राग से द्वेष उत्पत्ति : वैदिक पं. योगेश शर्मा


जो पदार्थ या व्यक्ति जब तक हमारे अनुकूल होता है और हमारे सुख का साधन बना हुआ है, तब तक उसकी बुराइयों में भी हम अच्छाइयें देखते हैं, किन्तु जैसे ही वह पदार्थ या व्यक्ति अपने प्रतिकूल हुआ त्यों ही उसके प्रति द्वेष उभर के सामने आ जाता है फिर उसकी हर अच्छाई हमें बुरी लगने लगती है, और यह बुरा देखने सुनने समझने का दोष हममे बढ़ता ही जाता है।

मानलो यह राग द्वेष का प्रसंग हमारे ही किसी इष्ट जन के प्रति हमारा है, यदि किसी माध्यम से उस गलत विचार को शुद्ध करना भी चाहे, उसकी गलत धारणा को ठीक करना भी चाहे, तब यह द्वेष रूपी राक्षस और बड़ा हो जाता है, क्योंकि उसके सोचने समझने की स्थिति नकारात्मक होने से समझाइस या उपदेश का विपरीत अर्थ वह मान बैठता है। और मन ही मन कुढता रहता है। इस प्रकार दुःख का क्षेत्र बढ़ता ही जाता है | इसलिए सुखी रहना चाहते हो तो सकारात्मक विचार मन में लाओ।


वैदिक पं. योगेश शर्मा
आचार्य- वैदिक संस्थान, शिवपुरी

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