयं को ब्रह्म घोषित कर दिया था | रामायण में भी प्रसंग है कि जब मंदोदरी रावण को समझाती है, तो कहती है कि राक्षस वेष बदलकर क्षत्रिय हो गए, तब इन्हीं राम ने परशुराम बनकर उनका संहार किया था | वेदव्यास भी उनका उल्लेख दुष्ट पापियों के संहारक के रूप में करते हैं |

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