" मनुष्य के साथ धन नहीं धर्म जाता है।" : पंडित योगेश शर्मा

वे लोग जो केवल धन को ही सर्वोपरी मानते है, केवल धन के लिये जीते मरते- अधिक धन प्राप्त करना ही जीवन का अंतिम लक्ष्य समझते है वह वास्तव में महामूर्ख ही होते है ! केवल धन से जीवन नही सुधरता, सुखमय जीवन नही बनता उसके लिये त्याग-दान "धर्म" की ही आवश्यकता है !

धन प्राप्ति को लक्ष्य रखने वालों के लिये कहा गया है :-

"धनानि भुमौ पशवश्च गोश्ठे"
मनुष्य जब मरता है तब सारी धन संपत्ति धरती पर ही रह जाती है, पशु घोडा गाडी बाडे मे ही खडे रह जाते है !

"भार्या गृहद्वारे जन: श्मशाने "
जीवन साथी दरवाजे पर, मित्र सगे संबंधी श्मशान (मरघट) तक साथ चलते है !

"देहश्चितायां पर्लोकमार्गे"
यह जो तुम्हारा शरीर है वह चिता मे जलकर भस्म हो जाता है !

"कर्मानुगो गच्छति जीव एक:"
जीवात्मा के साथ परलोक मे यदि कोई साथ जाता है तो वह केवल उसके द्वारा किये गये शुभ-अशुभ कर्म ही जाते है, धन के साथ जो धर्म का अनुष्ठान किया वही साथ जाता है !


1) जो केवल धन कमाता है, धर्म नही, उसके लिये कहा :

"धर्मेणहीना पशुभि: समाना:"
धर्म के आचरण के बगैर मनुष्य पशु के समान खाता पीता जीवन जीता है !

2) ऐसा नही कि केवल धर्म का पालन करे धन ना कमाये और ना ही ऐसा है कि केवल धन कमाये धर्म नही !

इस जीवन मे धन भी आवश्यक है और धर्म भी,परंतु केवल धर्म या धन को ही महत्व देना शास्त्र मे निषेध किया है ! अधिक धन कमाये लेकिन इस इच्छा से कि परिवार के पालन के साथ- साथ सेवा परोपकार का कार्य करूँगा ! लेकिन वास्तविक जीवन मे ऐसा नही देखा जाता ! वास्तव मे "मनुष्य धन जब तक कमाता है जब तक उसका निधन" नही हो जाता !

वैदिक पं. योगेश शर्मा

आचार्य- वैदिक संस्थान, शिवपुरी

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